‘सिविल डेथ’ 7 साल पूरे होने पर मानी जाएगी, लापता होने की तारीख से नहीं; सुप्रीम कोर्ट ने अनुकंपा नियुक्ति का आदेश रद्द किया

सुप्रीम कोर्ट ने 29 अक्टूबर, 2025 के एक महत्वपूर्ण फैसले में, नागपुर नगर निगम को अनुकंपा के आधार पर नियुक्ति देने के हाईकोर्ट के आदेश को रद्द कर दिया है। शीर्ष अदालत ने यह स्पष्ट किया कि भारतीय साक्ष्य अधिनियम, 1872 की धारा 108 के तहत, किसी लापता व्यक्ति को सात साल की अवधि समाप्त होने के बाद ही मृत माना जाएगा, न कि उस तारीख से जब वह लापता हुआ था।

जस्टिस पंकज मिथल और जस्टिस प्रसन्ना बी. वराले की पीठ ने कहा कि यदि कोई पक्ष यह दावा करता है कि मृत्यु लापता होने के दिन या किसी और विशिष्ट दिन हुई है, तो उसे यह बात ठोस सबूतों के साथ साबित करनी होगी।

यह कानूनी मुद्दा इस सवाल पर केंद्रित था कि क्या ‘सिविल डेथ’ के आधार पर अनुकंपा नियुक्ति का दावा तब किया जा सकता है, जब कर्मचारी लापता होने की अवधि के दौरान ही सेवा से रिटायर हो गया हो और परिवार ने सभी रिटायरमेंट लाभ स्वीकार कर लिए हों।

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मामले की पृष्ठभूमि

यह मामला हाईकोर्ट के 18.07.2024 के एक फैसले के खिलाफ दायर अपील से संबंधित है। हाईकोर्ट ने रिट याचिका संख्या 913/2024 में नागपुर नगर निगम (अपीलकर्ता) को प्रतिवादी संख्या 2, शुभम, को एक उपयुक्त पद पर नियुक्ति देने का निर्देश दिया था।

हाईकोर्ट का यह निर्देश इस आधार पर था कि शुभम के पिता, गुलाब महागु बावनकुले (जो निगम के कर्मचारी थे) की मृत्यु की तारीख 01.09.2012 मानी जाए, जिस दिन वे लापता हुए थे। नगर निगम ने हाईकोर्ट के इसी आदेश को सुप्रीम कोर्ट में चुनौती दी थी।

पक्षों की दलीलें

अपीलकर्ताओं (नागपुर नगर निगम) की ओर से पेश वकील ने दलील दी कि हाईकोर्ट ने “स्पष्ट रूप से त्रुटि” (manifestly erred) की है।

  • उन्होंने तर्क दिया कि जिस तारीख को कर्मचारी के पिता लापता हुए (01.09.2012), उसे उनकी मृत्यु की तारीख नहीं माना जा सकता।
  • ‘सिविल डेथ’ के कानून का हवाला देते हुए, उन्होंने कहा कि किसी व्यक्ति को तभी मृत माना जाता है, जब सात साल तक उसके बारे में कुछ सुना न गया हो। इसलिए, ‘सिविल डेथ’ की वास्तविक तारीख 01.09.2019 होगी, यानी सात साल की अवधि समाप्त होने पर।
  • अपीलकर्ताओं ने इस तथ्य पर प्रकाश डाला कि लापता होने की अवधि के दौरान, कर्मचारी को सेवा में जारी माना गया और वह 31.01.2015 को विधिवत रिटायर (duly retired) हो गए।
  • उनकी रिटायरमेंट के बाद, परिवार को सभी रिटायरमेंट लाभ (लगभग 6,49,000/- रुपये) दिए गए और वर्तमान में उन्हें 12,000/- रुपये मासिक पेंशन भी मिल रही है।
  • निगम ने तर्क दिया कि जब परिवार ने, जिसमें प्रतिवादी संख्या 2 भी शामिल है, रिटायरमेंट और उससे जुड़े लाभों को स्वीकार कर लिया है, तो बेटा अब अनुकंपा नियुक्ति का दावा नहीं कर सकता।
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इसके विपरीत, प्रतिवादी (पुत्र) के वकील ने तर्क दिया कि वे 2019 से पहले मृत्यु की डिक्री (decree) नहीं मांग सकते थे, क्योंकि इसके लिए सात साल की वैधानिक अवधि (statutory period) का पूरा होना जरूरी था।

  • उन्होंने दलील दी कि नागपुर के सिविल जज, सीनियर डिवीजन द्वारा 11.01.2022 को पारित डिक्री, जिसमें पिता को मृत घोषित किया गया, को “पिछली तारीख” (relate back) यानी 01.09.2012 (लापता होने की तारीख) से लागू माना जाना चाहिए।

सुप्रीम कोर्ट का विश्लेषण और निष्कर्ष

सुप्रीम कोर्ट की पीठ ने सबसे पहले 11.01.2022 की सिविल कोर्ट की डिक्री का अवलोकन (perused) किया। कोर्ट ने पाया, “इसमें यह दर्ज है कि प्रतिवादी संख्या 2 के पिता… 01.09.2012 को लापता हो गए थे। नतीजतन, वाद को डिक्री कर दिया गया, जिससे उन्हें मृत घोषित कर दिया गया। हालांकि, यह डिक्री पिता की मृत्यु की विशिष्ट तारीख (specific date of death) पर पूरी तरह से चुप (completely silent) है। सिविल कोर्ट ने उन्हें 01.09.2012 से मृत घोषित नहीं किया है।”

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पीठ ने एलआईसी बनाम अनुराधा ((2004) 10 SCC 131) के मामले में स्थापित कानून का हवाला दिया, जिसके अनुसार ‘सिविल डेथ’ के मामलों में, “मृत्यु की तारीख या समय का निर्धारण प्रत्यक्ष या परिस्थितिजन्य साक्ष्य (direct or circumstantial evidence) के आधार पर किया जाना चाहिए, न कि केवल धारणा या अनुमान (assumption or presumption) पर।”

कोर्ट ने दोहराया कि “मृत्यु की तारीख या समय को साबित करने का भार (burden to prove) उसी व्यक्ति पर होता है जो मृत्यु का ऐसा दावा करता है।”

इस कानून को लागू करते हुए, सुप्रीम कोर्ट ने पाया कि प्रतिवादी (पुत्र) ने अपने पिता की मृत्यु की किसी विशिष्ट तारीख का दावा नहीं किया और न ही इस संबंध में कोई सबूत पेश किया। “इसलिए,” कोर्ट ने माना, “पिता की मृत्यु की तारीख या समय अनिश्चित (uncertain) बना हुआ है।”

कोर्ट ने भारतीय साक्ष्य अधिनियम, 1872 की धारा 108 का जिक्र करते हुए कहा कि “सिविल डेथ के मामलों में, व्यक्ति के लापता होने की तारीख से सात साल की समाप्ति के बाद ही मृत्यु का अनुमान लगाया जाएगा,” जब तक कि इसके विपरीत या किसी विशिष्ट तिथि को ठोस सबूतों से साबित नहीं किया जाता।

इस आधार पर, कोर्ट ने मृत्यु की तारीख निर्धारित की: “इस प्रकार, मामले के तथ्यों और परिस्थितियों में, प्रतिवादी संख्या 2 के पिता को उनके लापता होने की तारीख से सात साल की समाप्ति पर यानी 01.09.2019 को ‘सिविल डेथ’ से मृत माना जाएगा।”

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कोर्ट ने इस महत्वपूर्ण तथ्य पर ध्यान दिया कि कर्मचारी इस मानी गई मृत्यु तिथि (deemed date of death) से पहले ही 31.01.2015 को रिटायर हो गए थे। पीठ ने निष्कर्ष निकाला, “…इन परिस्थितियों में, जब प्रतिवादी संख्या 2 ने यह स्वीकार कर लिया है कि उसके पिता रिटायर हो गए थे, तो वह अनुकंपा नियुक्ति का दावा नहीं कर सकता।”

इसके अतिरिक्त, सुप्रीम कोर्ट ने यह भी माना कि हाईकोर्ट ने “सीधे अनुकंपा नियुक्ति देने का निर्देश देकर स्पष्ट त्रुटि की”, जबकि उसे केवल “अनुकंपा नियुक्ति के लिए उनके मामले पर विचार करने” का निर्देश देना चाहिए था।

अदालत का फैसला

सुप्रीम कोर्ट ने निष्कर्ष निकाला कि हाईकोर्ट द्वारा पारित 18.07.2024 का आक्षेपित निर्णय और आदेश (impugned judgment and order) “कानून में टिकाऊ नहीं” (cannot be sustained in law) है।

अपील को स्वीकार करते हुए, कोर्ट ने हाईकोर्ट के आदेश को रद्द (set aside) कर दिया। हालांकि, पीठ ने यह “अपीलकर्ताओं के लिए खुला छोड़ दिया कि वे प्रतिवादी संख्या 2 के मामले पर, अनुकंपा नियुक्ति के दावे से स्वतंत्र (independent of claim for compassionate appointment), अपने अधिकार क्षेत्र में किसी भी उपयुक्त पद पर नियुक्ति के लिए विचार कर सकते हैं, यदि आवश्यक हो तो आयु में छूट देकर, बशर्ते कि कानून में यह अन्यथा स्वीकार्य हो।”

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