एलटीटीई पर प्रतिबंध मामले में ‘तमिल ईलम सरकार’ के स्वयंभू ‘प्रधानमंत्री’ की याचिका सुप्रीम कोर्ट ने नहीं सुनी, वापस लेने की अनुमति दी

सुप्रीम कोर्ट ने बुधवार को उस याचिका पर विचार करने से इनकार कर दिया जिसे अमेरिका में रह रहे विश्वनाथन रुद्रकुमारन ने दायर किया था। रुद्रकुमारन खुद को ‘तमिल ईलम की अंतरराष्ट्रीय सरकार का प्रधानमंत्री’ बताते हैं और वे लिबरेशन टाइगर्स ऑफ तमिल ईलम (LTTE) को गैरकानूनी संगठन घोषित करने से संबंधित कार्यवाही में पक्षकार बनने की मांग कर रहे थे।

न्यायमूर्ति विक्रम नाथ और न्यायमूर्ति संदीप मेहता की पीठ ने याचिका पर विचार करने से असहमति जताई, जिसके बाद याचिकाकर्ता के वकील ने इसे वापस ले लिया। अदालत ने याचिका को वापस लेने की अनुमति दी और कहा कि याचिकाकर्ता कानून के अनुसार उपलब्ध अन्य उपायों का सहारा ले सकता है।

रुद्रकुमारन का जन्म श्रीलंका में हुआ था और वे वर्तमान में अमेरिका में रह रहे हैं। उन्होंने अक्टूबर 2024 के दिल्ली हाईकोर्ट के आदेश को सुप्रीम कोर्ट में चुनौती दी थी। हाईकोर्ट ने उनकी उस याचिका को खारिज कर दिया था जिसमें उन्होंने यूएपीए ट्रिब्यूनल की कार्यवाही में पक्षकार के रूप में सुने जाने की मांग की थी।

Video thumbnail

यह ट्रिब्यूनल जून 2024 में गठित हुआ था ताकि केंद्र सरकार द्वारा एलटीटीई को गैरकानूनी संगठन घोषित करने के आदेश पर विचार किया जा सके।

READ ALSO  इंस्टाग्राम पर रील बनाने में बहुत अधिक समय बिताने के लिए पत्नी कि हत्या का आरोपी गिरफ़्तार

इससे पहले 11 सितंबर 2024 को ट्रिब्यूनल ने उनकी पक्षकार बनने की अर्जी खारिज कर दी थी। इसके खिलाफ उन्होंने हाईकोर्ट का रुख किया था, जहां से राहत नहीं मिली।

सुनवाई के दौरान याचिकाकर्ता के वकील ने अदालत को बताया कि रुद्रकुमारन “तमिल निर्वासित सरकार” के स्वयंभू प्रधानमंत्री हैं। इस पर पीठ ने टिप्पणी की, “स्वयं घोषित।”

वकील ने तर्क दिया कि असली प्रश्न यह है कि क्या किसी विदेशी नागरिक को केवल इस आधार पर ट्रिब्यूनल की कार्यवाही में सुना नहीं जाना चाहिए कि वह विदेशी है, जबकि उसके पास प्रासंगिक जानकारी है।

उन्होंने कहा कि सरकार की अधिसूचना में तमिल ईलम की विचारधारा को ही गैरकानूनी बताया गया है, जिससे याचिकाकर्ता सीधे प्रभावित होते हैं। वकील ने यह भी बताया कि रुद्रकुमारन एलटीटीई के कानूनी सलाहकार रहे हैं और शांति प्रक्रिया में शामिल रहे हैं।

पीठ ने कहा कि हाईकोर्ट पहले ही यह स्पष्ट कर चुका है कि याचिकाकर्ता एलटीटीई का सदस्य नहीं है। साथ ही, पीठ ने याद दिलाया कि केंद्र सरकार ने 1992 में एलटीटीई को गैरकानूनी संगठन घोषित किया था और 14 मई 2024 की अधिसूचना के माध्यम से इस प्रतिबंध को पांच साल के लिए और बढ़ाया गया है।

READ ALSO  सुप्रीम कोर्ट ने सेवानिवृत्त सैन्य अधिकारी के खिलाफ बलात्कार का मामला खारिज किया

जब अदालत ने याचिका पर विचार करने से इनकार करने के संकेत दिए, तो याचिकाकर्ता के वकील ने इसे वापस लेने की अनुमति मांगी। अदालत ने कहा:

“याचिकाकर्ता के वकील ने निर्देश प्राप्त कर कहा है कि याचिका को वापस लिया जाए, जिससे याचिकाकर्ता को कानून के अनुसार अन्य उपायों का सहारा लेने की स्वतंत्रता रहे।”

दिल्ली हाईकोर्ट ने अपने आदेश में कहा था कि देश की सुरक्षा और अखंडता से जुड़े मामलों में न्यायिक पुनरावलोकन अत्यंत सावधानी से किया जाना चाहिए।

हाईकोर्ट ने कहा था:

“याचिकाकर्ता स्वयं को तमिल ईलम की अंतरराष्ट्रीय सरकार का प्रधानमंत्री बताते हैं और ऐसे व्यक्ति को यूएपीए के तहत कार्यवाही में हस्तक्षेप की अनुमति देने का प्रभाव बहुत व्यापक होगा, विशेष रूप से जब वह स्वयं एलटीटीई का सदस्य या पदाधिकारी नहीं है। याचिकाकर्ता का रुख नीति निर्माण और अन्य देशों के साथ संबंधों पर दूरगामी असर डाल सकता है, जिन पर न तो ट्रिब्यूनल और न ही यह न्यायालय निर्णय ले सकता है।”

READ ALSO  सुप्रीम कोर्ट पैनल ने दक्षिण दिल्ली रिज क्षेत्र में ग्रुप हाउसिंग प्रोजेक्ट को दी सशर्त मंज़ूरी, अंतिम निर्णय सुप्रीम कोर्ट पर निर्भर

एलटीटीई को सबसे पहले केंद्र सरकार ने “आतंकी संगठन” घोषित किया था। 1992 में इसे यूएपीए के तहत “गैरकानूनी संगठन” घोषित किया गया। इसके बाद समय-समय पर प्रतिबंध बढ़ाया गया है। 14 मई 2024 की अधिसूचना के तहत इसे पांच साल के लिए फिर से गैरकानूनी घोषित किया गया।

Law Trend
Law Trendhttps://lawtrend.in/
Legal News Website Providing Latest Judgments of Supreme Court and High Court

Related Articles

Latest Articles