सुप्रीम कोर्ट ने मंगलवार को केंद्र सरकार को नोटिस जारी कर बेघर और मानसिक-सामाजिक विकलांगता (psychosocial disabilities) से पीड़ित लोगों के लिए एक समग्र नीति बनाने और उसे लागू करने की मांग करने वाली जनहित याचिका (PIL) पर जवाब मांगा है।
न्यायमूर्ति विक्रम नाथ और न्यायमूर्ति संदीप मेहता की पीठ ने अधिवक्ता गौरव कुमार बंसल द्वारा दायर याचिका पर यह नोटिस जारी किया। याचिका में आग्रह किया गया है कि पुलिस और चिकित्सा विभाग जैसे प्रमुख विभागों के लिए एक मानक संचालन प्रक्रिया (SOP) बनाई जाए ताकि इस संवेदनशील वर्ग के लोगों के साथ मानवीय और प्रभावी ढंग से व्यवहार किया जा सके।
याचिका में बताया गया है कि मानसिक-सामाजिक विकलांगता से आशय उन बाधाओं से है जो मानसिक स्वास्थ्य समस्याओं से पीड़ित लोगों को सामाजिक भेदभाव, अपर्याप्त सहायता और अन्य कारणों के चलते झेलनी पड़ती हैं। इसमें आरोप लगाया गया है कि वर्तमान व्यवस्था में संरचनात्मक खामियाँ हैं, जिससे ऐसे बेघर लोग उपेक्षा, सामाजिक अलगाव और शारीरिक व यौन शोषण का शिकार हो रहे हैं, जबकि उन्हें उचित देखभाल मिलनी चाहिए।

बंसल ने याचिका में कहा है कि भले ही मानसिक स्वास्थ्य देखभाल अधिनियम, 2017 और राष्ट्रीय मानसिक स्वास्थ्य नीति, 2014 जैसे कानून और नीतियां अस्तित्व में हैं, लेकिन इन्हें लागू करने में सरकारें विफल रही हैं। उन्होंने कहा कि भारत में बेघर और मानसिक रूप से बीमार लोगों के लिए कोई व्यवस्थित राष्ट्रीय नीति नहीं है, जिससे “पूरी व्यवस्था चरमरा गई है” और हजारों लोग चिकित्सा, आश्रय और सामाजिक अधिकारों से वंचित हैं।
याचिका में राष्ट्रीय मानसिक स्वास्थ्य सर्वेक्षण 2015-2016 का भी उल्लेख किया गया है, जिसमें सरकार की इस विफलता को उजागर किया गया था कि वह मानसिक बीमारियों से जूझ रहे बेघर लोगों की सटीक संख्या तक तय नहीं कर पाई। आंकड़ों के अभाव ने नीतिगत ठहराव (policy paralysis) को जन्म दिया है, जिससे लक्षित हस्तक्षेप और संसाधनों का समुचित आवंटन नहीं हो पा रहा है।