सुप्रीम कोर्ट ने गुरुवार को पूर्व आईपीएस अधिकारी संजीव भट्ट द्वारा दायर उस याचिका को खारिज कर दिया, जिसमें उन्होंने 1996 के ड्रग्स बरामदगी मामले में मिली 20 वर्ष की सजा को निलंबित करने का अनुरोध किया था।
जस्टिस जे.के. महेश्वरी और जस्टिस विजय बिश्नोई की पीठ ने कहा कि वह इस याचिका पर विचार करने के लिए इच्छुक नहीं है। भट्ट ने अपने खिलाफ हुए सजा के आदेश को चुनौती देते हुए सजा निलंबन की मांग की थी।
गुजरात के बनासकांठा जिले के पालनपुर स्थित सत्र न्यायालय ने भट्ट को 1996 के जिस मामले में दोषी ठहराया, उसमें उन पर आरोप था कि उन्होंने राजस्थान के एक वकील सुमेर सिंह राजपुरोहित को झूठे ड्रग्स केस में फंसाया।
बनासकांठा पुलिस ने 1996 में दावा किया था कि उन्होंने पालनपुर के एक होटल के कमरे से ड्रग्स बरामद किए, जहां वह वकील ठहरा हुआ था। बाद में राजस्थान पुलिस ने बताया कि वकील को एक विवादित संपत्ति को अपने नाम से स्थानांतरित कराने के दबाव में झूठा फंसाया गया था।
पूर्व पुलिस निरीक्षक आई.बी. व्यास ने 1999 में गुजरात हाईकोर्ट का दरवाजा खटखटाकर मामले की विस्तृत जांच की मांग की थी। इसके बाद हुई जांच के दौरान भट्ट को सितंबर 2018 में गुजरात सीआईडी ने एनडीपीएस मामले में गिरफ्तार किया था। वह तब से पालनपुर सब-जेल में बंद हैं।
पिछले वर्ष, भट्ट ने सुप्रीम कोर्ट में एक और याचिका दायर कर ट्रायल को किसी दूसरी सत्र अदालत में स्थानांतरित करने की मांग की थी, यह कहते हुए कि ट्रायल जज उनके खिलाफ पक्षपाती हैं। उन्होंने ट्रायल कार्यवाही की रिकॉर्डिंग के निर्देश भी मांगे थे। सुप्रीम कोर्ट ने उस याचिका को खारिज कर दिया था और उन पर तीन लाख रुपये की लागत भी लगाई थी, यह कहते हुए कि पक्षपात के आरोप बेबुनियाद हैं।
गुरुवार के आदेश के साथ, पालनपुर सत्र अदालत द्वारा सुनाई गई 20 वर्ष की सजा यथावत बनी रहेगी और भट्ट को फिलहाल कोई राहत नहीं मिली है।

