केरल हाईकोर्ट ने स्पष्ट किया है कि यदि कोई अभ्यर्थी सामान्य श्रेणी में आवेदन करता है और उसके समुदाय को आवेदन की अंतिम तिथि के बाद अन्य पिछड़ा वर्ग (OBC) की सूची में शामिल किया जाता है, तो वह उस भर्ती प्रक्रिया में आरक्षण का लाभ नहीं ले सकता। न्यायालय ने केरल प्रशासनिक अधिकरण (KAT) के उस आदेश को रद्द कर दिया, जिसमें ऐसे ही एक अभ्यर्थी को आरक्षण का लाभ दिया गया था।
यह निर्णय न्यायमूर्ति ए. मुहम्मद मुस्ताक और न्यायमूर्ति जॉनसन जॉन की खंडपीठ ने 4 जुलाई 2025 को ओ.पी. (KAT) संख्या 433/2024 में सुनाया।
मामला क्या था
केरल लोक सेवा आयोग (PSC) ने 30 अगस्त 2016 को मलयालम माध्यम में हाई स्कूल सहायक (भौतिक विज्ञान) पद के लिए अधिसूचना जारी की थी। आवेदन की अंतिम तिथि 5 अक्टूबर 2016 थी।

उत्तरदाता संख्या 7 श्रीमती मिनुषा के. ने सामान्य श्रेणी के रूप में आवेदन किया था। उस समय उनका समुदाय — मुखरी/मूवारी — ओबीसी सूची में शामिल नहीं था। बाद में, 18 दिसंबर 2018 को राज्य सरकार ने एक शासनादेश जारी कर इस समुदाय को केरल राज्य एवं अधीनस्थ सेवा नियमावली, 1958 की अनुसूची III, भाग I के तहत ओबीसी में शामिल कर दिया।
इसके बाद, मिनुषा ने 13 जून 2019 को नॉन-क्रीमी लेयर प्रमाणपत्र प्राप्त कर PSC पोर्टल पर अपनी प्रोफाइल अपडेट की। 18 नवंबर 2020 को PSC ने रैंक सूची प्रकाशित की, जिसमें मिनुषा को सामान्य श्रेणी में रखा गया, जबकि याचिकाकर्ता श्रीमती सिनी के.वी. को ओबीसी श्रेणी में रैंक प्राप्त हुआ।
बाद में, मिनुषा ने PSC से अनुरोध किया कि उन्हें ओबीसी श्रेणी का लाभ दिया जाए, लेकिन आयोग ने उनका अनुरोध अस्वीकार कर दिया। इसके विरुद्ध उन्होंने केरल प्रशासनिक अधिकरण में याचिका दायर की, जहां अधिकरण ने उनके पक्ष में निर्णय दिया और कहा कि आरक्षण नियुक्ति के समय लागू होता है, न कि आवेदन के समय।
हाईकोर्ट का निर्णय
हाईकोर्ट ने अधिकरण के आदेश को गलत बताते हुए कहा कि यह निर्णय Karn Singh Yadav v. State (NCT of Delhi) [(2024) 2 SCC 716] में सुप्रीम कोर्ट द्वारा तय सिद्धांतों के विपरीत है। कोर्ट ने कहा:
“यदि कट-ऑफ तिथि के बाद आवेदन को संशोधित करने की अनुमति दी जाती है, तो इससे चयन प्रक्रिया अनिश्चित हो जाएगी।”
न्यायालय ने जोर देते हुए कहा कि:
“लोक सेवाओं में समान अवसर संविधान का मूल मूल्य है। कोई भी संयोगवश दूसरों से आगे नहीं बढ़ सकता। यदि अधिसूचना की तिथि पर कोई अभ्यर्थी आरक्षण का दावा नहीं कर सकता, तो बाद में वह ऐसा नहीं कर सकता।”
कोर्ट ने J&K Public Service Commission v. Israr Ahmad [(2005) 12 SCC 498] का भी हवाला दिया, जिसमें सुप्रीम कोर्ट ने स्पष्ट किया था कि जो अभ्यर्थी आवेदन के समय आरक्षित श्रेणी में आवेदन नहीं करता, वह बाद में प्रमाणपत्र प्रस्तुत कर आरक्षण का दावा नहीं कर सकता।
हाईकोर्ट ने PSC द्वारा किसी अन्य मामले में इसी तरह आरक्षण का लाभ देने को गलत मानते हुए कहा:
“एक गलती दूसरों के लिए अधिकार नहीं बन सकती।”
कोर्ट ने कहा कि अधिकरण द्वारा दिया गया आदेश गंभीर त्रुटि से ग्रस्त है और उसे रद्द किया जाना आवश्यक है। इसके साथ ही कोर्ट ने श्रीमती सिनी के.वी. की याचिका स्वीकार कर ली और अधिकरण का आदेश रद्द कर दिया।