सुप्रीम कोर्ट ने शुक्रवार को एक याचिका पर सुनवाई करने का फैसला किया, जिसमें चुनाव आयोग से राजनीतिक दलों के पंजीकरण और नियमन के लिए नियम बनाने का निर्देश देने की मांग की गई है ताकि पारदर्शिता, धर्मनिरपेक्षता और राजनीतिक न्याय को बढ़ावा दिया जा सके।
न्यायमूर्ति सूर्यकांत और न्यायमूर्ति जॉयमाल्या बागची की पीठ ने अधिवक्ता व स्वयं याचिकाकर्ता अश्विनी कुमार उपाध्याय की याचिका पर केंद्र सरकार, चुनाव आयोग और भारत के विधि आयोग को नोटिस जारी किया।
नोटिस जारी करते समय न्यायमूर्ति सूर्यकांत ने यह इंगित किया कि याचिका में किसी भी राजनीतिक दल को पक्षकार नहीं बनाया गया है। उन्होंने कहा, “वे कहेंगे कि आप हमें नियंत्रित करने की बात कर रहे हैं और हम यहां मौजूद ही नहीं हैं।” अदालत ने उपाध्याय को चुनाव आयोग में पंजीकृत सभी राष्ट्रीय दलों को भी पक्षकार बनाने का निर्देश दिया।

याचिका में आरोप लगाया गया कि कई “फर्जी राजनीतिक दल” लोकतंत्र के लिए गंभीर खतरा हैं और वे भारी रकम लेकर “हार्डकोर अपराधियों, अपहर्ताओं, ड्रग तस्करों और मनी लॉन्ड्ररों” को राष्ट्रीय और राज्य स्तर पर पदाधिकारी नियुक्त कर रहे हैं।
याचिका में यह भी कहा गया कि स्पष्ट नियमों के अभाव में कई अलगाववादी तत्वों ने राजनीतिक संगठन बना लिए हैं, जो चंदा इकट्ठा कर रहे हैं और कुछ को तो पुलिस सुरक्षा तक मिल गई है।
याचिका में एक हालिया मीडिया रिपोर्ट का हवाला दिया गया, जिसमें दावा किया गया कि आयकर विभाग ने एक “फर्जी राजनीतिक दल” का भंडाफोड़ किया, जो 20 प्रतिशत कमीशन लेकर काले धन को सफेद कर रहा था।
याचिकाकर्ता ने कहा कि राजनीतिक दलों के कामकाज में पारदर्शिता और जवाबदेही सार्वजनिक हित में अनिवार्य है। उन्होंने सुप्रीम कोर्ट से मांग की कि चुनाव आयोग को राजनीतिक दलों के लिए नियम और विनियम बनाने का निर्देश दिया जाए।
वैकल्पिक रूप से, उन्होंने भारत के विधि आयोग को यह निर्देश देने की प्रार्थना की कि वह विकसित लोकतांत्रिक देशों की सर्वोत्तम प्रथाओं का अध्ययन करे और दलों के पंजीकरण व नियमन पर एक विस्तृत रिपोर्ट तैयार करे, ताकि राजनीति में भ्रष्टाचार और अपराधीकरण पर रोक लग सके।
याचिका में कहा गया, “संविधान के दायरे में राजनीतिक दलों का नियमन लोकतांत्रिक ढांचे को मजबूत करने का मार्ग प्रशस्त करेगा।” उपाध्याय के वकील अश्विनी कुमार दुबे के माध्यम से दायर इस याचिका में यह भी रेखांकित किया गया कि सुप्रीम कोर्ट पहले भी सार्वजनिक जीवन में पारदर्शिता और नैतिकता बढ़ाने के लिए कई सुधार शुरू कर चुका है।
अब इस मामले पर केंद्र, चुनाव आयोग और विधि आयोग के जवाब दाखिल होने के बाद आगे सुनवाई होगी।