सुप्रीम कोर्ट ने बुधवार को केरल के पलक्कड़ में वर्ष 2022 में हुए राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ (आरएसएस) नेता श्रीनिवासन की हत्या के मामले में आरोपी और पॉपुलर फ्रंट ऑफ इंडिया (PFI) के तत्कालीन केरल सचिव अब्दुल सत्तार को जमानत दे दी। अदालत ने इस दौरान विचारधारा और व्यक्तिगत स्वतंत्रता को लेकर अहम टिप्पणी की।
न्यायमूर्ति अभय एस ओका और न्यायमूर्ति उज्जल भुइयां की पीठ ने कहा:
“सिर्फ किसी की विचारधारा के कारण आप उसे जेल में नहीं डाल सकते। यही प्रवृत्ति देखने को मिल रही है। सिर्फ इसलिए कि उन्होंने किसी विशेष विचारधारा को अपनाया है, उन्हें जेल भेजा जा रहा है।”
पीठ ने यह भी स्पष्ट किया कि श्रीनिवासन की हत्या में अब्दुल सत्तार की कोई प्रत्यक्ष भूमिका नहीं पाई गई है।

मामला क्या है?
आरएसएस नेता श्रीनिवासन की अप्रैल 2022 में हत्या कर दी गई थी, जो एक दिन पहले एसडीपीआई नेता की हत्या के बाद हुई थी। इन घटनाओं ने केरल के पलक्कड़ जिले में सांप्रदायिक तनाव को जन्म दिया।
दिसंबर 2022 में केंद्र सरकार ने संसद में यह जानकारी दी थी कि श्रीनिवासन की हत्या पीएफआई द्वारा रची गई एक बड़ी साजिश का हिस्सा थी, जिसके “गंभीर राष्ट्रीय और अंतरराष्ट्रीय प्रभाव” हैं। इसके चलते मामले की जांच राष्ट्रीय जांच एजेंसी (NIA) को सौंप दी गई, जिसने 2023 में चार्जशीट और बाद में दो पूरक चार्जशीट दाखिल की।
केरल हाईकोर्ट का आदेश
केरल हाईकोर्ट ने 25 जून 2024 को इसी मामले में पीएफआई से जुड़े 17 आरोपियों को जमानत दी थी, जो राज्य और देश के अन्य हिस्सों में सांप्रदायिक हिंसा भड़काने के आरोप में भी मुकदमा झेल रहे हैं।
हाईकोर्ट ने जमानत देते हुए सख्त शर्तें लगाई थीं, जैसे मोबाइल नंबर और रियल-टाइम GPS लोकेशन जांच अधिकारी के साथ साझा करना।
आगे की राह
सुप्रीम कोर्ट का यह फैसला फिलहाल सिर्फ अब्दुल सत्तार तक सीमित है, लेकिन यह एक अहम मिसाल पेश करता है कि विचारधारा और आपराधिक कृत्य में स्पष्ट अंतर किया जाना चाहिए, खासकर जब मामला राष्ट्रीय सुरक्षा से जुड़ा हो।
एनआईए अब भी मामले में बड़ी साजिश की कड़ियों को जोड़ने में जुटी है और बाकी आरोपियों के खिलाफ UAPA और अन्य धाराओं में मुकदमा जारी है।