बाल हत्या मामले में सुप्रीम कोर्ट ने मौत की सजा को 25 साल की कठोर कारावास में बदला, साक्ष्य अधिनियम और पॉक्सो कानून के प्रावधानों का दिया हवाला

भारत के सर्वोच्च न्यायालय ने एक अहम फैसले में, गुजरात में चार साल की बच्ची के अपहरण, यौन उत्पीड़न और हत्या के दोषी संभुभाई रायसंगभाई पाढ़िया की मौत की सजा को 25 साल की कठोर कारावास (बिना रिहाई के) में बदल दिया। कोर्ट ने परिस्थितिजन्य साक्ष्य, साक्ष्य अधिनियम और पॉक्सो अधिनियम के प्रावधानों पर जोर दिया।

न्यायमूर्ति के.वी. विश्वनाथन, न्यायमूर्ति बी.आर. गवई और न्यायमूर्ति अरविंद कुमार की पीठ ने गुजरात हाईकोर्ट के फैसले को चुनौती देने वाली याचिका (क्रिमिनल अपील नं. 9015-9016/2019) पर यह फैसला सुनाया, जिसमें हाईकोर्ट ने मौत की सजा बरकरार रखी थी।  

पृष्ठभूमि

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यह घटना 13 अप्रैल 2016 को गुजरात के भरूच जिले के पीलुदरा गांव में हुई थी। दोषी संभुभाई रायसंगभाई पाढ़िया ने बच्ची को आइसक्रीम दिलाने के बहाने फुसलाकर ले गया। कुछ घंटों बाद बच्ची का शव झाड़ियों के पास मिला। पोस्टमार्टम रिपोर्ट में पुष्टि हुई कि बच्ची के साथ यौन शोषण हुआ और उसकी मौत गला घोंटने से हुई।  

निचली अदालत ने मौत की सजा सुनाई थी, जिसे गुजरात हाईकोर्ट ने 3 अप्रैल 2019 को सही ठहराया। इसके बाद दोषी ने सुप्रीम कोर्ट का रुख किया।  

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मुख्य कानूनी मुद्दे  

1. परिस्थितिजन्य साक्ष्य की विश्वसनीयता: क्या साक्ष्य की श्रृंखला दोषसिद्धि के लिए पर्याप्त थी?  

2. पॉक्सो कानून के प्रावधान: क्या पॉक्सो अधिनियम की धारा 29 और 30 के तहत आरोपी पर दोषमुक्ति का भार सही तरीके से लागू किया गया?  

3. अपराध की गंभीरता और सजा का संतुलन: क्या यह मामला “दुर्लभतम मामलों” की श्रेणी में आता है, जिसमें मौत की सजा उचित हो?  

कोर्ट की टिप्पणियाँ  

1. आखिरी बार देखे जाने का साक्ष्य:  

   गवाहों में बच्ची की चाची (पीडब्ल्यू-10 ज्योत्सनाबेन) और दुकानदार (पीडब्ल्यू-11 मनोज कुमार परमार) ने बताया कि आरोपी को आखिरी बार बच्ची के साथ देखा गया था।  

 “जब एक नन्हीं बच्ची को आइसक्रीम दिलाने के बहाने ले जाया जाता है, तो आरोपी की चुप्पी बहुत कुछ बयां करती है,” कोर्ट ने कहा।  

2. पॉक्सो अधिनियम का अनुमान:  

   कोर्ट ने कहा कि पॉक्सो अधिनियम की धाराएँ 29 और 30 लागू होती हैं, जहाँ एक बार बुनियादी तथ्य सिद्ध हो जाने पर दोषमुक्ति का भार आरोपी पर होता है।  

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“परिस्थितियाँ और चोटें स्थापित होने के बाद, आरोपी पर दोष का अनुमान सही है।”

3. मेडिकल साक्ष्य:  

   पोस्टमार्टम रिपोर्ट (पीडब्ल्यू-8) में बच्ची के साथ घातक यौन उत्पीड़न और गला घोंटने की पुष्टि हुई। आरोपी के जननांग पर चोटें भी रिपोर्ट से मेल खाती थीं।  

4. साक्ष्य की बरामदगी और आरोपी का आचरण:  

   आरोपी ने पुलिस को बच्ची के कपड़े की जानकारी दी, जो साक्ष्य अधिनियम की धारा 8 के तहत स्वीकार्य है।  

5. रक्त समूह का मिलान:  

   फोरेंसिक रिपोर्ट में आरोपी के रक्त समूह और अपराध स्थल के नमूनों का मिलान हुआ।  

सजा में संशोधन: मौत की सजा से 25 साल कठोर कारावास  

कोर्ट ने आईपीसी की धाराएँ 302, 364 और 377 तथा पॉक्सो अधिनियम की धाराएँ 4 और 6 के तहत दोषसिद्धि बरकरार रखी।  

कोर्ट ने आरोपी की उम्र (घटना के समय 24 वर्ष), आपराधिक पृष्ठभूमि का न होना और मानसिक स्थिति को रियायत देने वाले कारकों में माना।  

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“यह मामला सुधार की संभावना को नकारता नहीं है। 25 साल की सजा बिना रिहाई के न्यायिक संतुलन बनाए रखती है।”  

स्वामी श्रद्धानंद बनाम कर्नाटक राज्य (2008) और नवास उर्फ मुलनवास बनाम केरल राज्य (2024) मामलों का हवाला देते हुए कोर्ट ने कहा:  

“25 साल की कठोर सजा न्याय में विश्वास को कायम रखते हुए सजा को संतुलित बनाती है।”  

मामले का विवरण  

मामला: संभुभाई रायसंगभाई पाढ़िया बनाम गुजरात राज्य  

अपील संख्या: क्रिमिनल अपील नं. 9015-9016/2019  

पीठ: न्यायमूर्ति के.वी. विश्वनाथन, न्यायमूर्ति बी.आर. गवई और न्यायमूर्ति अरविंद कुमार  

वकील:  

– अपीलकर्ता: वरिष्ठ अधिवक्ता सुश्री उत्तरा बब्बर (नि:शुल्क)  

– गुजरात राज्य: अधिवक्ता सुश्री स्वाति घिल्डियाल  

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