सुप्रीम कोर्ट ने शुक्रवार को न्यायिक आदेशों की सर्वोच्चता को रेखांकित करते हुए आंध्र प्रदेश सरकार को निर्देश दिया कि वह एक डिप्टी कलेक्टर को तहसीलदार पद पर पदावनत करे। अधिकारी पर आरोप था कि उसने 2013 में हाई कोर्ट द्वारा झुग्गियों की बेदखली पर लगाए गए प्रतिबंध का उल्लंघन करते हुए जनवरी 2014 में गुंटूर जिले में जबरन झुग्गियों को हटाया था।
न्यायमूर्ति बी.आर. गवई और न्यायमूर्ति ऑगस्टिन जॉर्ज मसीह की पीठ ने कहा कि संबंधित अधिकारी—जो 2023 में डिप्टी कलेक्टर पद पर पदोन्नत हुए थे—ने हाई कोर्ट के स्पष्ट निर्देश की “जानबूझकर और पूरी तरह अवहेलना” की थी।
पीठ ने कहा, “न्यायालय द्वारा पारित आदेशों की अवज्ञा, हमारे लोकतंत्र की नींव—कानून के शासन—पर सीधा आघात है। हर अधिकारी, चाहे वह कितना भी उच्च पद पर हो, उसे न्यायालय के आदेशों का सम्मान और पालन करना अनिवार्य है।”
हालांकि सुप्रीम कोर्ट ने हाई कोर्ट द्वारा दी गई दो माह की सजा को संशोधित करते हुए जेल की सजा को रद्द किया, लेकिन इसके स्थान पर उस अधिकारी को पदावनत करने और ₹1 लाख का जुर्माना लगाने का आदेश दिया। पीठ ने कहा, “हम भले ही नरम रुख अपनाएं, लेकिन यह संदेश जाना चाहिए कि कोई भी व्यक्ति कानून से ऊपर नहीं है।”
यह अवमानना कार्यवाही उस समय शुरू हुई थी जब अधिकारी तहसीलदार के पद पर कार्यरत थे और उन पर 11 दिसंबर 2013 को दिए गए हाई कोर्ट के निर्देश के बावजूद झुग्गियों को जबरन तोड़ने का आरोप लगाया गया था।
पूर्व की सुनवाई में सुप्रीम कोर्ट ने अधिकारी से पूछा था कि क्या वह पदावनति स्वीकार करने को तैयार हैं। शुक्रवार को उनके वकील ने बताया कि “अधिकारी किसी भी सजा को स्वीकार करने को तैयार हैं।”
अधिकारी की अपील को खारिज करते हुए सुप्रीम कोर्ट ने कहा कि इस प्रकार की अवहेलना को यदि स्वीकार कर लिया गया, तो यह न्याय व्यवस्था को कमजोर कर देगा। न्यायमूर्ति गवई ने कहा, “हम चाहते हैं कि पूरे देश में यह संदेश जाए कि अदालत के आदेश की अवज्ञा किसी भी सूरत में बर्दाश्त नहीं की जाएगी।”
अब आंध्र प्रदेश सरकार को उक्त अधिकारी की पदावनति लागू करने और ₹1 लाख का जुर्माना वसूलने का निर्देश दिया गया है।