सुप्रीम कोर्ट ने सोमवार को पटना के एक संरक्षण गृह की अधीक्षिका की जमानत रद्द करते हुए उन्हें चार हफ्तों के भीतर आत्मसमर्पण करने का आदेश दिया। गुप्ता पर गंभीर आरोप हैं कि उन्होंने महिला आश्रय गृह की निराश्रित युवतियों को प्रभावशाली लोगों के पास भेजा और बाल संरक्षण गृह में लड़कों को प्रवेश करने दिया।
न्यायमूर्ति विक्रम नाथ और न्यायमूर्ति संदीप मेहता की पीठ ने पटना हाई कोर्ट द्वारा 18 जनवरी 2024 को दिए गए जमानत आदेश को निरस्त कर दिया और कहा कि इस तरह के “गंभीर और घृणित” आरोपों में जमानत देना न्याय व्यवस्था का उपहास है।
“रक्षक की भूमिका में बैठी महिला बनी शोषणकर्ता”
सुप्रीम कोर्ट ने कहा, “यह स्पष्ट रूप से ऐसा मामला है जिसमें एक रक्षक की भूमिका में नियुक्त व्यक्ति ही शोषणकर्ता बन गया। जिसे सुरक्षा देनी थी, उसी ने विश्वासघात किया।” कोर्ट ने यह भी जोड़ा कि इस तरह के अपराधों में आरोपी को जमानत देना समाज पर प्रतिकूल प्रभाव डालता है और गवाहों के धमकाए जाने की पूरी आशंका रहती है।

पीड़िता को नहीं दी गई थी सुनवाई का अवसर
पीड़िता, जो अनुसूचित जाति समुदाय से हैं, ने सुप्रीम कोर्ट का दरवाजा खटखटाया था। उन्होंने कहा कि उन्हें जमानत पर सुनवाई के दौरान सूचना नहीं दी गई थी, जो कि अनुसूचित जाति एवं जनजाति (अत्याचार निवारण) अधिनियम की धारा 15A(3) के तहत अनिवार्य है। इस पर सुप्रीम कोर्ट ने टिप्पणी की कि केवल इस आधार पर ही हाई कोर्ट के आदेश को रद्द किया जा सकता था।
पीड़िताओं को नशा देकर भेजा जाता था बाहर
पीड़िता ने आरोप लगाया कि संरक्षण गृह की अधीक्षिका उन्हें और अन्य युवतियों को नशीली दवाएं और इंजेक्शन देती थीं, और फिर नौकरी के नाम पर बाहर भेजती थीं, जहां उनका यौन शोषण होता था। आश्रय गृह में बाहरी पुरुषों को भी प्रवेश देकर उनका शोषण कराया जाता था। मानसिक और शारीरिक उत्पीड़न का यह चक्र लंबे समय तक चलता रहा।
पीठ ने कहा – “न्याय का उपहास हुआ है”
कोर्ट ने कहा, “ऐसे मामले में जमानत देना न्याय का मखौल है। ऐसे मामलों में न्यायालयों को निष्क्रिय नहीं रहना चाहिए। इस प्रकार के अपराध समाज की आत्मा को झकझोर देते हैं।” कोर्ट ने आगे कहा कि यह एक “असाधारण” मामला है जिसमें न्याय के उद्देश्यों की पूर्ति के लिए जमानत रद्द करना आवश्यक था।
SIT कर रही है जांच, पीड़िताओं को सुरक्षा देने का निर्देश
यह मामला उस समय सामने आया जब उत्तर रक्षा गृह, गायघाट, पटना से दो युवतियां भाग निकलीं और उन्होंने गुप्ता के खिलाफ शिकायत दर्ज कराई। इसके बाद पटना हाई कोर्ट ने फरवरी में इस मामले का स्वतः संज्ञान लेते हुए विशेष जांच टीम (SIT) के गठन का आदेश दिया, जो फिलहाल जांच कर रही है।
सुप्रीम कोर्ट ने ट्रायल कोर्ट और जिला प्रशासन को निर्देश दिया है कि सभी पीड़िताओं को समुचित सुरक्षा और सहायता प्रदान की जाए ताकि वे बिना भय के न्यायिक प्रक्रिया में भाग ले सकें।