सुप्रीम कोर्ट ने बुधवार को दिल्ली विश्वविद्यालय के पूर्व प्रोफेसर हनी बाबू की उस याचिका को खारिज कर दिया, जिसमें उन्होंने यह स्पष्ट करने की मांग की थी कि उनके द्वारा पिछले साल अपनी ज़मानत याचिका वापस लेने से बॉम्बे हाईकोर्ट में पुनः ज़मानत याचिका दायर करने का अधिकार नहीं छिना है।
न्यायमूर्ति पंकज मित्तल और न्यायमूर्ति पी. बी. वराले की पीठ ने बाबू से कहा कि वह ज़मानत के लिए बॉम्बे हाईकोर्ट या विशेष एनआईए अदालत का रुख करें। अदालत ने यह भी कहा कि यदि वह चाहें तो पिछली याचिका को पुनर्जीवित करने की अनुमति मांग सकते हैं।
हनी बाबू ने मई 2023 में सुप्रीम कोर्ट से अपनी विशेष अनुमति याचिका (SLP) यह कहकर वापस ले ली थी कि वे हाईकोर्ट में ज़मानत की मांग करेंगे। हालांकि, जब उन्होंने हाईकोर्ट में याचिका दायर की, तो हाईकोर्ट ने स्पष्ट किया कि सुप्रीम कोर्ट के आदेश में ऐसी कोई स्वतंत्रता स्पष्ट रूप से दर्ज नहीं थी, और उन्हें शीर्ष अदालत से स्पष्टीकरण लाने को कहा।

बुधवार को सुनवाई के दौरान बाबू के वकील ने बताया कि बाबू पांच साल से विचाराधीन कैदी हैं और उन्होंने केवल इसीलिए याचिका वापस ली थी ताकि हाईकोर्ट में राहत पा सकें। उन्होंने यह भी कहा कि इसी मामले के पांच सह-आरोपियों को पहले ही ज़मानत मिल चुकी है।
एनआईए की ओर से इसका विरोध किया गया। एजेंसी के वकील ने तर्क दिया कि यह आवेदन विचार योग्य नहीं है क्योंकि यूएपीए जैसे मामलों में नई ज़मानत याचिका पहले विशेष एनआईए अदालत के समक्ष दायर की जानी चाहिए। उन्होंने कहा कि “हाईकोर्ट अपील की अदालत है।”
सुप्रीम कोर्ट ने स्पष्ट किया कि वह हाईकोर्ट को कोई निर्देश नहीं दे सकता, लेकिन बाबू को ट्रायल कोर्ट में ज़मानत याचिका दायर करने या अपनी पुरानी याचिका को पुनर्जीवित करने की स्वतंत्रता दी गई है। न्यायालय ने यह भी कहा, “आपका मुख्य आधार यह है कि अन्य आरोपियों को ज़मानत मिल चुकी है, इसे ट्रायल कोर्ट भी विचार में ले सकता है।”
बॉम्बे हाईकोर्ट ने 19 सितंबर 2022 को बाबू की ज़मानत याचिका खारिज कर दी थी। बाबू जुलाई 2020 से नवी मुंबई की तलोजा जेल में बंद हैं।
एनआईए ने बाबू पर आरोप लगाया है कि वे प्रतिबंधित भाकपा (माओवादी) संगठन के निर्देश पर माओवादी विचारधारा के प्रचार और साजिश में शामिल थे। एजेंसी का दावा है कि बाबू सरकार को अस्थिर करने की साजिश में सक्रिय रूप से भाग ले रहे थे।
यह मामला 31 दिसंबर 2017 को पुणे के शनिवारवाड़ा में आयोजित एल्गार परिषद सम्मेलन से जुड़ा है, जिसमें दिए गए भाषणों के बाद अगले दिन भीमा कोरेगांव युद्ध स्मारक के पास हिंसा भड़क उठी थी। इस हिंसा में एक व्यक्ति की मौत हुई थी और कई घायल हुए थे।
शुरुआत में यह मामला पुणे पुलिस द्वारा जांचा गया था, जिसे बाद में एनआईए को सौंप दिया गया। इस मामले में कई सामाजिक कार्यकर्ताओं और शिक्षाविदों को आरोपी बनाया गया है। बाबू का तर्क है कि उनके खिलाफ कोई ठोस प्रमाण नहीं हैं और विशेष अदालत ने ज़मानत खारिज करते समय गंभीर त्रुटि की है। अब वे सुप्रीम कोर्ट की सलाह के अनुसार संबंधित अदालत का रुख कर सकते हैं।