सुप्रीम कोर्ट ने देशभर की सड़कों पर चलने वाली एम्बुलेंसों में पर्याप्त जीवनरक्षक सुविधाएं सुनिश्चित करने के लिए कानूनी ढांचा बनाने और लागू करने की मांग करने वाली याचिका पर केंद्र सरकार और अन्य पक्षों से जवाब मांगा है।
मुख्य न्यायाधीश बी. आर. गवई और न्यायमूर्ति के. विनोद चंद्रन की पीठ ने 10 अक्टूबर को आदेश पारित करते हुए केंद्र, स्वास्थ्य एवं परिवार कल्याण मंत्रालय और सड़क परिवहन एवं राजमार्ग मंत्रालय को नोटिस जारी किया। नोटिस पर चार सप्ताह में जवाब मांगा गया है।
याचिका में एक स्वतंत्र समिति गठित करने का भी अनुरोध किया गया है, जो एम्बुलेंसों के संचालन, रखरखाव और नियमन की जमीनी हकीकत का मूल्यांकन कर सके और मानक संचालन प्रक्रिया (SOP) तथा वास्तविक स्थिति के बीच की खाई की पहचान कर सके।

यह याचिका साईअनशा पनंगीपल्ली और प्रिया सरकार ने दायर की है। पनंगीपल्ली, प्रसिद्ध कार्डियो-थोरेसिक सर्जन और एम्स (AIIMS) के पूर्व निदेशक डॉ. पी. वेणुगोपाल की पुत्री हैं। याचिका में बताया गया है कि डॉ. वेणुगोपाल की मृत्यु अस्पताल ले जाते समय एम्बुलेंस में जीवनरक्षक सुविधाओं की “गंभीर कमी” के कारण हो गई थी। एम्बुलेंस में ऑक्सीजन जैसी बुनियादी सुविधा तक मौजूद नहीं थी।
याचिकाकर्ताओं की ओर से वरिष्ठ अधिवक्ता पर्सीवल बिलिमोरिया और अधिवक्ता जैस्मिन दमकेवाला पेश हुए। उन्होंने कहा कि याचिका प्रतिद्वंद्वी मुकदमा नहीं है, बल्कि एक गंभीर सार्वजनिक समस्या को उजागर करने के उद्देश्य से दायर की गई है।
याचिका में कहा गया है कि एम्बुलेंस सेवाओं के लिए कोई सख्त और लागू करने योग्य नियामक ढांचा न होने के कारण कई जीवन समय पर बचाए नहीं जा पाते।
स्वास्थ्य मंत्रालय की राष्ट्रीय स्वास्थ्य मिशन के तहत 16वीं कॉमन रिव्यू मिशन रिपोर्ट में राज्यों की एम्बुलेंस सेवाओं में व्यापक अव्यवस्थाओं और कमियों को चिन्हित किया गया है।
इसके अलावा, नीति आयोग ने दिसंबर 2023 में दो विस्तृत रिपोर्टें जारी की थीं, जिनमें आपातकालीन मामलों के बोझ, स्वास्थ्य अवसंरचना, मानव संसाधन और उपकरणों की स्थिति पर प्रकाश डाला गया। इन रिपोर्टों के अनुसार, देश की 90 प्रतिशत एम्बुलेंस बिना उचित उपकरणों और ऑक्सीजन जैसी बुनियादी सुविधाओं के चल रही हैं।
याचिकाकर्ताओं ने दलील दी कि यह स्थिति संविधान के अनुच्छेद 21 के तहत प्रदत्त जीवन के मौलिक अधिकार का उल्लंघन करती है, क्योंकि आपात स्थिति में अपर्याप्त सुविधाएं समय से पहले मृत्यु या पूर्ण स्वास्थ्य लाभ की संभावना को कम कर देती हैं।
याचिका में अदालत से निम्नलिखित निर्देश मांगे गए हैं:
- ऐसा कानूनी ढांचा तैयार और लागू किया जाए, जिससे एम्बुलेंसों में हमेशा आवश्यक जीवनरक्षक उपकरण, आपातकालीन दवाएं और सामग्रियां उपलब्ध रहें।
- जनता के लिए ऑनलाइन या टेलीफोन हेल्पलाइन की व्यवस्था की जाए, जिससे वे एम्बुलेंस सेवाओं में कमी, अधिक शुल्क वसूली, लापरवाही से गाड़ी चलाने, देरी या अन्य गड़बड़ियों की शिकायत कर सकें।
- राज्यों द्वारा एम्बुलेंस पंजीकरण से पहले तय की गई शर्तों के पालन और निगरानी के लिए प्रभावी तंत्र बनाया जाए, जो वर्तमान में मौजूद नहीं है।
सुप्रीम कोर्ट अब संबंधित प्राधिकरणों के जवाब प्राप्त होने के बाद इस मामले की अगली सुनवाई करेगा।