सुप्रीम कोर्ट ने गुरुवार को दिल्ली-नोएडा-डायरेक्ट (डीएनडी) फ्लाईवे टोल मामले में नोएडा टोल ब्रिज कंपनी लिमिटेड (NTBCL) के पूर्व वरिष्ठ अधिकारी प्रदीप पुरी के खिलाफ अपने पहले के फैसले में की गई कुछ प्रतिकूल टिप्पणियों को हटाने पर सहमति जताई।
न्यायमूर्ति सूर्यकांत और न्यायमूर्ति उज्जल भुयान की पीठ ने कहा कि भले ही टिप्पणियाँ प्रत्यक्ष रूप से पुरी के खिलाफ न की गई हों, लेकिन वह अब सेवानिवृत्त हो चुके हैं और उनके लिए अनावश्यक परेशानी नहीं होनी चाहिए।
“कैग (CAG) की रिपोर्ट पूरी तरह स्पष्ट है, इसलिए हमारा मूल निर्णय वैसा ही रहेगा। लेकिन इस व्यक्ति के संदर्भ में की गई टिप्पणियों को हम फैसले से संशोधित करेंगे,” पीठ ने कहा।

प्रदीप पुरी ने शीर्ष अदालत में याचिका दायर कर व्यक्तिगत टिप्पणियों को हटाने का आग्रह किया था, जो दिसंबर 2024 के निर्णय में की गई थीं। उनके वकील ने दलील दी कि कैग रिपोर्ट में उनके खिलाफ कोई व्यक्तिगत टिप्पणी नहीं की गई थी और निर्णय में उस पैराग्राफ को स्पष्ट किया जाना चाहिए।
20 दिसंबर 2024 को सुप्रीम कोर्ट ने इलाहाबाद हाईकोर्ट के 2016 के फैसले को बरकरार रखते हुए डीएनडी फ्लाईवे को टोल मुक्त घोषित किया था। इसके साथ ही शीर्ष अदालत ने एनटीबीसीएल की अपील खारिज करते हुए नोएडा प्राधिकरण और उत्तर प्रदेश व दिल्ली सरकारों को ‘सार्वजनिक विश्वास का घोर उल्लंघन’ करने के लिए फटकार लगाई थी।
सुप्रीम कोर्ट ने मई 2025 में एनटीबीसीएल की पुनर्विचार याचिका भी खारिज कर दी थी।
अदालत ने कहा था कि एनटीबीसीएल ने परियोजना लागत और पर्याप्त लाभ पहले ही वसूल लिए हैं, इसलिए टोल वसूली का कोई औचित्य नहीं बचा है। कैग की रिपोर्ट के अनुसार, 2001 से 2016 के बीच एनटीबीसीएल ने टोल के रूप में ₹892.51 करोड़ की आय प्राप्त की थी, सभी ऋणों को ब्याज सहित चुका दिया था, और ₹243.07 करोड़ के लाभांश अपने शेयरधारकों को दे दिए थे।
कोर्ट ने यह भी कहा था कि नोएडा प्राधिकरण ने एनटीबीसीएल को टोल वसूली का अधिकार देकर अपने अधिकार क्षेत्र से बाहर जाकर कार्य किया, जिससे निजी लाभ को सार्वजनिक हित पर तरजीह दी गई, जो संविधान के अनुसार अमान्य है।