‘तलाक-ए-हसन’ को असंवैधानिक घोषित करने की मांग वाली याचिकाओं पर सुप्रीम कोर्ट 19-20 नवंबर को करेगा अंतिम सुनवाई

सुप्रीम कोर्ट ने सोमवार को ‘तलाक-ए-हसन’ और अन्य सभी प्रकार के एकतरफा गैर-न्यायिक तलाक को असंवैधानिक घोषित करने की मांग वाली याचिकाओं पर 19-20 नवंबर को अंतिम सुनवाई की तारीख तय की।

तलाक-ए-हसन मुस्लिम पुरुषों द्वारा अपनाया जाने वाला तलाक का एक तरीका है, जिसमें पति हर महीने एक बार “तलाक” बोलता है और तीन महीने में तीसरी बार उच्चारण के बाद, यदि इस अवधि में पति-पत्नी का सहवास फिर से शुरू नहीं हुआ हो, तो तलाक अंतिम हो जाता है।

न्यायमूर्ति सूर्यकांत और न्यायमूर्ति जॉयमाल्या बागची की पीठ ने राष्ट्रीय महिला आयोग (NCW), राष्ट्रीय मानवाधिकार आयोग (NHRC) और राष्ट्रीय बाल अधिकार संरक्षण आयोग (NCPCR) से मामले पर अपनी राय देने को कहा है। अदालत ने सभी हस्तक्षेप याचिकाओं को स्वीकार करते हुए कहा कि ये सुनवाई में मददगार साबित होंगी।

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पीठ ने कहा, “यदि कोई सामग्री, जिसमें किताबें या धार्मिक ग्रंथ शामिल हों, उपलब्ध है तो उसे प्रस्तुत किया जा सकता है। एनसीडब्ल्यू, एनएचआरसी और एनसीपीसीआर की राय रिकॉर्ड पर होनी चाहिए।” अदालत ने एएसजी के. एम. नटराज से यह सुनिश्चित करने को कहा कि सभी राय दाखिल हों।

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केंद्र सरकार के रुख पर पूछे जाने पर अधिवक्ता अश्विनी कुमार उपाध्याय ने बताया कि इस मामले में कोई जवाबी हलफनामा दाखिल नहीं किया गया है, लेकिन ट्रिपल तलाक केस में केंद्र ने सभी प्रकार के एकतरफा गैर-न्यायिक तलाक का विरोध किया था।

जब विरोधी पक्ष के वकील ने याचिकाओं की ग्राह्यता और याचिकाकर्ताओं के लोकस स्टैंडी पर सवाल उठाया, तो पीठ ने कहा, “हमें इस चरण पर तकनीकी बातों की चिंता नहीं करनी चाहिए। पीड़ित और प्रभावित पक्ष हमारे सामने हैं।”

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अदालत नौ याचिकाओं पर सुनवाई कर रही है, जिनमें एक गाज़ियाबाद निवासी बेनज़ीर हीना की है, जिन्होंने खुद को तलाक-ए-हसन की पीड़िता बताया है। याचिकाकर्ताओं ने केंद्र को लैंगिक और धर्म-निरपेक्ष, एक समान तलाक के आधार और प्रक्रिया बनाने का निर्देश देने की भी मांग की है।

सुप्रीम कोर्ट ने 11 अक्टूबर 2022 को इन याचिकाओं को मंजूर किया था और याचिकाकर्ताओं के पतियों को भी पक्षकार बनाकर उनसे जवाब मांगा था। अगस्त 2022 में अदालत ने कहा था कि उसका प्राथमिक ध्यान उन महिलाओं को राहत देने पर है, जो तलाक-ए-हसन की शिकार होने का दावा कर रही हैं, उसके बाद ही इस प्रथा की संवैधानिक वैधता पर फैसला होगा।

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