सुप्रीम कोर्ट ने बुधवार को कहा कि वह न्यायमूर्ति यशवंत वर्मा की उस याचिका पर सुनवाई के लिए एक विशेष पीठ गठित करेगा, जिसमें उन्होंने ‘कैश एट रेजिडेंस’ विवाद में उनके खिलाफ की गई इन-हाउस जांच समिति की रिपोर्ट को चुनौती दी है।
यह मामला मुख्य न्यायाधीश बी. आर. गवई, न्यायमूर्ति के. विनोद चंद्रन और न्यायमूर्ति जॉयमाल्या बागची बागची की पीठ के समक्ष उल्लेखित किया गया। न्यायमूर्ति वर्मा की ओर से वरिष्ठ अधिवक्ता कपिल सिब्बल, मुकुल रोहतगी, राकेश द्विवेदी, सिद्धार्थ लूथरा, सिद्धार्थ अग्रवाल और अधिवक्ता जॉर्ज पथन पूथिकोट व मनीषा सिंह सहित कई वकील पेश हुए।
वरिष्ठ वकीलों ने अदालत से कहा, “हमने इलाहाबाद हाईकोर्ट के एक न्यायाधीश की ओर से यह याचिका दाखिल की है। इसमें कुछ संवैधानिक प्रश्न हैं। हम निवेदन करते हैं कि इस पर जल्द से जल्द एक पीठ गठित की जाए।”

इस पर मुख्य न्यायाधीश ने कहा, “यह मामला मेरे द्वारा सुना जाना उचित नहीं होगा।” उन्होंने आगे कहा, “हम इस पर विचार कर एक पीठ का गठन करेंगे।”
समिति पर निष्पक्षता न बरतने का आरोप
न्यायमूर्ति वर्मा ने न सिर्फ जांच समिति की रिपोर्ट को चुनौती दी है, बल्कि पूर्व मुख्य न्यायाधीश संजीव खन्ना द्वारा राष्ट्रपति और प्रधानमंत्री को भेजी गई महाभियोग की अनुशंसा को भी कोर्ट में चुनौती दी है।
अपनी याचिका में उन्होंने आरोप लगाया कि समिति ने उन्हें जवाब देने का समुचित अवसर नहीं दिया और पूर्व निर्धारित निष्कर्षों के साथ काम किया।
“समिति ने याचिकाकर्ता को अपनी प्रक्रिया की कोई जानकारी नहीं दी, साक्ष्य संग्रह में याचिकाकर्ता की राय नहीं ली, गवाहों से उनकी अनुपस्थिति में पूछताछ की, वीडियो रिकॉर्डिंग की जगह केवल पैराफ्रेज़ किए हुए बयान दिए (जबकि वीडियो उपलब्ध थे), केवल ‘आरोप सिद्ध’ करने वाला सामग्री दिखाया, CCTV फुटेज जैसी अहम और उनके पक्ष में जाने वाली सामग्री जुटाने से इनकार किया, व्यक्तिगत सुनवाई का मौका नहीं दिया, कोई स्पष्ट या संभावित आरोप सामने नहीं रखा, बिना सूचना के ‘बर्डन ऑफ प्रूफ’ पलट दिया, और याचिकाकर्ता को प्रभावी बचाव से वंचित कर दिया,” याचिका में कहा गया है।
मामला क्या है?
14 मार्च को दिल्ली में उनके आधिकारिक आवास के आउटहाउस में आग लगने के बाद फायर ब्रिगेड की कार्रवाई के दौरान बड़ी मात्रा में नकदी मिलने का मामला सामने आया था। इस घटना के बाद पूरे देश में विवाद खड़ा हुआ, जिसके बाद तत्कालीन मुख्य न्यायाधीश संजीव खन्ना ने तीन सदस्यीय इन-हाउस जांच समिति गठित की थी।
इस समिति में न्यायमूर्ति शील नागू (तत्कालीन मुख्य न्यायाधीश, पंजाब और हरियाणा हाईकोर्ट), न्यायमूर्ति जी. एस. संधावालिया (तत्कालीन मुख्य न्यायाधीश, हिमाचल प्रदेश हाईकोर्ट), और न्यायमूर्ति अनु शिवरामन (न्यायाधीश, कर्नाटक हाईकोर्ट) शामिल थे। जांच के दौरान न्यायमूर्ति वर्मा को इलाहाबाद हाईकोर्ट वापस भेज दिया गया और उनसे न्यायिक कार्य वापस ले लिया गया।
समिति ने मई में अपनी रिपोर्ट तत्कालीन CJI खन्ना को सौंप दी, जिन्होंने इसे राष्ट्रपति और प्रधानमंत्री को भेज दिया क्योंकि न्यायमूर्ति वर्मा ने इस्तीफा देने से इनकार कर दिया था।
रिपोर्ट में कहा गया कि 14 मार्च की घटना के बाद न्यायमूर्ति वर्मा का व्यवहार “अस्वाभाविक” था, जिससे उनके खिलाफ “नकारात्मक अनुमान” लगाए गए।
समिति ने 55 गवाहों के बयान दर्ज किए, जिसमें न्यायमूर्ति वर्मा और उनकी बेटी भी शामिल थीं, और फायर ब्रिगेड द्वारा लिए गए वीडियो व फोटो जैसे इलेक्ट्रॉनिक साक्ष्यों का विश्लेषण किया। समिति ने पाया कि नकदी उनके आधिकारिक परिसर में मौजूद थी।
समिति के अनुसार, जिस स्टोररूम में नकदी मिली वह “न्यायमूर्ति वर्मा या उनके परिवार के प्रत्यक्ष या परोक्ष नियंत्रण” में था, और ऐसे में नकदी की उपस्थिति को लेकर सफाई देने की जिम्मेदारी उन्हीं पर थी। समिति के अनुसार, न्यायमूर्ति वर्मा केवल “सादे इनकार” या “षड्यंत्र का आरोप” लगाते रहे और कोई ठोस सफाई नहीं दे पाए, जिससे उनके खिलाफ कार्रवाई के पर्याप्त आधार मौजूद हैं।