मानसिक स्वास्थ्य कानून लागू न करने पर सुप्रीम कोर्ट सख्त, NHRC को पक्षकार बनाने का निर्देश

सुप्रीम कोर्ट ने शुक्रवार को 2017 के मानसिक स्वास्थ्य देखभाल अधिनियम (Mental Healthcare Act, 2017) को प्रभावी ढंग से लागू कराने की मांग वाली जनहित याचिका (PIL) में राष्ट्रीय मानवाधिकार आयोग (NHRC) को पक्षकार बनाने का निर्देश दिया।

न्यायमूर्ति पी. एस. नरसिम्हा और न्यायमूर्ति अतुल एस. चंदुरकर की पीठ ने याचिकाकर्ता गौरव कुमार बंसल से कहा कि वह NHRC को पक्षकार बनाने के लिए विधिवत आवेदन दाखिल करें। पीठ ने यह भी संकेत दिया कि इस जनहित याचिका को NHRC को स्थानांतरित किया जा सकता है ताकि कानून के प्रावधानों को लागू किया जा सके।

जब याचिकाकर्ता ने निगरानी के लिए किसी पूर्व सुप्रीम कोर्ट न्यायाधीश की अध्यक्षता में एक समिति गठित करने का सुझाव दिया, तब पीठ ने कहा, “केवल इसलिए कि वर्तमान व्यवस्था में कुछ खामियां हैं, हम कोई समानांतर तंत्र नहीं बना सकते।”

Video thumbnail

पीठ ने अतिरिक्त सॉलिसिटर जनरल ऐश्वर्या भाटी से कहा कि वे केंद्र सरकार का हलफनामा याचिकाकर्ता को उपलब्ध कराएं और मामले की अगली सुनवाई तीन सप्ताह बाद तय की।

यह जनहित याचिका 2018 में दायर की गई थी, जिसमें मानसिक स्वास्थ्य देखभाल अधिनियम, 2017 के तहत केंद्र और राज्यों द्वारा आवश्यक निकायों — जैसे केंद्रीय मानसिक स्वास्थ्य प्राधिकरण (CMHA), राज्य मानसिक स्वास्थ्य प्राधिकरण (SMHA), और मानसिक स्वास्थ्य पुनरावलोकन बोर्ड (MHRB) — की स्थापना और कार्यान्वयन में गंभीर लापरवाही का आरोप लगाया गया है।

READ ALSO  रिट याचिका के लंबित रहने के दौरान प्राप्त कोई भी योग्यता धोखाधड़ी को माफ नहीं करेगी: इलाहाबाद हाईकोर्ट

सुप्रीम कोर्ट ने 2 मार्च को केंद्र सरकार को यह स्पष्ट करने का निर्देश दिया था कि इन संस्थाओं की स्थापना और उनमें अनिवार्य नियुक्तियाँ किस स्तर तक हुई हैं।

सुनवाई के दौरान पीठ ने उत्तर प्रदेश के बदायूं ज़िले में एक आस्था-आधारित मानसिक आश्रम में मानसिक रूप से बीमार व्यक्तियों को जंजीरों से बांधने की घटना पर गंभीर चिंता जताई। अदालत ने कहा कि ऐसा करना भारतीय संविधान के अनुच्छेद 21 के तहत जीवन और व्यक्तिगत स्वतंत्रता के अधिकार का घोर उल्लंघन है।

पीठ ने कहा, “मानसिक रूप से बीमार व्यक्तियों को जंजीर से बांधना अमानवीय है और उनके सम्मान व गरिमा के अधिकार का सीधा उल्लंघन है।”

याचिका में प्रस्तुत तस्वीरों को अदालत ने “गंभीर चिंता” का विषय बताया और कहा कि यह मानसिक स्वास्थ्य कानून, 2017 की उस धारा का उल्लंघन है, जिसमें कहा गया है कि मानसिक रोग से ग्रस्त हर व्यक्ति को गरिमा के साथ जीने का अधिकार है और उसे किसी भी प्रकार की क्रूर, अमानवीय या अपमानजनक यातना से बचाया जाना चाहिए।

READ ALSO  मद्रास हाईकोर्ट ने अभिनेता धनुष के साथ कॉपीराइट विवाद में नेटफ्लिक्स की याचिका खारिज की

याचिकाकर्ता ने 2016 के राष्ट्रीय मानसिक स्वास्थ्य सर्वेक्षण का हवाला देते हुए कहा कि भारत की लगभग 14% जनसंख्या को सक्रिय मानसिक स्वास्थ्य हस्तक्षेप की आवश्यकता है, और करीब 2% लोग गंभीर मानसिक विकारों से पीड़ित हैं।

सुप्रीम कोर्ट ने पहले 3 जनवरी 2019 को इस याचिका पर केंद्र, सभी राज्यों और केंद्रशासित प्रदेशों को नोटिस जारी कर कहा था कि इस कानून का अनुपालन न होना नागरिकों के जीवन और स्वतंत्रता के अधिकार का गंभीर उल्लंघन है।

READ ALSO  विशेष एनआईए कोर्ट ने 2018 कासगंज हिंसा के लिए 28 लोगों को आजीवन कारावास की सजा सुनाई
Ad 20- WhatsApp Banner

Law Trend
Law Trendhttps://lawtrend.in/
Legal News Website Providing Latest Judgments of Supreme Court and High Court

Related Articles

Latest Articles