गंगा नदी के किनारों पर हो रहे अवैध निर्माण को लेकर सुप्रीम कोर्ट ने गंभीर चिंता जताई है और केंद्र सरकार तथा बिहार सरकार को इस संबंध में उठाए गए कदमों की स्थिति रिपोर्ट दाखिल करने का निर्देश दिया है।
न्यायमूर्ति जे बी पारडीवाला और न्यायमूर्ति के वी विश्वनाथन की पीठ ने सुनवाई के दौरान यह जानना चाहा कि गंगा किनारे वर्तमान में कितने अतिक्रमण मौजूद हैं और इन्हें हटाने के लिए क्या योजना बनाई गई है तथा कितना समय लगेगा।
पीठ ने टिप्पणी की, “हम यह जानना चाहते हैं कि गंगा के किनारों से अतिक्रमण हटाने के लिए संबंधित प्राधिकरणों ने अब तक क्या कदम उठाए हैं।” 2 अप्रैल को पारित आदेश में अदालत ने बिहार सरकार और भारत सरकार, दोनों से कहा कि वे इस संबंध में विस्तृत रिपोर्ट दाखिल करें ताकि मामले में आगे बढ़ा जा सके।
यह निर्देश पटना निवासी अशोक कुमार सिन्हा द्वारा दायर एक याचिका की सुनवाई के दौरान सामने आया। सिन्हा ने 30 जून 2020 को राष्ट्रीय हरित अधिकरण (एनजीटी) द्वारा उनकी याचिका खारिज किए जाने को चुनौती दी थी। याचिका में पर्यावरणीय दृष्टि से संवेदनशील गंगा के बाढ़ मैदानों पर हो रहे स्थायी और अवैध निर्माण पर आपत्ति जताई गई थी।
सिन्हा की ओर से पेश अधिवक्ता आकाश वशिष्ठ ने अदालत को बताया कि गंगा किनारे बड़े पैमाने पर अवैध निर्माण किए गए हैं, जिनमें आवासीय कॉलोनियां, ईंट भट्टे और धार्मिक संरचनाएं शामिल हैं। उन्होंने कहा कि यह क्षेत्र लुप्तप्राय गंगा डॉल्फ़िन का प्राकृतिक आवास है, जिसे बचाने के लिए तुरंत कार्रवाई आवश्यक है।
याचिका में एनजीटी के फैसले की यह कहकर आलोचना की गई कि उसने अतिक्रमण करने वालों की विस्तृत जानकारी की अनदेखी की है।
सुप्रीम कोर्ट ने इस मामले में अगली सुनवाई चार सप्ताह बाद तय की है और तब तक राज्य तथा केंद्र सरकार से विस्तृत रिपोर्ट की प्रतीक्षा की जाएगी।