सुप्रीम कोर्ट ने शुक्रवार को उस याचिका पर सुनवाई करने पर सहमति जताई जिसमें भारतीय नर्स निमिषा प्रिया के मामले में व्यक्तियों और संगठनों द्वारा दिए जा रहे “अप्रमाणित सार्वजनिक बयानों” पर रोक लगाने का अनुरोध किया गया है। प्रिया को यमन में अपने व्यवसायी साझेदार की हत्या के मामले में मौत की सजा सुनाई गई है।
न्यायमूर्ति विक्रम नाथ और संदीप मेहता की पीठ ने याचिकाकर्ता के.ए. पॉल को अपनी याचिका की प्रति अटॉर्नी जनरल आर. वेंकटरमणी के कार्यालय को सौंपने का निर्देश दिया और मामले पर नोटिस जारी किया। अगली सुनवाई 25 अगस्त को होगी।
पॉल ने अदालत को बताया कि उन्हें हाल ही में प्रिया और उनकी मां का एक “चौंकाने वाला पत्र” प्राप्त हुआ है। उनका कहना था कि वह पिछले कई दिनों से यमन में हैं और प्रिया के परिवार, पीड़ित परिवार तथा हौती नेतृत्व से इस मामले में बातचीत कर रहे हैं।

उन्होंने कहा कि इस समय नाजुक वार्ता चल रही है लेकिन कुछ लोग अप्रमाणित बयान देकर स्थिति को जटिल बना रहे हैं। पॉल ने अदालत से पूर्ण मीडिया गैग आदेश लागू करने का अनुरोध किया और कहा कि केवल सरकार को ही इस मामले पर बयान देने की अनुमति होनी चाहिए।
पीठ ने कहा कि पॉल की याचिका को पहले से लंबित उस याचिका के साथ जोड़ा जाएगा जिसे सेव निमिषा प्रिया इंटरनेशनल एक्शन काउंसिल ने दायर किया है और जो प्रिया को कानूनी सहायता प्रदान कर रहा है।
पीठ ने कहा, “और क्या चाहिए? आपको नोटिस मिल गया है और आपका मामला यहां लंबित याचिका के साथ जोड़ दिया जाएगा।”
याचिका में न केवल गैग आदेश बल्कि केंद्र सरकार को तुरंत और समन्वित कूटनीतिक प्रयास करने का निर्देश देने की मांग की गई है ताकि प्रिया की मौत की सजा को आजीवन कारावास में बदला जा सके। साथ ही संबंधित अधिकारियों को सक्षम अदालत में जाकर एक समयबद्ध मीडिया गैग आदेश लाने का निर्देश देने की भी मांग की गई है।
38 वर्षीय निमिषा प्रिया, केरल के पालक्काड़ की रहने वाली हैं। उन्हें 2017 में अपने यमनी व्यवसायी साझेदार की हत्या के मामले में दोषी ठहराया गया था। 2020 में उन्हें मौत की सजा सुनाई गई और 2023 में उनकी अंतिम अपील भी खारिज हो गई।
प्रिया की फांसी, जो 16 जुलाई 2025 को निर्धारित थी, पिछले महीने टाल दी गई थी। 18 जुलाई को केंद्र सरकार ने सुप्रीम कोर्ट को सूचित किया था कि वह हर संभव कूटनीतिक प्रयास कर रही है ताकि प्रिया को सुरक्षित बाहर निकाला जा सके।