संविधान प्रदत्त निष्पक्ष सुनवाई के अधिकार की पुनः पुष्टि करते हुए सुप्रीम कोर्ट ने बुधवार को निर्णय दिया कि किसी भी आरोपी को प्रवर्तन निदेशालय (ईडी) द्वारा जांच के दौरान एकत्रित किए गए सभी दस्तावेजों और बयानों की प्रति उपलब्ध कराना अनिवार्य है, चाहे उन्हें एजेंसी ने अपने आरोपों में उपयोग किया हो या नहीं।
न्यायमूर्ति अभय एस. ओका और न्यायमूर्ति उज्जल भुइयां की पीठ ने कहा कि जब किसी विशेष अदालत द्वारा मनी लॉन्ड्रिंग निवारण अधिनियम (PMLA) के तहत अभियोजन शिकायत पर संज्ञान ले लिया जाता है, तो उस स्थिति में अदालत को यह सुनिश्चित करना चाहिए कि शिकायत और उससे जुड़े सभी दस्तावेजों की प्रति आरोपी को उपलब्ध कराई जाए।
पीठ ने स्पष्ट किया, “जांच अधिकारी द्वारा जिन बयानों, दस्तावेजों, सामग्री वस्तुओं और साक्ष्यों पर भरोसा नहीं किया गया है, उनकी सूची की प्रति भी आरोपी को दी जानी चाहिए।” कोर्ट ने यह भी कहा कि इस प्रकार की जानकारी न देना आरोपी के निष्पक्ष बचाव के अधिकार को कमजोर करता है।

यह फैसला सरला गुप्ता द्वारा दायर एक याचिका पर आया, जो एक मनी लॉन्ड्रिंग मामले में आरोपी हैं। उन्होंने दिल्ली हाईकोर्ट के उस फैसले को चुनौती दी थी जिसमें कहा गया था कि अभियोजन पक्ष को मुकदमे से पहले उन दस्तावेजों को देने की बाध्यता नहीं है जिन पर वह भरोसा नहीं कर रहा।
सुप्रीम कोर्ट के इस निर्णय से मनी लॉन्ड्रिंग मामलों में अभियोजन प्रक्रिया में अधिक पारदर्शिता सुनिश्चित होगी और यह व्यापक आपराधिक न्याय सिद्धांतों के अनुरूप है, जो जांच एजेंसियों द्वारा निष्पक्ष प्रकटीकरण की अनिवार्यता को मान्यता देते हैं।