सुप्रीम कोर्ट ने एक ऐतिहासिक निर्णय में प्रयागराज स्थित “मंसरोवर पैलेस” सिनेमा हॉल को लेकर 63 वर्षों से चले आ रहे किरायेदारी विवाद का अंत कर दिया है। शीर्ष अदालत ने किरायेदार के कानूनी वारिसों को आदेश दिया है कि वे सन् 2025 के अंत तक संपत्ति को मूल मालिक के उत्तराधिकारी को सौंप दें।
न्यायमूर्ति एम. एम. सुंदरेश और न्यायमूर्ति के. वी. विश्वनाथन की पीठ ने इलाहाबाद हाईकोर्ट द्वारा वर्ष 2013 में दिए गए उस आदेश को रद्द कर दिया, जिसमें अपीलीय प्राधिकरण के निर्णय के आधार पर किरायेदार को कब्जा बनाए रखने की अनुमति दी गई थी। सुप्रीम कोर्ट ने आदेश दिया कि संपत्ति का “शांतिपूर्ण कब्जा” मुरलीधर अग्रवाल के उत्तराधिकारी अतुल कुमार अग्रवाल को सौंपा जाए।
यह कानूनी विवाद 1952 के पट्टे समझौते से शुरू हुआ था। मुरलीधर ने 1962 में उक्त सिनेमा हॉल खरीदा था और उसके बाद से उन्होंने कई बार किरायेदारों के खिलाफ बेदखली की कार्यवाही की, यह दावा करते हुए कि उन्हें संपत्ति की “सच्ची आवश्यकता” है। विवाद विभिन्न संस्करणों में उत्तर प्रदेश किराया नियंत्रण अधिनियम के तहत कई चरणों से होकर गुजरा।

सुप्रीम कोर्ट ने अपने निर्णय में जमींदार की “सच्ची आवश्यकता” की व्याख्या को उदार रूप से करते हुए विशेष रूप से इस बात को नोट किया कि अतुल कुमार, जो एक विकलांग सदस्य हैं, अपनी जीविका के लिए इस संपत्ति पर निर्भर हैं। अदालत ने किरायेदार की इस दलील को खारिज कर दिया कि जमींदार के पास पहले से पर्याप्त आय के स्रोत हैं या वे अन्य व्यवसायों में लगे हुए हैं — कोर्ट ने इसे बेदखली के मापदंडों के लिए अप्रासंगिक और असिद्ध माना।