सुप्रीम कोर्ट ने सोमवार को जम्मू-कश्मीर पुलिस के उन अधिकारियों की तत्काल गिरफ्तारी के आदेश दिए, जो एक साथी कांस्टेबल खुरशीद अहमद चौहान को अवैध हिरासत में लेकर कथित रूप से यातना देने के आरोपी हैं। यह कथित टॉर्चर फरवरी 2023 में कुपवाड़ा स्थित जॉइंट इंटरोगेशन सेंटर (JIC) में हुआ था।
न्यायमूर्ति विक्रम नाथ और न्यायमूर्ति संदीप मेहता की पीठ ने इस मामले की जांच केंद्रीय अन्वेषण ब्यूरो (CBI) को सौंप दी और निर्देश दिया कि जांच केवल व्यक्तिगत अपराधों तक सीमित न रहे, बल्कि संस्था के भीतर मौजूद उन प्रणालीगत खामियों की भी गहराई से जांच की जाए, जिनकी वजह से ऐसा उत्पीड़न संभव हुआ।
कोर्ट ने पीड़ित चौहान को उनके मौलिक और संवैधानिक अधिकारों के घोर उल्लंघन के लिए ₹50 लाख का मुआवजा भी देने का आदेश दिया।

“धारा 309 IPC (आत्महत्या के प्रयास) के तहत पीड़ित के खिलाफ आपराधिक कार्यवाही को जारी रखना न्याय का मखौल होगा,” कोर्ट ने टिप्पणी करते हुए चौहान के खिलाफ दर्ज FIR को रद्द कर दिया।
मामले के अनुसार, कांस्टेबल खुरशीद चौहान को 20 से 26 फरवरी 2023 तक JIC कुपवाड़ा में कथित रूप से अवैध रूप से हिरासत में रखा गया था। चौहान का आरोप है कि इस दौरान उन्हें गंभीर शारीरिक यातनाएं दी गईं, जिनमें उनके निजी अंगों को भी क्षति पहुंचाई गई। इस पीड़ा से व्यथित होकर उन्होंने आत्महत्या का प्रयास किया, जिसके बाद उनके खिलाफ आत्महत्या की कोशिश का मामला दर्ज कर लिया गया।
जम्मू-कश्मीर हाईकोर्ट ने इस FIR को रद्द करने से इनकार कर दिया था, जिसके खिलाफ चौहान ने सुप्रीम कोर्ट का दरवाजा खटखटाया। सुप्रीम कोर्ट ने हाईकोर्ट के फैसले को पलटते हुए चौहान के खिलाफ केस को आधारहीन बताया और अधिकारियों की नाकामी को कड़ी फटकार लगाई।
“संस्थागत छूट की कोई जगह नहीं हो सकती,” कोर्ट ने कहा और CBI को निर्देश दिया कि वह एक महीने के भीतर दोषी अधिकारियों को गिरफ्तार करे और तीन महीने के भीतर अपनी जांच पूरी करे।
कोर्ट ने स्पष्ट किया कि जांच में केवल दोषियों की पहचान ही नहीं हो, बल्कि JIC कुपवाड़ा की कार्यप्रणाली और वहां फैली चुप्पी और दमन के माहौल की भी जांच होनी चाहिए।