सुप्रीम कोर्ट ने सोमवार को केंद्र सरकार, चुनाव आयोग और कई राजनीतिक दलों से उस याचिका पर जवाब तलब किया है जिसमें आयकर अधिनियम की उस प्रावधान को चुनौती दी गई है जो राजनीतिक दलों को ₹2,000 तक के “अनाम” कैश चंदे स्वीकार करने की अनुमति देता है। याचिकाकर्ता का कहना है कि यह व्यवस्था राजनीतिक फंडिंग में पारदर्शिता खत्म करती है और मतदाताओं को चंदे के स्रोत तथा दाताओं के उद्देश्यों से अनजान रखकर चुनाव प्रक्रिया की शुचिता पर प्रतिकूल प्रभाव डालती है।
जस्टिस विक्रम नाथ और जस्टिस संदीप मेहता की पीठ ने नोटिस जारी करते हुए कहा कि मामले की विस्तृत सुनवाई चार सप्ताह बाद की जाएगी। वरिष्ठ अधिवक्ता विजय हंसारिया, जो याचिकाकर्ता खेमा सिंह भाटी की ओर से अधिवक्ता स्नेहा कलिता के साथ उपस्थित हुए थे, ने दलील दी कि यह मुद्दा देश के सभी राजनीतिक दलों और फंडिंग प्रणाली से जुड़ा है, इसलिए सुप्रीम कोर्ट से ही इसे तय किया जाना चाहिए।
नोटिस जारी करने से पहले पीठ ने शुरू में पूछा कि याचिकाकर्ता ने पहले हाई कोर्ट का दरवाज़ा क्यों नहीं खटखटाया। पीठ ने कहा, “पहले हाई कोर्ट को इस पर विचार करने दीजिए।” हालांकि बाद में पीठ ने याचिका सुनने पर सहमति जताई।
याचिका में आयकर अधिनियम, 1961 की धारा 13A(d) को असंवैधानिक करार देने की मांग की गई है। यह प्रावधान राजनीतिक दलों को ₹2,000 तक की नकद देनदारी के लिए दाता की पहचान उजागर न करने की अनुमति देता है। याचिका में कहा गया है कि यह प्रावधान चुनावी प्रक्रिया की पवित्रता को नुकसान पहुँचाता है और मतदाताओं के उस मौलिक अधिकार का हनन करता है जिसके तहत वे पूरी जानकारी के आधार पर मताधिकार का प्रयोग कर सकें।
याचिका में दर्ज है, “अनाम नकद चंदे की यह अनुमति वोटर के अनुच्छेद 19(1)(a) के तहत सूचना के अधिकार का सीधा उल्लंघन है।”
अधिवक्ता जयेश के. उन्निकृष्णन के माध्यम से दायर याचिका में निम्नलिखित निर्देश मांगे गए हैं:
- धारा 13A(d) को असंवैधानिक घोषित किया जाए
- चुनाव आयोग को निर्देश दिया जाए कि कोई भी राजनीतिक दल कैश में कोई राशि स्वीकार न करे
- हर चंदे के लिए दाता का नाम और पूरी जानकारी सार्वजनिक करना अनिवार्य किया जाए
- सभी मान्यता प्राप्त दलों की Form 24A रिपोर्ट की जांच चुनाव आयोग करे
- आवश्यक जानकारी न देने वाले दलों के आरक्षित चुनाव चिह्न को अस्थायी रूप से निलंबित या वापस लेने की कार्यवाही शुरू की जाए
- सभी राजनीतिक दलों के खातों का ऑडिट स्वतंत्र ऑडिटरों द्वारा कराया जाए, जिन्हें चुनाव आयोग नियुक्त करे
- CBDT को पिछले पाँच वर्षों के आयकर रिटर्न और ऑडिट रिपोर्ट की जांच कर नियमों के उल्लंघन पर कर, जुर्माना और अभियोजन की कार्रवाई का निर्देश दिया जाए
याचिका में सुप्रीम कोर्ट के 2024 के उस ऐतिहासिक फैसले का भी उल्लेख किया गया है जिसमें इलेक्टोरल बॉन्ड योजना को रद्द कर दिया गया था। याचिकाकर्ता का कहना है कि जब न्यायालय ने राजनीतिक फंडिंग में पारदर्शिता पर इतना ज़ोर दिया है तो ₹2,000 तक की अनाम नकद देनदारी की अनुमति जारी रहना असंगत और मनमाना है।
यह भी कहा गया है कि देश में डिजिटल भुगतान और UPI लेनदेन के व्यापक प्रसार के बाद कैश चंदे की छूट को बनाए रखने का कोई औचित्य नहीं बचता।
नोटिस केंद्र, चुनाव आयोग और बीजेपी व कांग्रेस सहित कई राजनीतिक दलों को भेजा गया है। चार सप्ताह बाद मामले की सुनवाई निर्धारित है।




