सुप्रीम कोर्ट ने अपने एक फैसले में स्पष्ट किया है कि एक बीमा कंपनी आग (Fire) से हुए नुकसान के दावे को केवल इस आधार पर अस्वीकार नहीं कर सकती कि आग का तात्कालिक कारण (Proximate Cause) ‘चोरी या सेंधमारी’ की कोशिश थी। कोर्ट ने कहा कि भले ही ‘दंगे, हड़ताल और दुर्भावनापूर्ण क्षति’ (RSMD) खंड के तहत चोरी को पॉलिसी से बाहर रखा गया हो, लेकिन यदि ‘आग’ स्वयं पॉलिसी में एक ‘निर्दिष्ट जोखिम’ (Specified Peril) है और उसमें चोरी से लगी आग को बाहर नहीं रखा गया है, तो बीमा कंपनी को भुगतान करना होगा।
जस्टिस जे.के. माहेश्वरी और जस्टिस विजय बिश्नोई की पीठ ने राष्ट्रीय उपभोक्ता विवाद निवारण आयोग (NCDRC) के उस आदेश को रद्द कर दिया, जिसमें बीमित कंपनी की शिकायत को खारिज कर दिया गया था। सुप्रीम कोर्ट ने मामले को नुकसान का आकलन करने के लिए वापस NCDRC के पास भेज दिया है।
मामले की पृष्ठभूमि
अपीलकर्ता, सीमेंट कॉर्पोरेशन ऑफ इंडिया ने अपनी छत्तीसगढ़ स्थित मंधार सीमेंट फैक्ट्री के लिए प्रतिवादी, आईसीआईसीआई लोम्बार्ड जनरल इंश्योरेंस कंपनी लिमिटेड से “स्टैंडर्ड फायर एंड स्पेशल पेरिल्स पॉलिसी (मटेरियल डैमेज)” ली थी।
1 नवंबर 2006 की सुबह, फैक्ट्री में आग लग गई। सर्वेक्षक (Surveyor) की रिपोर्ट के अनुसार, कुछ चोर फैक्ट्री में वाइंडिंग कॉपर और ट्रांसफार्मर का तेल चुराने के इरादे से घुसे थे। उन्होंने बोल्ट कटर और ब्लो टॉर्च/पोर्टेबल गैस कटर का इस्तेमाल किया, जिससे एक ट्रांसफार्मर में आग लग गई और संपत्ति को भारी नुकसान हुआ।
अपीलकर्ता ने 2,20,14,190 रुपये का दावा पेश किया। हालांकि, सर्वेक्षक ने अपनी राय दी कि आग चोरी के प्रयास का परिणाम थी। इसके आधार पर, बीमा कंपनी ने 4 जनवरी 2008 को यह कहते हुए दावा खारिज कर दिया कि:
“…नुकसान का तात्कालिक कारण सेंधमारी (Burglary) था। कृपया ध्यान दें कि यह पॉलिसी एक ‘नामित जोखिम पॉलिसी’ (Named Peril Policy) है और यह जोखिम पॉलिसी (RSMD एक्सक्लूजन क्लॉज-D) के तहत कवर नहीं किया गया है।”
इसके खिलाफ अपीलकर्ता ने NCDRC का दरवाजा खटखटाया। आयोग ने शिकायत को खारिज कर दिया और कहा कि नुकसान का मुख्य कारण सेंधमारी थी, जो कवर नहीं थी। NCDRC ने न्यू इंडिया एश्योरेंस कंपनी लिमिटेड बनाम जुआरी इंडस्ट्रीज लिमिटेड (2009) में सुप्रीम कोर्ट के फैसले का हवाला देते हुए कहा कि ‘सक्रिय और प्रभावी कारण’ सेंधमारी थी, आग नहीं। इसके बाद अपीलकर्ता ने सुप्रीम कोर्ट में अपील दायर की।
पक्षों की दलीलें
अपीलकर्ता के वकील ने तर्क दिया कि पॉलिसी विशेष रूप से “आग” से होने वाले नुकसान से सुरक्षा प्रदान करती है। यह कहा गया कि “आग” जोखिम के तहत, पॉलिसी केवल स्वतः दहन (spontaneous combustion) या किसी सार्वजनिक प्राधिकरण के आदेश से संपत्ति को जलाने से हुए नुकसान को ही बाहर (exclude) रखती है। अपीलकर्ता का कहना था कि चूंकि पॉलिसी में आग के मामले में चोरी या सेंधमारी को अपवाद के रूप में सूचीबद्ध नहीं किया गया है, इसलिए आग लगने का कारण अप्रासंगिक है।
दूसरी ओर, प्रतिवादी बीमा कंपनी ने तर्क दिया कि पॉलिसी एक “नामित जोखिम पॉलिसी” थी और विशेष रूप से क्लॉज V(d) (RSMD) के तहत सेंधमारी से होने वाले नुकसान को बाहर रखा गया था। वकील ने दलील दी कि आग लगने से पहले चोरी की घटना हुई थी और यही नुकसान का “सक्रिय और प्रभावी कारण” थी। जुआरी इंडस्ट्रीज मामले का हवाला देते हुए, प्रतिवादी ने जोर देकर कहा कि यदि चोरी नहीं होती, तो आग नहीं लगती, और इसलिए दावा सही ढंग से खारिज किया गया था।
कोर्ट का विश्लेषण
सुप्रीम कोर्ट ने पॉलिसी की शर्तों की जांच की और नोट किया कि “आग” को ‘जोखिम संख्या I’ के रूप में सूचीबद्ध किया गया था। कोर्ट ने पाया कि “आग” जोखिम के लिए विशिष्ट अपवाद (Exclusions) केवल निम्नलिखित तक सीमित थे: (क) किण्वन, प्राकृतिक ताप या स्वतः दहन; और (ख) किसी सार्वजनिक प्राधिकरण के आदेश से बीमित संपत्ति का जलाया जाना।
पीठ की ओर से फैसला लिखते हुए जस्टिस विजय बिश्नोई ने कहा:
“उपरोक्त से यह स्पष्ट है कि ‘आग’ के निर्दिष्ट जोखिम में दिए गए अपवादों में सेंधमारी/चोरी शामिल नहीं है… एक बार जब यह विवादित नहीं है कि नुकसान आग के कारण हुआ है, तो आग लगने का कारण अप्रासंगिक हो जाता है। बीमा कंपनी आग से हुए नुकसान की भरपाई करने से केवल इस आधार पर इनकार नहीं कर सकती कि आग का तात्कालिक कारण सेंधमारी/चोरी था (जिसे RSMD खंड के तहत बाहर रखा गया है), विशेष रूप से तब जब ‘आग’ के निर्दिष्ट जोखिम में ऐसा कोई अपवाद प्रदान नहीं किया गया है।”
कोर्ट ने इस बात पर जोर दिया कि हालांकि पॉलिसी में सामान्य अपवाद के तहत “बीमित जोखिम के घटने के दौरान या बाद में” चोरी से होने वाले नुकसान को बाहर रखा गया है, लेकिन पॉलिसी उस स्थिति पर चुप है जहां चोरी/सेंधमारी बीमित जोखिम (आग) से पहले हुई हो।
कानूनी नजीरों का हवाला देते हुए, कोर्ट ने श्री बालाजी ट्रेडर्स बनाम यूनाइटेड इंडिया इंश्योरेंस कंपनी लिमिटेड (2005) (जिसमें मद्रास हाईकोर्ट के फैसले की पुष्टि की गई थी) और हालिया फैसले ओरियन कॉन्मर्कस प्रा. लिमिटेड बनाम नेशनल इंश्योरेंस कंपनी लिमिटेड (2025) का उल्लेख किया। कोर्ट ने दोहराया कि आग का कारण तब तक अप्रासंगिक है जब तक कि यह बीमित व्यक्ति के जानबूझकर किए गए कृत्य (Willful Act) से न हुई हो।
कोर्ट ने नोट किया:
“अब यह स्थापित हो चुका है कि अपीलकर्ता को हुआ नुकसान केवल आग के कारण था और चोरी/सेंधमारी की घटना केवल आग लगने की घटना से पहले हुई थी।”
अपवर्जन खंडों (Exclusion Clauses) की व्याख्या पर, पीठ ने टेक्सको मार्केटिंग प्राइवेट लिमिटेड बनाम टाटा एआईजी जनरल इंश्योरेंस कंपनी लिमिटेड (2023) और शिवराम चंद्र जगन्नाथ कोल्ड स्टोरेज बनाम न्यू इंडिया एश्योरेंस कंपनी लिमिटेड (2022) पर भरोसा किया। कोर्ट ने कहा कि अपवर्जन खंडों का अर्थ सख्ती से निकाला जाना चाहिए और किसी भी अस्पष्टता की स्थिति में व्याख्या बीमित व्यक्ति के पक्ष में होनी चाहिए।
कोर्ट ने कहा:
“यह एक स्थापित कानून है कि बीमा अनुबंध में अपवादों को सख्ती से पढ़ा जाना चाहिए और इसलिए, RSMD खंड के तहत प्रदान किया गया अपवाद बीमाकर्ता के दायित्व को खत्म नहीं करेगा, जब नुकसान या क्षति आग के जोखिम के कारण हुई हो, जिसके अपने स्वतंत्र अपवाद हैं।”
निर्णय
सुप्रीम कोर्ट ने अपील को स्वीकार कर लिया और NCDRC के 16 जुलाई 2015 के फैसले तथा प्रतिवादी के दावा खारिज करने वाले पत्र को रद्द कर दिया।
कोर्ट ने कहा कि प्रतिवादी द्वारा दावे को खारिज करने का कोई औचित्य नहीं था। मामले को अपीलकर्ता द्वारा दायर दावे के अनुसार नुकसान का आकलन करने के लिए NCDRC को वापस भेज दिया गया है। कोर्ट ने NCDRC को निर्देश दिया कि वह इस मुद्दे का निर्णय शीघ्रता से करे और “इस फैसले की प्रमाणित प्रति प्राप्त होने की तारीख से छह महीने के भीतर” मामले का निपटारा करे।
केस विवरण:
- केस टाइटल: सीमेंट कॉर्पोरेशन ऑफ इंडिया बनाम आईसीआईसीआई लोम्बार्ड जनरल इंश्योरेंस कंपनी लिमिटेड
- केस संख्या: सिविल अपील संख्या 2052 / 2016
- साइटेशन: 2025 INSC 1444
- कोरम: जस्टिस जे.के. माहेश्वरी और जस्टिस विजय बिश्नोई

