सुप्रीम कोर्ट ने उत्तराधिकार कानून चुनौती पर सुनवाई के दौरान हिंदू सामाजिक ढांचे को अस्थिर न करने की दी चेतावनी

सुप्रीम कोर्ट ने बुधवार को कहा कि वह हिंदू उत्तराधिकार अधिनियम, 1956 की कुछ धाराओं को चुनौती देने वाली याचिकाओं की सुनवाई में अत्यंत सतर्कता बरतेगा, क्योंकि किसी भी निर्णय से सहस्राब्दियों से विद्यमान हिंदू सामाजिक ढांचे को अस्थिर नहीं होना चाहिए।

न्यायमूर्ति बी.वी. नागरत्ना और न्यायमूर्ति आर. महादेवन की पीठ धारा 15 और 16 की वैधता को चुनौती देने वाली याचिकाओं पर सुनवाई कर रही थी। ये धाराएँ उस स्थिति से जुड़ी हैं जब कोई हिंदू महिला बिना वसीयत के निधन हो जाती है। धारा 15 के अनुसार, ऐसी संपत्ति पहले पति के उत्तराधिकारियों को मिलती है और उसके बाद महिला के मायके पक्ष को।

पीठ ने टिप्पणी की,
“हिंदू समाज की जो संरचना पहले से मौजूद है, उसका अवमूल्यन न करें। अदालत आपको सावधान कर रही है। यह एक सामाजिक ढांचा है, इसे आप गिराने की कोशिश न करें… हम नहीं चाहते कि हमारा निर्णय उस ढांचे को तोड़े जो हजारों वर्षों से अस्तित्व में है।”

अदालत ने कहा कि महिलाओं के अधिकारों की रक्षा और व्यापक सामाजिक ढांचे को संरक्षित रखने के बीच संतुलन बनाना आवश्यक है। साथ ही, इसने पक्षकारों को सुप्रीम कोर्ट के मध्यस्थता केंद्र में भेजते हुए आपसी समाधान तलाशने की सलाह दी।

वरिष्ठ अधिवक्ता कपिल सिब्बल, याचिकाकर्ताओं की ओर से पेश होकर, बोले कि इन प्रावधानों में महिलाओं के साथ भेदभाव है और ये उन्हें उत्तराधिकार से वंचित करते हैं। उन्होंने कहा कि केवल परंपरा और रीति-रिवाजों के आधार पर महिलाओं को बराबर के अधिकार से वंचित नहीं किया जा सकता।

वहीं, केंद्र सरकार की ओर से पेश अतिरिक्त सॉलिसिटर जनरल के.एम. नटराज ने इन धाराओं का बचाव करते हुए कहा कि ये “सुनियोजित प्रावधान” हैं और याचिकाकर्ताओं का उद्देश्य “सामाजिक ढांचे को ध्वस्त करना” है।

याचिकाओं में हिंदू उत्तराधिकार अधिनियम, 1956 की धारा 15 और 16 की संवैधानिक वैधता को चुनौती दी गई है। आलोचकों का कहना है कि इन धाराओं के कारण महिलाओं को संपत्ति पर समान अधिकार नहीं मिलते, खासकर तब जब महिला बिना वसीयत के निधन हो जाए।

READ ALSO  इलाहाबाद हाईकोर्ट ने रद्द की एफ़आईआर कहा बिक्री विलेख की तारीख से 14 साल बाद प्राथमिकी दर्ज की गयी

मामला फिलहाल सुप्रीम कोर्ट में लंबित है और इस बीच मध्यस्थता की प्रक्रिया शुरू कर दी गई है।

Law Trend
Law Trendhttps://lawtrend.in/
Legal News Website Providing Latest Judgments of Supreme Court and High Court

Related Articles

Latest Articles