सुनियोजित समायोजन कोई दया नहीं, बल्कि मौलिक अधिकार है; सुप्रीम कोर्ट ने AIIMS को SC-PwBD श्रेणी के छात्र को MBBS पाठ्यक्रम में दाख़िला देने का निर्देश दिया

सुप्रीम कोर्ट ने एक महत्वपूर्ण निर्णय में दिल्ली हाई कोर्ट के उस आदेश को निरस्त कर दिया है, जिसमें एक अनुसूचित जाति (SC) के विकलांगता वाले (PwBD) छात्र को MBBS पाठ्यक्रम में प्रवेश देने से इनकार कर दिया गया था। शीर्ष अदालत ने ऑल इंडिया इंस्टीट्यूट ऑफ मेडिकल साइंसेज (AIIMS), नई दिल्ली को निर्देश दिया कि वह उसे शैक्षणिक सत्र 2025–2026 में SC-PwBD कोटे के अंतर्गत प्रवेश दे। न्यायालय ने यह स्पष्ट किया कि “सुनियोजित समायोजन (Reasonable Accommodation) कोई दान या कृपा नहीं बल्कि संविधान के अनुच्छेद 14, 16 और 21 के तहत प्राप्त मौलिक अधिकार है।”

यह फैसला न्यायमूर्ति विक्रम नाथ और न्यायमूर्ति संदीप मेहता की खंडपीठ ने कबीर पहाड़िया बनाम नेशनल मेडिकल कमिशन व अन्य [सिविल अपील नं. __ / 2025 arising from SLP (Civil) No. 29275 of 2024] मामले में सुनाया।

पृष्ठभूमि:

अपीलकर्ता कबीर पहाड़िया, जो 42% लोकोमोटर विकलांगता से ग्रस्त हैं और अनुसूचित जाति वर्ग से आते हैं, ने NEET-UG 2024 परीक्षा में 542 अंक प्राप्त किए थे तथा SC-PwBD श्रेणी में 176वीं रैंक प्राप्त की थी। इसके बावजूद, उन्हें VMMC-SJ अस्पताल और बाद में AIIMS के मेडिकल बोर्ड द्वारा NMC/MCI दिशानिर्देशों के आधार पर अयोग्य घोषित कर MBBS में प्रवेश देने से इनकार कर दिया गया।

दिल्ली हाई कोर्ट में उनकी याचिका 10 सितंबर 2024 को एकल न्यायाधीश द्वारा खारिज कर दी गई थी और फिर 12 नवम्बर 2024 को खंडपीठ द्वारा उनकी Letters Patent Appeal भी निरस्त कर दी गई, जिसके खिलाफ वर्तमान अपील दायर की गई।

अपीलकर्ता की दलीलें:

एडवोकेट राहुल बजाज ने अपीलकर्ता की ओर से पेश होकर तर्क दिया कि दाख़िला से इनकार विकलांग व्यक्तियों के अधिकार अधिनियम, 2016 का उल्लंघन है और उनकी शैक्षणिक उत्कृष्टता की अवहेलना की गई है। उन्होंने Om Rathod बनाम Director General of Health Sciences (2024) और Anmol बनाम भारत संघ (2025) में सुप्रीम कोर्ट द्वारा दिए गए निर्णयों का हवाला दिया, जिनमें सहायक उपकरण और सुनियोजित समायोजन को विकलांग उम्मीदवारों के अधिकार के रूप में मान्यता दी गई है।

यह भी तर्क दिया गया कि पहाड़िया की विकलांगता इन मामलों के उम्मीदवारों से कम थी और उन्होंने नैदानिक प्रक्रियाएं प्रभावी ढंग से करने की क्षमता प्रदर्शित की थी।

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सुप्रीम कोर्ट के निर्देश और टिप्पणियां:

अदालत ने 2 अप्रैल 2025 को AIIMS में पाँच सदस्यीय मेडिकल बोर्ड द्वारा पुनर्मूल्यांकन का आदेश दिया था। 24 अप्रैल 2025 को प्राप्त रिपोर्ट में कहा गया कि पहाड़िया ने इंट्यूबेशन, सिलाई और चेस्ट कंप्रेशन जैसे कार्य सफलतापूर्वक किए हैं। केवल एकमात्र कठिनाई यह पाई गई कि वे मानक स्टीरलाइज्ड दस्ताने पहनने में परेशानी महसूस करते हैं।

कोर्ट ने इसे “तुच्छ विचलन” बताया और कहा:

“यह सामान्य विचलन किसी भी दृष्टिकोण से प्रवेश अस्वीकार करने का आधार नहीं हो सकता, जब छात्र अन्यथा योग्य है और उच्च रैंक प्राप्त कर चुका है।”

कोर्ट ने पाया कि उसी श्रेणी में एक कम मेरिट वाला उम्मीदवार पहले ही AIIMS में दाखिल किया जा चुका है, जिससे पहाड़िया को प्रवेश से वंचित करना “गंभीर रूप से अवैध, मनमाना और उनके मौलिक अधिकारों का उल्लंघन” है।

पीठ ने यह भी दोहराया:

“समानता का संवैधानिक वादा केवल औपचारिक नहीं, बल्कि वास्तविक और सारगर्भित होना चाहिए… सुनियोजित समायोजन दया नहीं, बल्कि अनुच्छेद 14, 16 और 21 से प्रवाहित मौलिक अधिकार है।”

दिशानिर्देशों में संशोधन का आदेश:

सुप्रीम कोर्ट ने नेशनल मेडिकल कमिशन (NMC) को निर्देश दिया कि वह Om Rathod और Anmol मामलों के अनुसार अपनी गाइडलाइंस में संशोधन करे और यह कार्य दो महीने के भीतर तथा अगली काउंसलिंग प्रक्रिया शुरू होने से पहले हर हाल में पूरा किया जाए। कोर्ट ने चेताया:

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“बेंचमार्क विकलांगता से ग्रस्त व्यक्तियों के खिलाफ प्रणालीगत भेदभाव, चाहे प्रत्यक्ष हो या अप्रत्यक्ष, समाप्त किया जाना चाहिए… उनकी क्षमता का आकलन व्यक्तिगत, साक्ष्य-आधारित और पूर्वाग्रहों से मुक्त होना चाहिए।”

निष्कर्ष:

अपील को स्वीकार कर लिया गया और दिल्ली हाई कोर्ट का 12 नवम्बर 2024 का निर्णय निरस्त कर दिया गया। न्यायालय ने अधिवक्ताओं राहुल बजाज और अमर जैन (दोनों ही बेंचमार्क विकलांगता वाले) की प्रभावी अधिवक्ता प्रस्तुति की सराहना की और एएसजी अर्चना पाठक डवे के सहयोगात्मक रुख की भी प्रशंसा की।

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