सुप्रीम कोर्ट ने सोमवार को दिल्ली विकास प्राधिकरण (डीडीए) की उस योजना को मंजूरी दे दी जिसके तहत राष्ट्रीय राजधानी में प्रतिपूरक वृक्षारोपण के लिए 18 भूमि खंड वन विभाग को सौंपे जाएंगे। अदालत ने कहा कि यह कदम ऐसे शहर के लिए फायदेमंद होगा जो खासकर सर्दियों में गंभीर वायु प्रदूषण की समस्या से जूझता है।
न्यायमूर्ति सूर्यकांत,न्यायमूर्ति उज्जल भुयान और न्यायमूर्ति जॉयमाल्या बागची की पीठ ने डीडीए को निर्देश दिया कि वह वन विभाग को लगभग 46 करोड़ रुपये प्रदान करे ताकि इन 18 स्थलों पर 1.67 लाख से अधिक पेड़ लगाए जा सकें। अदालत ने स्पष्ट किया कि इन भूमि खंडों का उपयोग केवल वानिकी उद्देश्य के लिए किया जाएगा और इसके लिए अधिसूचना जारी की जाए ताकि भूमि उपयोग में कोई परिवर्तन न हो सके।
अदालत ने डीडीए को आदेश दिया कि सभी 18 स्थलों पर परिधि दीवार (perimeter wall) का निर्माण कराया जाए ताकि लगाए गए पेड़ों की सुरक्षा और रखरखाव सुनिश्चित हो सके। पीठ ने वृक्षारोपण की समयसीमा 31 मार्च 2026 तक बढ़ा दी, क्योंकि विशेषज्ञ समिति ने सुझाव दिया था कि सर्दी के मौसम में पौधारोपण न किया जाए।
अदालत ने तीन सदस्यीय विशेषज्ञ समिति—ईश्वर सिंह, सुनील लिमये और प्रदीप कृष्णन—को वृक्षारोपण प्रक्रिया की निगरानी जारी रखने का निर्देश दिया। न्यायमूर्ति सूर्यकांत ने समिति से कहा, “यह सुनिश्चित कीजिए कि इन 18 स्थानों की हर इंच भूमि उपयोगी हो।”
साथ ही, अदालत ने वन विभाग को भरोसा दिलाया कि यदि 46 करोड़ रुपये से अधिक की आवश्यकता पड़ी तो डीडीए को अतिरिक्त धन उपलब्ध कराने के निर्देश दिए जाएंगे।
यह आदेश उस पृष्ठभूमि में आया है जब सुप्रीम कोर्ट ने मई में डीडीए अधिकारियों को अवमानना का दोषी ठहराया था। उन्होंने अदालत के उस आदेश की जानबूझकर अवहेलना की थी जिसमें रिज क्षेत्र में पेड़ों की कटाई पर रोक लगाई गई थी। डीडीए ने पैरामिलिट्री बलों के अस्पताल के लिए सड़क चौड़ीकरण के नाम पर इस क्षेत्र में पेड़ों की कटाई की थी।
अदालत ने तब डीडीए पर 25 हजार रुपये का जुर्माना लगाते हुए उसे दिल्ली में 185 एकड़ भूमि पर वृक्षारोपण करने का आदेश दिया था। हालांकि अदालत ने यह भी माना कि परियोजना का उद्देश्य केंद्रीय सशस्त्र पुलिस बलों के अस्पताल के लिए मार्ग बनाना था और यह दुर्भावनापूर्ण नहीं था, लेकिन अधिकारियों ने न्यायालय के आदेशों की जानबूझकर अनदेखी की और तथ्य छिपाए।
अदालत ने अपने पहले के आदेश में कहा था कि डीडीए के अधिकारियों ने न केवल अदालत के आदेशों को छिपाया बल्कि इससे दिल्ली के उपराज्यपाल वी. के. सक्सेना को भी “एक शर्मनाक स्थिति” में डाल दिया। कोर्ट ने यह भी चेतावनी दी थी कि यदि यह पाया गया कि परियोजना को पैरामिलिट्री बलों की आड़ में निजी या संपन्न वर्ग के हितों को साधने के लिए आगे बढ़ाया गया, तो इसे अदालत बेहद गंभीरता से लेगी।
अदालत ने कहा कि रिज क्षेत्र में हुए पर्यावरणीय नुकसान की भरपाई के लिए तत्काल और समयबद्ध सुधारात्मक कदम उठाना जरूरी है। सोमवार को पारित आदेश से यह सुनिश्चित किया गया है कि दिल्ली में हरित आवरण बहाल करने की प्रक्रिया अब सख्त निगरानी और पारदर्शिता के साथ आगे बढ़ेगी।




