सुप्रीम कोर्ट ने गुरुवार को भारत में रह रहे रोहिंग्या समुदाय की कानूनी स्थिति को लेकर अहम मुद्दे तय किए और कहा कि सबसे पहले यह स्पष्ट किया जाना ज़रूरी है कि वे “शरणार्थी” हैं या “अवैध घुसपैठिए”।
न्यायमूर्ति सूर्यकांत, न्यायमूर्ति दीपांकर दत्ता और न्यायमूर्ति एन कोटिश्वर सिंह की पीठ ने यह टिप्पणी उन याचिकाओं पर सुनवाई के दौरान की जो देश में रोहिंग्याओं की स्थिति से संबंधित हैं।
पीठ ने कहा, “सबसे अहम सवाल यही है—क्या वे शरणार्थी हैं या अवैध घुसपैठिए?”
सुप्रीम कोर्ट ने तय किए ये प्रमुख कानूनी प्रश्न:
- क्या रोहिंग्या शरणार्थी घोषित किए जा सकते हैं?
अगर हां, तो “उन्हें कौन-कौन से अधिकार, संरक्षण और सुविधाएं प्राप्त हो सकती हैं?” - अगर वे अवैध प्रवासी हैं, तो क्या उनका निर्वासन वैध है?
पीठ ने सवाल किया, “यदि उन्हें अवैध घुसपैठिया माना गया, तो क्या उन्हें अनिश्चितकाल तक हिरासत में रखा जा सकता है या फिर क्या उन्हें ज़मानत पर रिहा किया जाना चाहिए?” - शिविरों में रह रहे रोहिंग्याओं को बुनियादी सुविधाएं मिल रही हैं या नहीं?
जिन रोहिंग्याओं को हिरासत में नहीं लिया गया है और जो शरणार्थी शिविरों में रह रहे हैं, उनके लिए पीने का पानी, शौचालय, शिक्षा जैसी मूलभूत सुविधाएं उपलब्ध कराई गई हैं या नहीं, यह भी एक मुद्दा है। - अवैध प्रवासियों के निर्वासन की कानूनी बाध्यता क्या है?
“यदि उन्हें अवैध प्रवासी माना जाए, तो क्या भारत सरकार और राज्य सरकारों पर उन्हें कानून के अनुसार देश से बाहर भेजने की बाध्यता है?”
याचिकाओं को तीन वर्गों में विभाजित किया गया
पीठ ने याचिकाओं को तीन समूहों में बांटा—
(1) जो विशेष रूप से रोहिंग्याओं से संबंधित हैं,
(2) जो इस विषय से संबंधित नहीं हैं, और
(3) एक याचिका जो पूरी तरह से अलग मुद्दे से जुड़ी है।

सुनवाई अगले बुधवार से शुरू होगी और हर बुधवार को एक समूह की सुनवाई की जाएगी। कोर्ट ने यह भी स्पष्ट किया कि निर्वासन से संबंधित मामलों में वह केवल सैद्धांतिक दिशा-निर्देश ही तय कर सकती है।
पहले भी कर चुका है सुप्रीम कोर्ट सख्त टिप्पणियां
गौरतलब है कि मई 2025 में सुप्रीम कोर्ट ने कुछ याचिकाकर्ताओं को फटकार लगाई थी जिन्होंने दावा किया था कि 43 रोहिंग्याओं को अंडमान सागर में म्यांमार भेजने के लिए छोड़ दिया गया। कोर्ट ने कहा था, “जब देश कठिन समय से गुजर रहा है, तब आप कल्पनात्मक दावे लेकर आते हैं।”
8 मई को कोर्ट ने कहा था कि यदि रोहिंग्या भारतीय कानूनों के तहत विदेशी पाए जाते हैं, तो उन्हें निर्वासित किया जाएगा। अदालत ने यह भी स्पष्ट किया था कि UNHCR द्वारा जारी पहचान पत्र भारतीय कानून के तहत उन्हें कोई कानूनी मदद नहीं दिला सकते।
अब सुप्रीम कोर्ट इन बिंदुओं पर विस्तार से सुनवाई करेगा, जो न केवल रोहिंग्याओं की कानूनी स्थिति बल्कि भारत की शरणार्थी नीति को भी प्रभावित कर सकते हैं।