राजस्थान हाईकोर्ट ने 21 साल पहले 2002 में सोडाला थाना इलाके में वकील पीसी स्वामी के अप्रूव्ड भूखंड पर बनाए मकान में तोड़फोड़ के मामले में अदालती आदेश के बाद भी नगर निगम के तत्कालीन अफसरों द्वारा प्रार्थी पक्ष को दस लाख रुपए मुआवजा नहीं देने को गंभीर माना है।
इसके साथ ही अदालत ने स्वायत्त शासन विभाग के सचिव, नगर निगम के तत्कालीन कमिश्नर विजय पाल सिंह व सिविल लाइन जोन के तत्कालीन कमिश्नर देवेन्द्र कुमार को निर्देश दिए हैं कि वे एक सप्ताह में 50 हजार रुपए के अतिरिक्त हर्जाना राशि के साथ प्रार्थी पक्ष को दस लाख रुपए मुआवजा राशि भुगतान करें।
अदालत ने कहा कि आदेश की पालना नहीं होने पर संबंधित अफसर अदालत में 18 मई को शपथ पत्र सहित हाजिर होकर स्पष्टीकरण दें कि उन्होंने आदेश की पालना क्यों नहीं की। जस्टिस महेन्द्र कुमार गोयल ने यह आदेश मृतक वकील पीसी स्वामी के वारिसों की अवमानना याचिका पर दिए। अदालत ने कहा कि यह बड़ा चौंकाने वाला है कि आदेश के चार साल बाद भी पालना नहीं हुई और अब दो सप्ताह का समय मांगा जा रहा है।
याचिकाकर्ता की ओर से अधिवक्ता प्रहलाद शर्मा ने बताया कि हाईकोर्ट ने मई 2019 को नगर निगम को निर्देश दिया था कि वह पीसी स्वामी के मकान में की गई तोड़फोड़ की एवज में उन्हें दस लाख रुपए मुआवजा एक महीने में दे। इसके साथ ही मुआवजा राशि नगर निगम के संबंधित अफसर व कर्मचारियों से वसूलकर उनके खिलाफ अनुशासनात्मक कार्रवाई की जाए, लेकिन इस आदेश की पालना नहीं हुई। दरअसल याचिकाकर्ता के पिता ने वर्ष 2002 में जेडीए से अप्रूव्ड भूखंड खरीदकर उस पर मकान बनाया।
इस दौरान नगर निगम के दो कर्मचारी उसके मकान पर पहुंचे और उससे 15 हजार रुपए रिश्वत मांगी अन्यथा उसका मकान तोड़ने की धमकी दी। वहीं दूसरे दिन निगम कर्मचारियों ने उसके मकान में तोड़फोड़ कर दी। इसे हाईकोर्ट में चुनौती देते हुए प्रार्थी ने कहा कि उसका 7 लाख रुपए का नुकसान हुआ है, इसलिए उसे नगर निगम से मुआवजा दिया जाए। अदालत ने उनकी याचिका मंजूर कर नगर निगम को उसे दस लाख रुपए मुआवजा देने का आदेश दिया था।