नई दिल्ली, 22 जुलाई 2025 — वैवाहिक विवादों में भारतीय दंड संहिता की धारा 498ए के दुरुपयोग को रोकने और दोनों पक्षों के अधिकारों की रक्षा करने के उद्देश्य से, सुप्रीम कोर्ट ने इलाहाबाद हाईकोर्ट द्वारा जारी दिशा-निर्देशों को मंजूरी दी है। ये दिशा-निर्देश न्यायमूर्ति राहुल चतुर्वेदी द्वारा पारित निर्णय क्रिमिनल रिवीजन नं. 1126/2022 में जारी किए गए थे, जिसमें 498ए मामलों में गिरफ्तारी से पहले दो महीने की “कूलिंग-ऑफ पीरियड” की व्यवस्था की गई है।
यह ऐतिहासिक फैसला शिवांगी बंसल बनाम साहिब बंसल [ट्रांसफर पिटीशन (सिविल) नं. 2367/2023] और संबंधित मामलों में दिया गया। निर्णय न्यायमूर्ति ऑगस्टीन जॉर्ज मसीह द्वारा लिखा गया और भारत के मुख्य न्यायाधीश न्यायमूर्ति बी.आर. गवई ने उससे सहमति व्यक्त की।
मामले की पृष्ठभूमि

यह मामला शिवांगी बंसल (शिवांगी गोयल) और उनके पति साहिब बंसल के बीच वैवाहिक विवाद से संबंधित था। दोनों का विवाह 5 दिसंबर 2015 को हुआ था और उनकी एक बेटी है, जिसका जन्म 23 दिसंबर 2016 को हुआ। मतभेद के कारण 4 अक्टूबर 2018 को दोनों अलग हो गए।
दिल्ली और उत्तर प्रदेश में 498ए IPC के तहत आपराधिक शिकायतों, घरेलू हिंसा, भरण-पोषण और कई स्थानांतरण याचिकाओं सहित 20 से अधिक मुकदमे दर्ज हुए थे, जिन्हें सुप्रीम कोर्ट ने एक साथ संज्ञान में लिया।
मुख्य कानूनी प्रश्न
क्या धारा 498ए के तहत दर्ज आपराधिक मुकदमों और गिरफ्तारी को टालकर इस प्रावधान के दुरुपयोग को रोका जा सकता है? क्या पक्षों के बीच चल रही लंबित याचिकाओं को आपसी समझौते के आधार पर समाप्त किया जा सकता है? क्या इलाहाबाद हाईकोर्ट द्वारा गठित फैमिली वेलफेयर कमेटी (FWC) की वैधानिकता और कार्यप्रणाली को लागू किया जा सकता है?
सुप्रीम कोर्ट की टिप्पणियाँ और निर्णय
सर्वोच्च न्यायालय ने इलाहाबाद हाईकोर्ट के क्रिमिनल रिवीजन नं. 1126/2022 में दिए गए फैसले की गहन समीक्षा की और उसमें दिए गए दिशा-निर्देशों (अनुच्छेद 32 से 38) को बरकरार रखा।
कोर्ट ने कहा कि धारा 498ए का अंधाधुंध उपयोग भारतीय विवाह संस्था की “परंपरागत खुशबू” को नष्ट कर सकता है।
सुप्रीम कोर्ट द्वारा स्वीकृत मुख्य दिशा-निर्देश
गिरफ्तारी से पूर्व 2 महीने का ‘कूलिंग पीरियड’: FIR या शिकायत दर्ज होने के बाद दो महीने तक कोई गिरफ्तारी नहीं की जाएगी। इस दौरान मामला फैमिली वेलफेयर कमेटी (FWC) को भेजा जाएगा। फैमिली वेलफेयर कमेटियों का गठन: प्रत्येक जनपद में एक FWC जिला विधिक सेवा प्राधिकरण (DLSA) के अधीन गठित की जाएगी। इसमें युवा मध्यस्थ, सेवानिवृत्त न्यायाधीश, अनुभवी समाजसेवी या विधि विशेषज्ञ सदस्य होंगे। FWC सदस्य अदालत में गवाह नहीं बन सकेंगे। गिरफ्तारी से पूर्व प्रक्रिया: सभी 498ए शिकायतें पहले FWC को भेजी जाएंगी। समिति दोनों पक्षों (तथा प्रत्येक पक्ष के दो वरिष्ठ परिजन सहित) से बातचीत कर दो महीने में रिपोर्ट देगी। मजिस्ट्रेट और पुलिस की भूमिका: मजिस्ट्रेट FWC की रिपोर्ट मिलने तक कोई दंडात्मक कार्रवाई टाल सकते हैं। जांच अधिकारी विशेष रूप से प्रशिक्षित हों और पारदर्शिता से कार्य करें। समझौता और सुलह: यदि समझौता हो जाए तो जिला न्यायाधीश मुकदमा समाप्त कर सकते हैं। FWC को लॉजिस्टिक और तकनीकी सहायता विधिक सेवा प्राधिकरण द्वारा दी जाएगी। राज्य प्राधिकरणों को निर्देश: इलाहाबाद हाईकोर्ट के रजिस्ट्रार जनरल को आदेश दिया गया कि यह निर्णय एक महीने के भीतर सभी जिला एवं सत्र न्यायाधीशों और पुलिस प्रमुखों तक पहुँचाया जाए।
वर्तमान मामले में समाधान
वरिष्ठ अधिवक्ता सिद्धार्थ लूथरा (शिवांगी बंसल के लिए) और वरिष्ठ अधिवक्ता विकास सिंह (साहिब बंसल के लिए) की उपस्थिति में सुप्रीम कोर्ट को सूचित किया गया कि दोनों पक्षों में आपसी समझौता हो गया है।
कोर्ट द्वारा दिए गए आदेश:
नाबालिग बच्ची रैना की कस्टडी मां को दी गई; पिता को पर्यवेक्षित मुलाकात का अधिकार। सभी आपराधिक व दीवानी मुकदमे समाप्त किए गए। पत्नी ने भरण-पोषण का दावा छोड़ा। शिवांगी बंसल द्वारा बिना दायित्व माने सार्वजनिक क्षमा याचना प्रकाशित की जाएगी। पत्नी की मां की संपत्ति पति के नाम स्थानांतरित। दोनों पक्ष भविष्य में एक-दूसरे के विरुद्ध कोई मुकदमा दाखिल नहीं कर सकेंगे।
कोर्ट ने संविधान के अनुच्छेद 142 के तहत विवाह विच्छेद का आदेश पारित किया और सभी समझौता शर्तों के अनुपालन का निर्देश दिया।
मामले का विवरण:
मामला: शिवांगी बंसल बनाम साहिब बंसल
निर्णय दिनांक: 22 जुलाई 2025
पीठ: मुख्य न्यायाधीश बी.आर. गवई और न्यायमूर्ति ऑगस्टीन जॉर्ज मसीह
निर्णय संख्या: 2025 INSC 883
हाईकोर्ट निर्णय की पुष्टि: इलाहाबाद हाईकोर्ट का 13 जून 2022 का निर्णय (क्रिमिनल रिवीजन नं. 1126/2022)