सुप्रीम कोर्ट ने ईंधन और आयातित उत्पादों के परीक्षण से जुड़ी गंभीर कमियों को देखते हुए केंद्र सरकार को देशभर की प्रयोगशालाओं और टेस्टिंग इंफ्रास्ट्रक्चर में व्यापक सुधार करने का निर्देश दिया है। न्यायमूर्ति बी.वी. नागरत्ना और न्यायमूर्ति एन. कोटिश्वर सिंह की पीठ ने 28 मार्च 2025 को यह आदेश जारी किया, जिसमें यह स्पष्ट किया गया कि आयातित वस्तुओं की जब्ती और जुर्माने जैसे मामलों में परीक्षण रिपोर्ट की सटीकता अत्यंत महत्वपूर्ण है।
यह मामला तीन आयातकों—गैसट्रेड इंटरनेशनल, राजकमल इंडस्ट्रियल प्रा. लि., और डिविनिटी इम्पेक्स—से जुड़ा था, जिनकी “बेस ऑयल SN 50” नामक खेप को 2019 में कांडला पोर्ट (गुजरात) पर राजस्व खुफिया निदेशालय (DRI) द्वारा यह संदेह जताते हुए जब्त कर लिया गया था कि वह असल में हाई-स्पीड डीजल (HSD) है। भारत में HSD का आयात केवल राज्य ट्रेडिंग उपक्रमों के माध्यम से ही अनुमत है, जिससे मामला और जटिल हो गया।
हालांकि इस तेल के नमूनों की जांच तीन प्रमुख प्रयोगशालाओं—वडोदरा की सेंट्रल एक्साइज एंड कस्टम्स लैबोरेटरी, नई दिल्ली की सेंट्रल रेवेन्यूज़ कंट्रोल लैबोरेटरी (CRCL), और मुंबई स्थित इंडियन ऑयल कॉर्पोरेशन लिमिटेड (IOCL)—द्वारा की गई, लेकिन कोई भी लैब इस बात पर निश्चित निष्कर्ष नहीं दे सकी कि यह तेल HSD है या बेस ऑयल। सभी रिपोर्टों में परीक्षण के कुछ मानकों पर आंशिक समानता दिखी, लेकिन किसी ने भी स्पष्ट वर्गीकरण नहीं किया।

इस संदर्भ में, सुप्रीम कोर्ट ने तीनों आयातकों के खिलाफ चल रही कस्टम कार्रवाई को बेनिफिट ऑफ डाउट के आधार पर समाप्त कर दिया और कहा कि परीक्षणों की अस्पष्टता ने उन्हें संदेह का लाभ दिया।
पीठ ने स्पष्ट रूप से कहा:
“इस लंबे चले विवाद की जड़ यह है कि देश में भारतीय मानक ब्यूरो (BIS) द्वारा निर्धारित सभी परीक्षण मानकों को जांचने की पर्याप्त सुविधाएं उपलब्ध नहीं हैं।”
कोर्ट ने यह भी कहा कि इस तरह की जांच रिपोर्टों पर ही न्यायिक और प्रशासनिक निर्णय आधारित होते हैं, अतः उनकी विश्वसनीयता और सटीकता सर्वोपरि है।
इस समस्या के समाधान हेतु सुप्रीम कोर्ट ने केंद्र सरकार को छह महीने की समयसीमा देते हुए आदेश दिया है कि वह परीक्षण प्रयोगशालाओं में आवश्यक तकनीकी उन्नयन सुनिश्चित करे, ताकि भविष्य में इस प्रकार के विवाद उत्पन्न न हों और कस्टम तथा न्यायिक प्रक्रिया सुचारू रूप से चल सके।