सुप्रीम कोर्ट ने गुरुवार को बेंगलुरु से कर्नाटक के अन्य हिस्सों में स्थानांतरित किए गए सरकारी डॉक्टरों की याचिका खारिज कर दी। डॉक्टरों ने अपने तबादलों को चुनौती दी थी, लेकिन अदालत ने स्पष्ट किया कि बेंगलुरु की बहुसांस्कृतिक और शहरी जीवनशैली तबादलों से छूट पाने का वैध आधार नहीं हो सकती।
न्यायमूर्ति उज्जल भुइयां और न्यायमूर्ति के. विनोद चंद्रन की पीठ ने कहा कि डॉक्टरों के तबादलों से कोई कानूनी क्षति नहीं हुई है और राज्यभर में स्वास्थ्य सेवाओं का समान वितरण आवश्यक है।
पीठ ने टिप्पणी की, “बेंगलुरु का कॉस्मोपॉलिटन जीवन बहुत आकर्षक है, लेकिन कर्नाटक के अन्य क्षेत्र भी विकसित हैं। आप समाज के विशेषाधिकार प्राप्त वर्ग से हैं। अगर आप ही तबादलों का विरोध करेंगे, तो बाकी का क्या होगा?”

इस टिप्पणी के साथ ही पीठ ने कर्नाटक हाईकोर्ट के आदेश में हस्तक्षेप करने से इनकार कर दिया।
याचिकाकर्ता वे सरकारी डॉक्टर थे, जो कर्नाटक राज्य सिविल सेवा (चिकित्सा अधिकारियों एवं अन्य स्टाफ के तबादले का विनियमन) नियम, 2025 को चुनौती दे रहे थे। ये नियम स्वास्थ्य एवं परिवार कल्याण विभाग के कर्मचारियों के तबादलों को नियंत्रित करते हैं और इन्हें कर्नाटक राज्य सिविल सेवा (चिकित्सा अधिकारियों एवं अन्य स्टाफ के तबादले का विनियमन) अधिनियम, 2011 की धारा 12 के तहत बनाया गया है।
इससे पहले, कर्नाटक हाईकोर्ट ने इन नियमों के क्रियान्वयन पर रोक लगाने से इनकार कर दिया था। अदालत ने माना कि राज्य सरकार को ऐसे नियम बनाने का अधिकार है और मसौदा व अंतिम नियमों के बीच किसी विशेष अवधि की अनिवार्यता नहीं है।
सुप्रीम कोर्ट में डॉक्टरों ने तर्क दिया था कि मसौदा नियमों पर आपत्ति दाखिल करने के लिए केवल एक सप्ताह का समय दिया गया, जो पर्याप्त नहीं था। उन्होंने यह भी कहा कि अंतिम नियमों में “ग्रेटर बेंगलुरु” की अवधारणा जोड़ी गई, जो मसौदे में नहीं थी और इसलिए यह अवैध है।
हालांकि, सुप्रीम कोर्ट ने इन दलीलों को खारिज कर दिया और कहा कि सार्वजनिक सेवाओं में तबादला नीति व्यक्तिगत सुविधा नहीं बल्कि प्रशासनिक आवश्यकता पर आधारित होनी चाहिए।