सुप्रीम कोर्ट ने एक सख्त निर्देश जारी करते हुए स्पष्ट किया है कि राज्य बार काउंसिल और बार काउंसिल ऑफ इंडिया (बीसीआई) कानून की डिग्री हासिल कर चुके स्नातकों से वकील के रूप में पंजीकरण के लिए कोई भी “वैकल्पिक” (optional) शुल्क नहीं वसूल सकते हैं। कोर्ट ने अपने पिछले फैसले का कड़ाई से पालन करने का आदेश देते हुए कर्नाटक राज्य बार काउंसिल को तत्काल प्रभाव से ऐसी कोई भी अतिरिक्त राशि वसूलना बंद करने को कहा है।
यह आदेश न्यायमूर्ति जे.बी. पारदीवाला और न्यायमूर्ति आर. महादेवन की पीठ ने एक अवमानना याचिका पर सुनवाई करते हुए पारित किया।
अवमानना याचिका की पृष्ठभूमि
यह मामला के.एल.जे.ए. किरण बाबू द्वारा दायर एक अवमानना याचिका के माध्यम से अदालत के समक्ष आया। याचिकाकर्ता ने आरोप लगाया था कि 30 जुलाई, 2024 के सुप्रीम कोर्ट के ऐतिहासिक फैसले में दिए गए निर्देशों का कर्नाटक राज्य बार काउंसिल द्वारा सही भावना से पालन नहीं किया जा रहा है। उस फैसले में कोर्ट ने पंजीकरण के लिए अत्यधिक शुल्क लेने पर रोक लगा दी थी।

पक्षों की दलीलें
इस याचिका के जवाब में, बार काउंसिल ऑफ इंडिया ने एक हलफनामा दायर कर दावा किया कि सभी राज्य बार काउंसिल अदालत के निर्देशों का पालन कर रहे हैं। बीसीआई ने तर्क दिया कि कर्नाटक राज्य बार काउंसिल द्वारा वसूली जा रही राशि—जिसमें आईडी कार्ड, प्रमाण पत्र, कल्याण कोष जैसी सेवाओं के लिए ₹6,800 और वैधानिक शुल्क के ऊपर ₹25,000 की अतिरिक्त राशि शामिल है—”वैकल्पिक थी, अनिवार्य नहीं।”
बीसीआई का प्रतिनिधित्व करते हुए, अध्यक्ष और वरिष्ठ अधिवक्ता मनन कुमार मिश्रा ने कहा कि काउंसिल ने 6 अगस्त, 2024 को सभी राज्य बार काउंसिलों को पत्र लिखकर सुप्रीम कोर्ट के फैसले के अनुसार ही पंजीकरण प्रक्रिया का सख्ती से पालन करने का निर्देश दिया था।
न्यायालय का विश्लेषण और निर्णय
पीठ ने “वैकल्पिक” शुल्क के तर्क को स्पष्ट रूप से खारिज कर दिया। 4 अगस्त, 2025 को पारित अपने आदेश में, अदालत ने अपनी स्थिति को असंदिग्ध रूप से स्पष्ट किया।
पीठ ने आदेश दिया, “हम यह स्पष्ट करते हैं कि ‘वैकल्पिक’ जैसा कुछ भी नहीं है। कोई भी राज्य बार काउंसिल या बार काउंसिल ऑफ इंडिया वैकल्पिक के रूप में किसी भी राशि का कोई शुल्क नहीं लेगी। वे मुख्य फैसले में इस अदालत द्वारा जारी निर्देशों के अनुसार ही सख्ती से शुल्क लेंगे।”
विशेष रूप से कर्नाटक राज्य बार काउंसिल को निर्देश देते हुए, न्यायालय ने कहा, “यदि कर्नाटक राज्य बार काउंसिल वैकल्पिक के रूप में कोई राशि वसूल रहा है, भले ही वह अनिवार्य न हो, तो इसे रोका जाना चाहिए।”
जुलाई 2024 का ऐतिहासिक फैसला
यह अवमानना कार्यवाही सुप्रीम कोर्ट के 30 जुलाई, 2024 के फैसले से उपजी है, जिसमें यह निर्णय दिया गया था कि राज्य बार काउंसिल कानून स्नातकों के पंजीकरण के लिए मनमाना शुल्क नहीं ले सकते। कोर्ट ने माना था कि ऐसी प्रथाएं हाशिए पर और आर्थिक रूप से कमजोर वर्गों के खिलाफ “प्रणालीगत भेदभाव” को बढ़ावा देती हैं।
कोर्ट ने पाया था कि अत्यधिक शुल्क वसूलना संविधान के तहत समानता के अधिकार (अनुच्छेद 14) और किसी भी पेशे का अभ्यास करने के अधिकार (अनुच्छेद 19(1)(g)) का उल्लंघन है। कोर्ट ने यह भी स्थापित किया था कि अधिवक्ता अधिनियम, 1961 के तहत, बार काउंसिल संसद द्वारा निर्धारित शुल्क संरचना को बदल नहीं सकती हैं। वैधानिक पंजीकरण शुल्क सामान्य वर्ग के उम्मीदवारों के लिए ₹750 और एससी/एसटी वर्ग के उम्मीदवारों के लिए ₹125 निर्धारित किया गया था।