सुप्रीम कोर्ट ने मंगलवार को एक अहम फैसले में स्पष्ट किया कि कर्मचारी मुआवजा अधिनियम, 1923 की धारा 3 में प्रयुक्त वाक्यांश “नौकरी के दौरान और उसके कारण हुआ दुर्घटना” (accident arising out of and in the course of employment) में वे हादसे भी शामिल होंगे जो कर्मचारी के निवास स्थान और कार्यस्थल के बीच आवाजाही के दौरान होते हैं, बशर्ते कि दुर्घटना और नौकरी के बीच स्पष्ट संबंध हो।
न्यायमूर्ति मनोज मिश्रा और न्यायमूर्ति के. वी. विश्वनाथन की पीठ ने माना कि इस विषय पर अब तक “गंभीर भ्रम और अस्पष्टता” बनी हुई थी, खासकर उन मामलों में जहां कर्मचारी ड्यूटी पर जाते समय या ड्यूटी से लौटते समय किसी दुर्घटना का शिकार हो जाते हैं।
यह फैसला बॉम्बे हाईकोर्ट के दिसंबर 2011 के एक आदेश को चुनौती देने वाली अपील पर आया। हाईकोर्ट ने उस आदेश को खारिज कर दिया था जिसमें उस वॉचमैन के परिवार को ₹3,26,140 मुआवजा देने का निर्देश दिया गया था, जो ड्यूटी पर जाते समय दुर्घटना में मारा गया था।

पीठ ने अपने फैसले में कहा, “हम धारा 3 में प्रयुक्त वाक्यांश की व्याख्या इस प्रकार करते हैं कि इसमें वे हादसे भी शामिल हैं जो कर्मचारी के निवास स्थान से कार्यस्थल तक ड्यूटी पर जाते समय या ड्यूटी पूरी करने के बाद घर लौटते समय होते हैं, यदि यह साबित हो कि दुर्घटना के समय, स्थान और परिस्थिति का कर्मचारी की नौकरी से सीधा संबंध था।”
मामले में मृतक व्यक्ति एक चीनी मिल में चौकीदार के पद पर कार्यरत था और उसकी ड्यूटी 22 अप्रैल 2003 को तड़के 3 बजे से शुरू होने वाली थी। वह अपने कार्यस्थल की ओर जाते समय, कार्यस्थल से लगभग 5 किलोमीटर पहले दुर्घटना का शिकार हुआ।
पीठ ने कहा कि यह निर्विवाद है कि वह समय पर ड्यूटी पर पहुंचने के लिए निकल चुका था और इसीलिए उसके दुर्घटना का उसकी सेवा से स्पष्ट संबंध था।
सुप्रीम कोर्ट ने इस आधार पर हाईकोर्ट का फैसला रद्द करते हुए श्रम आयुक्त और दीवानी न्यायाधीश द्वारा पारित मूल आदेश को बहाल कर दिया, जिससे कर्मचारी मुआवजा अधिनियम की व्याख्या को लेकर उत्पन्न असमंजस को दूर करने में मदद मिलेगी।