सुप्रीम कोर्ट ने सोमवार को चुनाव आयोग द्वारा बिहार में विशेष सघन मतदाता सूची पुनरीक्षण (SIR) के फैसले को चुनौती देने वाली याचिकाओं पर 10 जुलाई को सुनवाई के लिए सहमति जताई है। बिहार में आगामी विधानसभा चुनावों की पृष्ठभूमि में आयोग के इस निर्णय पर कई विपक्षी नेताओं और सामाजिक संगठनों ने आपत्ति जताई है।
न्यायमूर्ति सुधांशु धूलिया और न्यायमूर्ति जॉयमाल्य बागची की आंशिक कार्यदिवसीय पीठ ने वरिष्ठ अधिवक्ता कपिल सिब्बल की तात्कालिक सुनवाई की अपील पर गौर किया। सिब्बल ने कई याचिकाकर्ताओं की ओर से अदालत से चुनाव आयोग को नोटिस जारी करने की मांग की, लेकिन पीठ ने यह कहते हुए गुरुवार को सुनवाई तय कर दी, “हम इसे गुरुवार को सुनेंगे।”
इन याचिकाओं में चुनाव आयोग के 24 जून के आदेश की वैधता और समय को चुनौती दी गई है, जिसमें बिहार में राज्यव्यापी मतदाता सूची पुनरीक्षण का निर्देश दिया गया है। याचिकाकर्ताओं में राष्ट्रीय जनता दल (राजद) सांसद मनोज झा और तृणमूल कांग्रेस सांसद महुआ मोइत्रा शामिल हैं। झा की याचिका में आरोप लगाया गया है कि आयोग का यह कदम संविधान के अनुच्छेद 14 (समानता का अधिकार), 21 (जीवन और स्वतंत्रता का अधिकार), 325 (धर्म, जाति, लिंग आदि के आधार पर मतदाता सूची से बहिष्कार पर रोक) और 326 (सार्वभौमिक वयस्क मताधिकार) का उल्लंघन करता है।

लोकतांत्रिक सुधार संगठन एसोसिएशन फॉर डेमोक्रेटिक रिफॉर्म्स (ADR), पीपुल्स यूनियन फॉर सिविल लिबर्टीज (PUCL) और योगेंद्र यादव जैसे सामाजिक कार्यकर्ताओं ने भी इसी प्रकार की याचिकाएं दाखिल की हैं।
चुनाव आयोग का कहना है कि यह विशेष पुनरीक्षण असंगत या अयोग्य मतदाताओं को हटाकर मतदाता सूची को स्वच्छ और सटीक बनाने के उद्देश्य से किया जा रहा है। बिहार में पिछली बार ऐसा सघन पुनरीक्षण वर्ष 2003 में किया गया था।
सुप्रीम कोर्ट का आगामी निर्णय बिहार में चुनावी तैयारियों पर दूरगामी प्रभाव डाल सकता है, जहां इस वर्ष के अंत में चुनाव संभावित हैं।