सुप्रीम कोर्ट ने सोमवार को बोधगया मंदिर अधिनियम, 1949 को रद्द करने और उसकी जगह महाबोधि मंदिर के उचित नियंत्रण, प्रबंधन और प्रशासन के लिए केंद्रीय कानून लाने की मांग वाली याचिका पर सुनवाई के लिए सहमति जताई।
न्यायमूर्ति एम. एम. सुंदरेश और न्यायमूर्ति एन. कोटिश्वर सिंह की पीठ ने केंद्र सरकार और अन्य संबंधित पक्षों को नोटिस जारी कर जवाब मांगा है। साथ ही इस याचिका को इसी विषय से जुड़ी पहले से लंबित याचिका के साथ जोड़ दिया गया है।
याचिकाकर्ता ने 1949 के अधिनियम को असंवैधानिक करार देने की मांग की है, यह तर्क देते हुए कि यह संविधान के अनुच्छेद 13 के विरुद्ध है। अनुच्छेद 13 ऐसे किसी भी कानून को अमान्य घोषित करता है जो मूलभूत अधिकारों का उल्लंघन करता हो। याचिका में यह भी मांग की गई है कि मंदिर परिसर में किए गए अतिक्रमणों को हटाया जाए ताकि दुनियाभर के बौद्ध श्रद्धालु वहां निर्बाध रूप से पूजा-अर्चना कर सकें और बौद्ध धर्म की आस्था एवं परंपराओं का संरक्षण किया जा सके।

महाबोधि मंदिर परिसर, जो कि यूनेस्को विश्व धरोहर स्थल है, बौद्ध धर्म के चार प्रमुख तीर्थ स्थलों में से एक है। यहीं गौतम बुद्ध को ज्ञान प्राप्त हुआ था। परिसर में 50 मीटर ऊंचा भव्य मंदिर, वज्रासन, पवित्र बोधि वृक्ष और अन्य कई प्राचीन स्तूप स्थित हैं।
इससे पहले, 30 जून को सुप्रीम कोर्ट ने इसी विषय पर दायर एक अलग याचिका को खारिज करते हुए याचिकाकर्ता को संबंधित उच्च न्यायालय में जाने की सलाह दी थी। हालांकि, वर्तमान याचिका में उठाए गए मुद्दे पहले से लंबित मामले से जुड़े होने के कारण शीर्ष अदालत ने इसे एक साथ सुनने का निर्णय लिया है।
अब इस मामले की सुनवाई लंबित याचिका के साथ की जाएगी, और तब तक अदालत केंद्र सरकार के जवाब का इंतजार करेगी।