सुप्रीम कोर्ट ने मंगलवार को भारतीय खाद्य सुरक्षा और मानक प्राधिकरण (FSSAI) की विशेषज्ञ समिति को एक आखिरी मौका देते हुए तीन महीने की अंतिम मोहलत दी है, ताकि वह पैकेज्ड खाद्य उत्पादों पर फ्रंट-ऑफ-पैकेज वार्निंग लेबल (FOPL) अनिवार्य करने के प्रस्ताव पर अपनी सिफारिशें प्रस्तुत कर सके।
न्यायमूर्ति जे.बी. पारदीवाला और न्यायमूर्ति आर. महादेवन की पीठ ने समिति द्वारा मांगी गई अतिरिक्त समय की मांग स्वीकार करते हुए कहा, “हम तीन महीने का और समय देते हैं, यह आखिरी अवसर होगा। अगर समिति निर्धारित समय सीमा में रिपोर्ट पेश नहीं करती, तो हम कानून के अनुसार उचित कदम उठाएंगे।”
एफएसएसएआई ने बताया कि समिति पूरे भारत में व्यापक विचार-विमर्श कर रही है और इसी कारण अतिरिक्त समय की आवश्यकता है। समिति को पहले 9 अप्रैल को तीन महीने की अवधि दी गई थी, जो 9 जुलाई को समाप्त हो गई। यह मामला एक जनहित याचिका (PIL) से जुड़ा है जिसे ‘3S और अवर हेल्थ सोसाइटी’ नामक गैर-सरकारी संस्था ने दायर किया था। याचिका में उच्च चीनी, नमक और संतृप्त वसा युक्त पैकेज्ड फूड पर चेतावनी लेबल अनिवार्य करने की मांग की गई थी।

एफएसएसएआई ने अपने आवेदन में कहा कि मार्च 2024 में हुई 46वीं बैठक में यह तय किया गया था कि विशेषज्ञ समिति को केवल बड़े औद्योगिक संगठनों (जैसे CII, FICCI) तक सीमित न रहकर एमएसएमई, स्वयं सहायता समूहों, उपभोक्ता संगठनों और अन्य जमीनी स्तर के हितधारकों से भी राय लेनी चाहिए। मई में समिति ने दिल्ली, गोवा, हैदराबाद और कोलकाता में फूड बिजनेस ऑपरेटरों और अन्य पक्षकारों के साथ बैठकें कीं।
हालांकि, याचिकाकर्ता के वकील राजीव शंकर द्विवेदी ने अदालत को बताया कि पिछले तीन महीनों में विशेषज्ञ समिति की कोई बैठक ही नहीं हुई। उन्होंने एफएसएसएआई पर प्रक्रिया को जानबूझकर विलंबित करने का आरोप लगाया। उन्होंने यह भी कहा कि एफएसएसएआई द्वारा प्रस्तावित इंडियन न्यूट्रिशनल रेटिंग (INR) मॉडल, जिसमें 0.5 से 5 स्टार तक रेटिंग दी जाती है, उपभोक्ताओं को उत्पाद के अस्वास्थ्यकर तत्वों की सटीक जानकारी नहीं देता।
दूसरी ओर, केंद्र सरकार ने एफिडेविट में इस INR मॉडल का बचाव किया है, यह कहते हुए कि इसमें चीनी, नमक और वसा जैसे ‘नकारात्मक पोषक तत्वों’ के साथ-साथ फाइबर, प्रोटीन जैसे ‘सकारात्मक तत्वों’ को भी ध्यान में रखा जाता है, जिससे उपभोक्ताओं को समग्र स्वास्थ्य संकेत मिलता है।
याचिकाकर्ता ने कहा कि चेतावनी लेबल से उपभोक्ता एक सूचित निर्णय ले सकते हैं और जंक फूड की खपत को कम किया जा सकता है। उन्होंने विश्व स्वास्थ्य संगठन (WHO) की रिपोर्टों का हवाला देते हुए इसे ‘डायबिटीज जैसी मूक महामारी’ से निपटने के लिए आवश्यक नीति बताया।