सुप्रीम कोर्ट ने शुक्रवार को बबर खालसा के सदस्य जगतार सिंह हवारा की उस याचिका पर सुनवाई दो सप्ताह के लिए स्थगित कर दी, जिसमें उन्होंने दिल्ली की तिहाड़ जेल से पंजाब की किसी भी जेल में स्थानांतरण की मांग की है। हवारा 1995 में पंजाब के पूर्व मुख्यमंत्री बेअंत सिंह की हत्या के मामले में आजीवन कारावास की सजा काट रहे हैं।
मुख्य न्यायाधीश बी. आर. गवई और जस्टिस विजय बिश्नोई की पीठ ने संक्षिप्त सुनवाई के बाद मामले को आगे की तारीख के लिए टाल दिया। इससे पहले 27 सितंबर, 2023 को शीर्ष अदालत ने केंद्र, चंडीगढ़ प्रशासन, दिल्ली तथा पंजाब सरकार को नोटिस जारी कर हवारा की मांग पर जवाब मांगा था।
हवारा 31 अगस्त 1995 को चंडीगढ़ सिविल सचिवालय के प्रवेश द्वार पर हुए विस्फोट में बेअंत सिंह और 16 अन्य की मौत के मामले में “जीवन के शेष काल तक” आजीवन कारावास की सजा भुगत रहे हैं। उनकी याचिका का कहना है कि मामला पंजाब का है और दिल्ली में उनके खिलाफ कोई मामला लंबित नहीं है, इसलिए उन्हें पंजाब की जेल में रखा जाना चाहिए।
सुनवाई के दौरान पीठ ने हवारा के वकील, वरिष्ठ अधिवक्ता कोलिन गोंसाल्विस से पूछा कि 2004 में वह जेल से सुरंग बनाकर कैसे भाग निकले थे। बाद में हवारा को दोबारा गिरफ्तार किया गया था।
गोंसाल्विस ने कहा, “मुख्य घटना को लगभग 30 साल हो चुके हैं और जेलब्रेक को भी 20 साल। अब इन बातों को समय के परिप्रेक्ष्य में देखने की ज़रूरत है,” और हवारा के पिछले 19 वर्षों के “बेदाग आचरण” को ध्यान में रखने का आग्रह किया।
अधिवक्ता सत्य मित्रा की ओर से दायर याचिका में कहा गया है कि हवारा ने पुनः गिरफ्तारी के बाद 19 वर्षों में जेल में कोई दंडनीय आचरण नहीं किया। इसमें दावा किया गया है कि हत्या के बाद उन पर 36 “फर्जी मामले” दर्ज हुए थे, जिनमें से सभी में उन्हें बरी कर दिया गया है, बस एक मामला छोड़कर।
याचिका में यह भी कहा गया है कि इसी हत्या मामले में दोषी एक अन्य व्यक्ति, जो 2004 के जेलब्रेक में शामिल था, उसे तिहाड़ से चंडीगढ़ की जेल में स्थानांतरित कर दिया गया है, इसलिए हवारा को भी समानता के आधार पर यह सुविधा दी जानी चाहिए।
याचिका के अनुसार हवारा पंजाब के फतेहगढ़ साहिब जिले के निवासी हैं। उनकी बेटी पंजाब में रहती है, उनकी पत्नी का निधन हो चुका है और उनकी मां अमेरिका में कोमा में है। इसलिए पारिवारिक परिस्थितियां भी स्थानांतरण के पक्ष में हैं।
याचिका में कहा गया है कि कई वर्ष पहले दी गई “हाई-रिस्क” की श्रेणी अब उन्हें दिल्ली में रखने का पर्याप्त आधार नहीं हो सकती, जबकि वह केवल उसी मामले में उम्रकैद काट रहे हैं जो चंडीगढ़ में दर्ज है।
याचिका का कहना है कि पंजाब के नियम उनके दंड निष्पादन को नियंत्रित करते हैं और दिल्ली में बिना लंबित मुकदमे के उन्हें कैद करके रखने का कोई प्रावधान नहीं है।
हवारा को 2007 में ट्रायल कोर्ट ने मृत्युदंड दिया था। 2010 में पंजाब और हरियाणा हाई कोर्ट ने इसे आजीवन कारावास में बदल दिया, साथ ही निर्देश दिया कि उन्हें जीवन भर जेल में ही रखा जाएगा। हवारा और अभियोजन दोनों की अपीलें अभी सुप्रीम कोर्ट में लंबित हैं।
अब इस याचिका पर दो सप्ताह बाद सुनवाई होगी।




