कार्यस्थल पर महिलाओं के यौन उत्पीड़न से संरक्षण देने वाले कानून POSH (2013) के तहत देश के प्रमुख राजनीतिक दलों को लाने की मांग करने वाली जनहित याचिका (PIL) को सुप्रीम कोर्ट ने शुक्रवार को खारिज कर दिया। अदालत ने स्पष्ट किया कि यह विषय संसद के अधिकार क्षेत्र में आता है और न्यायालय इसमें हस्तक्षेप नहीं कर सकता।
मुख्य न्यायाधीश बी. आर. गवई और न्यायमूर्ति के. विनोद चंद्रन की पीठ ने याचिकाकर्ता योगमाया एम. जी. की याचिका पर सुनवाई करते हुए यह टिप्पणी की। वरिष्ठ अधिवक्ता शोभा गुप्ता ने याचिकाकर्ता की ओर से दलील दी कि राजनीतिक दलों को POSH कानून के तहत “नियोक्ता” माना जाना चाहिए ताकि वे आंतरिक शिकायत समिति (Internal Complaints Committee – ICC) गठित करने के लिए बाध्य हों।
मुख्य न्यायाधीश गवई ने कहा, “यह संसद के अधिकार क्षेत्र का विषय है। हम इसमें कैसे हस्तक्षेप कर सकते हैं?” उन्होंने यह भी सुझाव दिया कि याचिकाकर्ता कुछ महिला सांसदों का समर्थन लेकर संसद में निजी विधेयक (Private Member Bill) ला सकती हैं।

इस पर वरिष्ठ वकील शोभा गुप्ता ने तर्क दिया कि याचिका का उद्देश्य कोई नया कानून बनवाना नहीं है, बल्कि पहले से मौजूद POSH कानून की व्याख्या कर राजनीतिक दलों को उसके दायरे में लाना है। उन्होंने यह भी कहा कि संसद ने अब तक इस दिशा में कोई ठोस कदम नहीं उठाया है।
गुप्ता ने 2021 में केरल हाईकोर्ट के एक फैसले का हवाला दिया जिसमें कहा गया था कि राजनीतिक दलों पर POSH कानून के तहत ICC गठित करने की बाध्यता नहीं है। इस पर CJI ने कहा कि उस फैसले को स्वतंत्र रूप से चुनौती दी जा सकती है।
अंततः याचिका वापस लेने की अनुमति मांगते हुए वकील ने कोर्ट से आग्रह किया कि उन्हें कानून सम्मत अन्य उपाय अपनाने की स्वतंत्रता दी जाए। अदालत ने अपने आदेश में कहा, “याचिकाकर्ता की ओर से पेश वरिष्ठ अधिवक्ता ने याचिका वापस लेने की अनुमति मांगी है, साथ ही कानून के तहत उचित कदम उठाने की स्वतंत्रता की भी मांग की है।”
इस याचिका में केंद्र सरकार और मुख्य चुनाव आयुक्त के अलावा कांग्रेस, बीजेपी, सीपीआई (एम), सीपीआई, तृणमूल कांग्रेस, राष्ट्रवादी कांग्रेस पार्टी, बहुजन समाज पार्टी और आम आदमी पार्टी जैसे प्रमुख राजनीतिक दलों को भी पक्षकार बनाया गया था।