पत्नी से घर के खर्च का हिसाब मांगना ‘क्रूरता’ नहीं: सुप्रीम कोर्ट ने पति के खिलाफ 498A का मामला रद्द किया

सुप्रीम कोर्ट ने एक महत्वपूर्ण फैसले में स्पष्ट किया है कि वैवाहिक जीवन की छोटी-मोटी नोकझोंक (daily wear and tear) को भारतीय दंड संहिता (IPC) की धारा 498A के तहत ‘क्रूरता’ की श्रेणी में नहीं रखा जा सकता। कोर्ट ने माना कि यदि पति अपनी पत्नी से घर के खर्च का हिसाब मांगता है या अपने माता-पिता को पैसे भेजता है, तो इसे आपराधिक कृत्य नहीं माना जा सकता।

जस्टिस बी.वी. नागरत्ना और जस्टिस आर. महादेवन की पीठ ने यह टिप्पणी करते हुए एक पति के खिलाफ दर्ज दहेज प्रताड़ना के मामले को रद्द कर दिया। कोर्ट ने कहा कि पति द्वारा पत्नी को एक्सेल शीट (Excel sheet) में घरेलू खातों का विवरण बनाए रखने के लिए कहना ‘क्रूरता’ नहीं है।

मामले की पृष्ठभूमि

यह अपील पति (आरोपी-अपीलकर्ता) द्वारा तेलंगाना हाईकोर्ट के 27 अप्रैल, 2023 के आदेश के खिलाफ दायर की गई थी। हाईकोर्ट ने धारा 482 सीआरपीसी (CrPC) के तहत पति की याचिका को खारिज कर दिया था और आईपीसी की धारा 498A तथा दहेज निषेध अधिनियम की धारा 3 और 4 के तहत दर्ज एफआईआर (FIR) को रद्द करने से इनकार कर दिया था।

शिकायतकर्ता पत्नी और अपीलकर्ता पति दोनों सॉफ्टवेयर इंजीनियर हैं और अमेरिका में कार्यरत थे। उनकी शादी 4 दिसंबर, 2016 को हुई थी और वे मिशिगन में रहते थे। वैवाहिक कलह के कारण पत्नी 5 अगस्त, 2019 को भारत लौट आई। 11 जनवरी, 2022 को पति ने ‘दांपत्य अधिकारों की पुनर्स्थापना’ (restitution of conjugal rights) के लिए कानूनी नोटिस भेजा। इसके ठीक बाद, 24 जनवरी, 2022 को पत्नी ने पति और उसके परिवार के खिलाफ प्रताड़ना की शिकायत दर्ज करा दी।

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गौर करने वाली बात यह है कि पति के परिवार के अन्य सदस्यों (सास-ससुर आदि) के खिलाफ कार्यवाही को हाईकोर्ट पहले ही एक अलग आदेश द्वारा रद्द कर चुका था।

पक्षकारों की दलीलें

अपीलकर्ता पति के वकील ने तर्क दिया कि एफआईआर में लगाए गए आरोप सामान्य प्रकृति के हैं और निराधार हैं। उन्होंने कहा कि ये आरोप “शादी के सामान्य उतार-चढ़ाव” से संबंधित हैं। यह भी दलील दी गई कि पत्नी द्वारा दर्ज कराई गई शिकायत वास्तव में पति द्वारा भेजे गए कानूनी नोटिस का ‘काउंटरब्लास्ट’ (बदले की कार्रवाई) है और इसे प्रतिशोध की भावना से दर्ज कराया गया है।

दूसरी ओर, पत्नी के वकील ने तर्क दिया कि एफआईआर वास्तविक अत्याचारों पर आधारित है। पत्नी ने आरोप लगाया कि:

  • पति ने उन पर पूर्ण मौद्रिक नियंत्रण (financial control) रखा और उन्हें एक्सेल शीट में खर्च का पूरा विवरण रखने के लिए मजबूर किया।
  • पति अपने माता-पिता और भाइयों को पैसे भेजते थे, जबकि पत्नी को अपनी दैनिक जरूरतों के लिए “पैसे मांगने पड़ते थे”।
  • गर्भावस्था के दौरान पति ने उनका सहयोग नहीं किया और बच्चे के जन्म के बाद उनके वजन को लेकर अपमानित किया।
  • पारिवारिक ऋण चुकाने के लिए दहेज की मांग की गई थी।

कोर्ट का विश्लेषण और टिप्पणी

सुप्रीम कोर्ट ने आरोपों की बारीकी से जांच की और पाया कि ये धारा 498A आईपीसी के तहत ‘क्रूरता’ को साबित करने के लिए पर्याप्त नहीं हैं।

  • वित्तीय नियंत्रण और घरेलू हिसाब: पत्नी की इस शिकायत पर कि उसे हिसाब रखना पड़ता था, कोर्ट ने कहा:
    “यह आरोप कि आरोपी-अपीलकर्ता ने शिकायतकर्ता को सभी खर्चों की एक्सेल शीट बनाए रखने के लिए मजबूर किया, भले ही इसे सच मान लिया जाए, क्रूरता की परिभाषा के तहत नहीं आ सकता।”
  • वित्तीय प्रभुत्व: पीठ ने सामाजिक वास्तविकताओं को स्वीकार करते हुए कहा कि इसे अपराध नहीं बनाया जा सकता:
    “आरोपी-अपीलकर्ता का मौद्रिक और वित्तीय प्रभुत्व… क्रूरता का उदाहरण नहीं हो सकता। यह स्थिति भारतीय समाज का एक प्रतिबिंब है जहाँ घर के पुरुष अक्सर महिलाओं के वित्त पर हावी होने और उसका प्रभार लेने की कोशिश करते हैं, लेकिन आपराधिक मुकदमेबाजी स्कोर सेट करने और व्यक्तिगत प्रतिशोध को पूरा करने का जरिया नहीं बन सकती।”
  • माता-पिता को पैसे भेजना: कोर्ट ने स्पष्ट रूप से कहा:
    “आरोपी-अपीलकर्ता द्वारा अपने परिवार के सदस्यों को पैसे वापस भेजने के कार्य का गलत अर्थ निकालकर इसे आपराधिक अभियोजन का कारण नहीं बनाया जा सकता।”
  • शारीरिक बनावट पर टिप्पणी (Body Shaming): प्रसवोत्तर वजन (postpartum weight) को लेकर अपमानित करने के आरोपों पर कोर्ट ने टिप्पणी की:
    “इसके अलावा, अन्य आरोप… देखभाल की कमी… और बच्चे के जन्म के बाद के वजन के बारे में लगातार ताने, अगर प्रथम दृष्टया स्वीकार भी कर लिए जाएं, तो यह आरोपी-अपीलकर्ता के चरित्र पर बुरा प्रभाव डाल सकते हैं, लेकिन यह क्रूरता की श्रेणी में नहीं आता जिसके लिए उसे मुकदमेबाजी की प्रक्रिया से गुजरना पड़े।”
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कोर्ट ने पाया कि आरोप “अस्पष्ट और सर्वव्यापी” (vague and omnibus) थे। शिकायतकर्ता यह बताने में विफल रही कि उसे कोई गंभीर चोट कैसे पहुंची।

स्टेट ऑफ हरियाणा बनाम भजन लाल (1992) के ऐतिहासिक फैसले का हवाला देते हुए, कोर्ट ने कहा कि यह मामला उन श्रेणियों में आता है जहां आरोप प्रथम दृष्टया कोई अपराध नहीं बनाते या दुर्भावनापूर्ण इरादे से लगाए गए हैं। कोर्ट ने दारा लक्ष्मी नारायण बनाम स्टेट ऑफ तेलंगाना (2025) के हालिया फैसले पर भी भरोसा जताया, जिसमें वैवाहिक विवादों में व्यक्तिगत प्रतिशोध के लिए धारा 498A के दुरुपयोग के खिलाफ चेतावनी दी गई थी।

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निर्णय

सुप्रीम कोर्ट ने अपील स्वीकार कर ली और तेलंगाना हाईकोर्ट के आदेश को खारिज कर दिया। नतीजतन, एफआईआर संख्या 29/2022 और उससे संबंधित शिकायत संख्या 1067/2022 को रद्द (quash) कर दिया गया।

कोर्ट ने यह भी स्पष्ट किया कि इस फैसले का पक्षों के बीच लंबित अन्य वैवाहिक कार्यवाहियों पर कोई असर नहीं पड़ेगा, जिनका निर्णय उनके गुण-दोष के आधार पर किया जाएगा।

केस डिटेल्स (Case Details):

  • केस टाइटल: बेलीडे स्वागत कुमार बनाम स्टेट ऑफ तेलंगाना व अन्य
  • केस नंबर: क्रिमिनल अपील (SLP (Crl.) डायरी नंबर 47072/2023 से उद्भूत)
  • साइटेशन: 2025 INSC 1471
  • कोरम: जस्टिस बी.वी. नागरत्ना और जस्टिस आर. महादेवन

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