सुप्रीम कोर्ट ने बुधवार को केएएल एयरवेज और इसके प्रमोटर कलानिधि मारन द्वारा स्पाइसजेट के खिलाफ दायर ₹1,300 करोड़ के हर्जाने की याचिका खारिज कर दी। यह याचिका एक लंबे समय से चले आ रहे शेयर ट्रांसफर विवाद से जुड़ी थी।
न्यायमूर्ति पी. एस. नरसिंहा और न्यायमूर्ति ए. एस. चंदुरकर की पीठ ने दिल्ली हाईकोर्ट के 23 मई के आदेश को बरकरार रखते हुए याचिका खारिज कर दी। हाईकोर्ट ने याचिका को देरी के आधार पर खारिज कर दिया था और कहा था कि याचिकाकर्ताओं ने अपील दाखिल करने और पुनः दाखिल करने में “सोची-समझी रणनीति” के तहत देरी की।
कलानिधि मारन और केएएल एयरवेज, जो कभी स्पाइसजेट के प्रमोटर थे, ने यह दावा किया था कि उन्होंने 2015 में स्पाइसजेट को वापस खरीदने के सौदे के तहत कंपनी को ₹679 करोड़ दिए थे ताकि उन्हें वॉरंट्स और प्रेफरेंस शेयर जारी किए जाएं। हालांकि, बाद में मारन ने 2017 में दिल्ली हाईकोर्ट का रुख किया, यह आरोप लगाते हुए कि न तो वॉरंट्स और शेयर जारी किए गए और न ही राशि वापस की गई।

यह मामला तब शुरू हुआ जब 2015 की शुरुआत में अजय सिंह ने, जो पहले भी स्पाइसजेट के मालिक रह चुके थे, वित्तीय संकट के कारण महीनों से बंद पड़ी एयरलाइन को मारन से वापस खरीदा था।
इस विवाद में पहले एक एकल पीठ ने मध्यस्थता पंचाट के उस आदेश को बरकरार रखा था जिसमें स्पाइसजेट और अजय सिंह को ₹579 करोड़ ब्याज सहित लौटाने का निर्देश दिया गया था। लेकिन 17 मई 2023 को हाईकोर्ट की डिवीजन बेंच ने उस आदेश को रद्द कर मामला दोबारा विचार के लिए निचली अदालत को भेज दिया।
इसके बाद, मारन और केएएल एयरवेज ने ₹1,300 करोड़ से अधिक का हर्जाना मांगते हुए एक नई याचिका दाखिल की, जिसे हाई कोर्ट ने समय पर कार्रवाई न करने के चलते खारिज कर दिया था। अब सुप्रीम कोर्ट ने भी उस फैसले को सही ठहराया है।