देश की न्याय व्यवस्था को एआई तकनीक के जिम्मेदार संचालन के लिए विकसित होना चाहिए: सुप्रीम कोर्ट के न्यायमूर्ति मनमोहन

सुप्रीम कोर्ट के न्यायमूर्ति मनमोहन ने शनिवार को उभरती तकनीकों, विशेष रूप से आर्टिफिशियल इंटेलिजेंस (एआई) के जिम्मेदार संचालन के लिए भारत की न्याय प्रणाली में शीघ्र सुधार और अनुकूलन की आवश्यकता को रेखांकित किया। वह इंटरनेशनल लीगल कॉन्फ्रेंस 2025 में बोल रहे थे, जिसका आयोजन सर्विसेज एक्सपोर्ट प्रमोशन काउंसिल (SEPC), सोसायटी ऑफ इंडियन लॉ फर्म्स (SILF) और इंडियन नेशनल एसोसिएशन ऑफ लीगल प्रोफेशनल्स (INALP) द्वारा किया गया था।

“भारत की कानूनी और नियामक रूपरेखा: अंतरराष्ट्रीय व्यापार के अवसरों की दिशा में” विषयक सम्मेलन को संबोधित करते हुए न्यायमूर्ति मनमोहन ने एआई, डेटा गोपनीयता और साइबर सुरक्षा से उत्पन्न जटिल कानूनी चुनौतियों पर प्रकाश डाला।

न्यायमूर्ति मनमोहन ने कहा, “एआई संगीत रचना कर सकता है, उत्पाद डिजाइन कर सकता है या किताबें लिख सकता है, फिर भी इन कृतियों के स्वामित्व से संबंधित बौद्धिक संपदा अधिकारों में जटिलताएं हैं, जिनका समाधान आसान नहीं है।” उन्होंने कहा, “एआई की तुलना एक प्रतिभाशाली लेकिन अनिश्चित किशोर से की गई है, जिसमें अपार संभावनाएं हैं, लेकिन जिसे अभी नियमों को सीखना बाकी है। हमारी न्याय व्यवस्था को ऐसी तकनीकों के जिम्मेदार संचालन के लिए विकसित होना होगा।”

डेटा गोपनीयता के मुद्दे पर न्यायमूर्ति मनमोहन ने कहा कि सुप्रीम कोर्ट ने निजता को मौलिक अधिकार के रूप में मान्यता देकर सही निर्णय दिया। उन्होंने डिजिटल पर्सनल डेटा प्रोटेक्शन एक्ट को अधिकार-आधारित डेटा प्रणाली की दिशा में एक महत्वपूर्ण कदम बताया।

साइबर सुरक्षा को “डिजिटल अर्थव्यवस्था की नींव” बताते हुए उन्होंने कड़े दंड और साइबर सुरक्षा संस्कृति को अपनाने की आवश्यकता बताई। उन्होंने कहा, “अंतरराष्ट्रीय सहयोग बेहद आवश्यक है क्योंकि साइबर खतरे सीमाओं का सम्मान नहीं करते। वैश्विक व्यापार और निवेश के लिए सुरक्षित डिजिटल वातावरण अनिवार्य है।”

न्यायमूर्ति मनमोहन ने सीमा-रहित डिजिटल दुनिया में बौद्धिक संपदा विवादों की बढ़ती जटिलताओं पर भी बात की। उन्होंने मोबाइल फोन का उदाहरण देते हुए कहा, जिनमें हजारों पेटेंट होते हैं, क्या ऐसे मामलों का देश-देश आधार पर निपटारा व्यावहारिक है या वैश्विक स्तर पर एक समान रॉयल्टी प्रणाली लागू करना बेहतर होगा। उन्होंने कहा, “ऐसी जटिलताएं वैश्विक व्यापार में सुगमता के प्रयासों पर प्रभाव डालती हैं।”

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भारत की फिनटेक क्रांति में नेतृत्वकारी भूमिका की सराहना करते हुए उन्होंने यूनिफाइड पेमेंट्स इंटरफेस (UPI) की सफलता का उल्लेख किया, जिसे वैश्विक स्तर पर उसके पैमाने और दक्षता के लिए मान्यता मिली है। हालांकि, उन्होंने आगाह किया कि तेजी से हो रहे नवाचार के साथ नए नियामक जोखिम भी सामने आते हैं। उन्होंने कहा, “कानूनी ढांचे ऐसे होने चाहिए जो नवाचार को बढ़ावा दें, लेकिन उपभोक्ताओं की सुरक्षा, डेटा गोपनीयता, वित्तीय स्थिरता और अवैध गतिविधियों की रोकथाम को भी सुनिश्चित करें।”

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आशावादी दृष्टिकोण के साथ अपने संबोधन का समापन करते हुए न्यायमूर्ति मनमोहन ने कहा, “हां, हमारे सामने चुनौतियां हैं, चाहे वह बदलती वैश्विक राजनीति हो या तेजी से विकसित होती तकनीकें। लेकिन मुझे गहरी आशा है कि हमारे संवैधानिक मूल्य और कानून के शासन के प्रति हमारी प्रतिबद्धता हमें इन कठिनाइयों से उबारने का मार्ग दिखाएगी।”

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