प्रक्रिया अन्याय का औज़ार नहीं बन सकती, झारखंड लोक सेवा आयोग को उम्मीदवार की मेडिकल परीक्षा कराने का निर्देश: सुप्रीम कोर्ट

सुप्रीम कोर्ट ने कहा है कि कानूनी प्रक्रिया “न्याय की दासी” है और इसे अन्याय को कायम रखने के लिए दंडात्मक औज़ार की तरह इस्तेमाल नहीं किया जा सकता। अदालत ने झारखंड लोक सेवा आयोग (JPSC) को निर्देश दिया कि वह अनुसूचित जनजाति वर्ग की एक अभ्यर्थी की मेडिकल परीक्षा कराए, जिसने राज्य सिविल सेवा परीक्षा के लिखित चरण सफलतापूर्वक उत्तीर्ण किए थे, लेकिन तारीख़ों को लेकर भ्रम के कारण मेडिकल टेस्ट में शामिल नहीं हो सकी।

न्यायमूर्ति विक्रम नाथ और न्यायमूर्ति संदीप मेहता की पीठ ने 4 सितम्बर को मामले की सुनवाई करते हुए कहा कि उम्मीदवार को इतनी कठोर सज़ा नहीं दी जा सकती। अदालत ने टिप्पणी की:

“यह न्यायालय बार-बार कह चुका है कि प्रक्रिया न्याय की सहायक है और इसे अन्याय को कायम रखने के लिए दमनकारी या दंडात्मक उपाय के रूप में इस्तेमाल नहीं किया जाना चाहिए।”

अभ्यर्थी ने झारखंड संयुक्त सिविल सेवा प्रतियोगी परीक्षा, 2021 की प्रारंभिक और मुख्य परीक्षा सफलतापूर्वक उत्तीर्ण की थी। आयोग के विज्ञापन के अनुसार, रिकॉर्ड सत्यापन 8 से 15 मई 2022 तक होना था और साक्षात्कार 9 से 16 मई 2022 तक। इसमें यह भी उल्लेख था कि साक्षात्कार में शामिल उम्मीदवारों की मेडिकल जांच “अगले दिन” रांची के एक अस्पताल में होगी।

अभ्यर्थी का मानना था कि अंतिम दिन साक्षात्कार (16 मई) के बाद उसका मेडिकल टेस्ट 17 मई को होगा। लेकिन जब वह उस दिन अस्पताल पहुँची तो उसे बताया गया कि उसकी गैर-हाज़िरी के चलते उसका चयन रद्द कर दिया गया है।

READ ALSO  हाईकोर्ट के आदेश की वकील द्वारा सत्यापित डाउन्लोडेड प्रति मान्य है: हिमाचल प्रदेश हाईकोर्ट

उसकी याचिका झारखंड हाईकोर्ट ने सितम्बर 2024 में यह कहते हुए खारिज कर दी कि चयन प्रक्रिया समाप्त हो चुकी है।

सुप्रीम कोर्ट ने कहा कि विज्ञापन की भाषा स्वयं भ्रम पैदा करती है और इसमें गैर-हाज़िरी के परिणाम का कोई स्पष्ट उल्लेख नहीं था। इसमें आकस्मिक परिस्थितियों में सुनवाई का अवसर देने का भी प्रावधान नहीं था।

पीठ ने कहा कि राज्य और उसकी संस्थाएं “आदर्श नियोक्ता” के रूप में संविधान के समानता सिद्धांतों का पालन करने के लिए बाध्य हैं।

“संविधान के वादे को निभाने के लिए, खासकर वंचित वर्गों को ऊपर उठाने हेतु, ऐसी प्रक्रियात्मक बाधाओं का इस्तेमाल कर अतिरिक्त कठिनाई और अन्याय नहीं पहुँचाया जाना चाहिए। उद्देश्य उत्थान का होना चाहिए, न कि शुरूआत में ही अस्वीकृति का रास्ता ढूँढने का।”

READ ALSO  कर्नाटक हाई कोर्ट ने तलाक के लंबित मामले में पति की मस्तिष्क स्थिति की विशेषज्ञ समीक्षा के लिए पत्नी की याचिका खारिज की

अदालत ने स्पष्ट किया कि मेडिकल परीक्षण केवल शारीरिक क्षमता की जाँच के लिए होता है, यह उम्मीदवार की योग्यता का आकलन नहीं है।

सुप्रीम कोर्ट ने अभ्यर्थी को एक बार की छूट देते हुए आयोग को उसकी मेडिकल परीक्षा कराने का आदेश दिया। यदि वह नियमों के अनुसार परीक्षण में सफल होती है, तो आयोग को उसके लिए एक अधिसंख्यक (supernumerary) पद सृजित कर नियुक्ति करनी होगी।

अदालत ने यह भी कहा कि उसे उसी तारीख़ से सेवा में निरंतरता (continuity of service) मिलेगी जिस दिन 2021 परीक्षा के तहत अंतिम चयनित उम्मीदवार ने कार्यभार संभाला था।

READ ALSO  यौन उत्पीड़न मामला: दिल्ली पुलिस ने WFI के पूर्व प्रमुख के खिलाफ आरोपों पर नए सिरे से बहस शुरू की
Ad 20- WhatsApp Banner

Law Trend
Law Trendhttps://lawtrend.in/
Legal News Website Providing Latest Judgments of Supreme Court and High Court

Related Articles

Latest Articles