बुजुर्ग और असाध्य रोगों से पीड़ित कैदियों की रिहाई की मांग: सुप्रीम कोर्ट ने केंद्र और 18 राज्यों से मांगा जवाब

सुप्रीम कोर्ट ने सोमवार को राष्ट्रीय विधिक सेवा प्राधिकरण (NALSA) की उस जनहित याचिका पर केंद्र सरकार और 18 राज्यों से जवाब मांगा, जिसमें 70 वर्ष से अधिक आयु के और असाध्य रोगों से पीड़ित कैदियों को जमानत पर रिहा करने की मांग की गई है।

न्यायमूर्ति विक्रम नाथ और न्यायमूर्ति संदीप मेहता की पीठ ने अधिवक्ता रश्मि नंदकुमार की दलीलों पर गौर करते हुए केंद्र और संबंधित राज्यों को नोटिस जारी किया। याचिका में कहा गया है कि इन बुजुर्ग और बीमार कैदियों को विशेष देखभाल की आवश्यकता है, जो जेलों की अत्यधिक भीड़ के चलते प्रदान करना जेल प्रशासन के लिए संभव नहीं है।

जिन राज्यों को नोटिस भेजा गया है उनमें आंध्र प्रदेश, बिहार, छत्तीसगढ़, हरियाणा, हिमाचल प्रदेश, झारखंड, केरल, मध्य प्रदेश, महाराष्ट्र, पंजाब, राजस्थान, तमिलनाडु, तेलंगाना, त्रिपुरा, उत्तर प्रदेश, पश्चिम बंगाल और ओडिशा शामिल हैं।

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NALSA ने याचिका में कहा है कि कई ऐसे कैदी हैं जिनकी सजा उच्च न्यायालयों द्वारा बरकरार रखी गई है, लेकिन वे सुप्रीम कोर्ट में अपील नहीं कर सके और अब असाध्य बीमारी से ग्रस्त हैं या अत्यंत वृद्ध हैं। “इन कैदियों को उनके परिवारों के साथ अंतिम समय बिताने का अवसर दिया जाना चाहिए और समाज में पुनः एकीकरण का मौका मिलना चाहिए,” याचिका में कहा गया।

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NALSA ने यह भी बताया कि 31 दिसंबर, 2022 तक भारत की जेलों में भीड़भाड़ की दर 131% थी, जिससे चिकित्सा सुविधाएं और जीवन की गरिमा बुरी तरह प्रभावित हो रही है। याचिका में कर्नाटक की एक 93 वर्षीय महिला और कोलकाता हाईकोर्ट द्वारा जमानत दिए गए एक असाध्य रोगी का उल्लेख कर यह दिखाया गया कि किस प्रकार इस वर्ग के कैदियों को राहत की आवश्यकता है।

NALSA ने 10 दिसंबर 2024 से 10 मार्च 2025 तक “बुजुर्ग और असाध्य रोगियों के लिए विशेष अभियान” चलाया था, जिसके तहत राष्ट्रीय, राज्य और जिला स्तर की इकाइयों ने जेलों का दौरा कर ऐसे कैदियों की पहचान की। इस अभियान में कुल 456 कैदियों की पहचान की गई, जिनमें सजायाफ्ता और विचाराधीन कैदी दोनों शामिल थे।

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हालांकि, मौजूदा याचिका में केवल उन कैदियों के लिए राहत मांगी गई है, जिनकी सजा उच्च न्यायालयों द्वारा दी गई है, जिन्होंने सुप्रीम कोर्ट में अपील नहीं की है और जो विधिक सहायता प्राप्त करना चाहते हैं।

शीर्ष अदालत इस मामले की आगे की सुनवाई में इन पहलुओं पर विस्तृत विचार करेगी, जो भारतीय जेल प्रणाली में मानवीय दृष्टिकोण को बढ़ावा देने की दिशा में एक महत्वपूर्ण कदम माना जा रहा है।

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