सुप्रीम कोर्ट ने गुरुवार को चुनाव आयोग को निर्देश दिया कि बिहार में विशेष गहन पुनरीक्षण (Special Intensive Revision – SIR) के बाद मतदाता सूची से हटाए गए लगभग 65 लाख मतदाताओं का ब्योरा सार्वजनिक किया जाए।
जस्टिस सूर्यकांत और जस्टिस जॉयमाला बागची की पीठ ने पारदर्शिता की आवश्यकता पर जोर देते हुए कहा कि इससे प्रभावित लोग स्पष्टीकरण या सुधार के लिए आगे आ सकेंगे। अदालत ने चुनाव आयोग को निर्देश दिया कि हटाए गए मतदाताओं की प्रिंटेड बूथ-वार सूची, उनके नाम हटाने के कारणों सहित, पंचायत और ब्लॉक विकास कार्यालयों में चस्पा की जाए, जबकि जिला-वार सूची मुख्य निर्वाचन पदाधिकारी के कार्यालय में उपलब्ध कराई जाए।
अदालत के निर्देश
पीठ ने आदेश दिया कि—

- हटाए गए मतदाताओं का डेटा मंगलवार तक चुनाव आयोग की आधिकारिक वेबसाइट पर अपलोड किया जाए।
- जिला निर्वाचन पदाधिकारी की वेबसाइट पर उपलब्ध सॉफ़्ट कॉपी सर्च करने योग्य (searchable) हो।
- मतदाता नाम विलोपन के विवरण और कारणों को अखबारों, रेडियो और टेलीविजन के माध्यम से प्रचारित किया जाए।
- आधार कार्ड को मतदाता पहचान स्थापित करने के वैध दस्तावेज के रूप में स्वीकार किया जाए।
यह आदेश आरजेडी, तृणमूल कांग्रेस, कांग्रेस, एनसीपी (शरद पवार), सीपीआई, समाजवादी पार्टी, शिवसेना (उद्धव ठाकरे), झामुमो, सीपीआई (एमएल), पीयूसीएल, एडीआर और कार्यकर्ता योगेंद्र यादव सहित कई विपक्षी नेताओं द्वारा दायर याचिकाओं पर आया, जिनमें 24 जून को चुनाव आयोग द्वारा बिहार में SIR कराने के निर्णय को चुनौती दी गई थी।
सुप्रीम कोर्ट ने 29 जुलाई को चेतावनी दी थी कि यदि मतदाताओं का “बड़े पैमाने पर बहिष्करण” हुआ तो वह तुरंत हस्तक्षेप करेगा। मसौदा मतदाता सूची 1 अगस्त को प्रकाशित हुई और अंतिम सूची 30 सितंबर तक आने की उम्मीद है। विपक्षी दलों का आरोप है कि इस प्रक्रिया से करोड़ों योग्य मतदाता मताधिकार से वंचित हो सकते हैं।
पीठ ने याचिकाकर्ताओं के इस तर्क को खारिज कर दिया कि SIR का कोई कानूनी आधार नहीं है और इसे रद्द किया जाना चाहिए। अदालत ने कहा कि चुनाव आयोग के पास ऐसा अभ्यास करने के शेष अधिकार (residual powers) मौजूद हैं।