सुप्रीम कोर्ट ने मंगलवार को कोलकाता के राज्य संचालित आर.जी. कर मेडिकल कॉलेज और अस्पताल में एक स्नातकोत्तर प्रशिक्षु डॉक्टर के साथ दुष्कर्म और हत्या के मामले में स्वतः संज्ञान लेकर चल रहे मामले की सुनवाई नवंबर तक के लिए स्थगित कर दी। अदालत ने बताया कि वह एक अन्य आंशिक रूप से सुनी जा चुकी याचिका में व्यस्त थी।
यह जघन्य अपराध पिछले वर्ष 9 अगस्त को हुआ था, जब डॉक्टर का शव अस्पताल के सेमिनार कक्ष में मिला। इस घटना ने पूरे देश में आक्रोश की लहर पैदा कर दी थी और पश्चिम बंगाल में लंबे समय तक विरोध-प्रदर्शन हुए थे।
अगले ही दिन कोलकाता पुलिस ने आरोपी नागरिक स्वयंसेवक संजय रॉय को गिरफ्तार किया। जांच से असंतुष्ट होकर कलकत्ता हाईकोर्ट ने 13 अगस्त 2024 को मामले की जांच सीबीआई को सौंप दी। 19 अगस्त 2024 को सुप्रीम कोर्ट ने इस मामले का स्वतः संज्ञान लिया और निगरानी शुरू की। अक्टूबर 2024 में सीबीआई ने रॉय के खिलाफ आरोपपत्र दाखिल किया।
इस वर्ष 20 जनवरी को कोलकाता की एक ट्रायल कोर्ट ने रॉय को दोषी ठहराते हुए उसे “आजीवन कारावास जब तक मृत्यु न हो” की सजा सुनाई थी।

न्यायमूर्ति एम. एम. सुन्दरेश और न्यायमूर्ति सतीश चंद्र शर्मा की पीठ ने सुनवाई को नवंबर तक के लिए स्थगित किया। कार्यवाही के दौरान वरिष्ठ अधिवक्ता करुणा नंदी, जो एसोसिएशन ऑफ जूनियर एंड सीनियर डॉक्टर्स की ओर से पेश हुईं, ने कहा कि शांतिपूर्ण प्रदर्शन में भाग लेने वाले डॉक्टरों को पुलिस द्वारा पूछताछ के लिए बुलाया जा रहा है। उन्होंने अदालत से आग्रह किया कि मामले की शीघ्र सुनवाई के लिए नज़दीकी तारीख तय की जाए।
प्राथमिक दोषसिद्धि के बाद भी सुप्रीम कोर्ट इस मामले से जुड़े कई सहायक पहलुओं की निगरानी कर रही है, जिनमें विरोध के दौरान डॉक्टरों की अवैध अनुपस्थिति के नियमितीकरण का मुद्दा भी शामिल है।
20 अगस्त 2024 को अदालत ने इस अपराध की पृष्ठभूमि में चिकित्सकों की सुरक्षा सुनिश्चित करने के लिए एक राष्ट्रीय कार्यबल (National Task Force – NTF) का गठन किया था। इस कार्यबल ने नवंबर 2024 में अपनी रिपोर्ट केंद्र सरकार के हलफनामे के हिस्से के रूप में पेश की। इसमें कहा गया कि स्वास्थ्यकर्मियों के खिलाफ हिंसा से निपटने के लिए अलग केंद्रीय कानून की आवश्यकता नहीं है, क्योंकि राज्यों के मौजूदा कानूनों और भारतीय न्याय संहिता, 2023 के तहत गंभीर अपराधों से निपटने के लिए पर्याप्त प्रावधान मौजूद हैं।
रिपोर्ट में बताया गया कि 24 राज्यों ने स्वास्थ्यकर्मियों के खिलाफ हिंसा पर नियंत्रण के लिए विशेष कानून बनाए हैं, जिनमें “स्वास्थ्य संस्थान” और “चिकित्सा पेशेवर” की परिभाषाएं भी दी गई हैं।