सुप्रीम कोर्ट ने 2016 की एक हत्या के मामले में उम्रकैद की सजा पाए व्यक्ति को बरी कर दिया है, यह कहते हुए कि उसके खिलाफ मौजूद परिस्थितिजन्य साक्ष्य इतने निर्णायक नहीं हैं कि उसे दोषी ठहराया जा सके।
जस्टिस संजय करोल और जस्टिस प्रशांत कुमार मिश्रा की पीठ ने ओडिशा हाईकोर्ट के उस आदेश को रद्द कर दिया, जिसमें अप्रैल 2024 में निचली अदालत द्वारा दी गई सजा को बरकरार रखा गया था। निचली अदालत ने पद्मन बिभार को अपनी पत्नी के चचेरे भाई की हत्या के आरोप में दोषी ठहराते हुए आजीवन कारावास की सजा सुनाई थी।
पीठ ने कहा, “इस मामले में आरोपी के खिलाफ एकमात्र साक्ष्य ‘अंतिम बार साथ देखे जाने’ का है। हत्या के पीछे का उद्देश्य भी हमें प्रतिकूल परिस्थिति के रूप में संतोषजनक नहीं लगता, क्योंकि यदि आरोपी को अपनी पत्नी की चरित्र पर संदेह होता, तो वह अपनी पत्नी को नुकसान पहुंचाता, न कि उसके चचेरे भाई को, जिससे उसका कोई व्यक्तिगत द्वेष नहीं था।”

न्यायालय ने यह भी स्पष्ट किया कि कथित हत्या में इस्तेमाल पत्थर (जिससे खोपड़ी पर घातक वार किया गया) और शव को आरोपी के कहने पर बरामद नहीं किया गया, और न ही उसने अपराध स्वीकार किया।
“हालाँकि आरोपी की शर्ट और पत्थर पर मानव रक्त पाया गया, लेकिन रक्त समूह का मिलान नहीं हो सका, जिससे फॉरेंसिक रिपोर्ट निष्कर्षहीन रही,” पीठ ने कहा।
सुप्रीम कोर्ट ने कहा कि यद्यपि परिस्थितिजन्य साक्ष्य यह संदेह उत्पन्न करते हैं कि हत्या पद्मन बिभार ने की हो सकती है, लेकिन यह इतना निर्णायक नहीं है कि केवल ‘अंतिम बार साथ देखे जाने’ के आधार पर उसे दोषी ठहराया जाए।
“हम निचली अदालत और हाईकोर्ट द्वारा पारित दोषसिद्धि और सजा को रद्द करते हैं और आरोपी को आईपीसी की धारा 302 (हत्या) और 201 (साक्ष्य मिटाने) के तहत लगाए गए आरोपों से बरी करते हैं,” अदालत ने अपने निर्णय में कहा।