एक महत्वपूर्ण फैसले में, राजस्थान हाईकोर्ट ने याचिकाकर्ता और अजन्मे भ्रूण के स्वास्थ्य के बारे में चिंताओं का हवाला देते हुए 30 सप्ताह के गर्भ को समाप्त करने की अनुमति देने से इनकार कर दिया है। न्यायालय ने कहा कि पूर्ण विकसित भ्रूण को भी भारतीय संविधान के अनुच्छेद 21 के तहत जीवन का संवैधानिक अधिकार है।
यह निर्णय न्यायमूर्ति अनूप कुमार ढांड ने एस.बी. सिविल रिट याचिका संख्या 17348/2024 के मामले में सुनाया। याचिकाकर्ता, कथित बलात्कार की 22 वर्षीय पीड़िता, ने अपने गर्भ को समाप्त करने की अनुमति मांगी, जिसका उसने तर्क दिया कि यह अपराध का परिणाम था।
मामले की पृष्ठभूमि
याचिकाकर्ता, अहमदाबाद की निवासी है जो वर्तमान में धौलपुर के सखी वन स्टॉप सेंटर में रह रही है, उसने महिला थाना, धौलपुर में धारा 376 आईपीसी (बलात्कार) के तहत एफआईआर संख्या 306/2024 दर्ज कराई। पीड़िता ने न्यायालय से गुहार लगाई कि गर्भावस्था को जारी रखना उसके शारीरिक और मानसिक स्वास्थ्य के लिए हानिकारक होगा। याचिकाकर्ता ने बच्चे की देखभाल करने में अपनी असमर्थता व्यक्त की, जो आघात की निरंतर याद दिलाता रहेगा।
मेडिकल रिपोर्ट और अवलोकन
याचिकाकर्ता ने 20 नवंबर, 2024 को जयपुर के महिला चिकित्सालय में गठित मेडिकल बोर्ड द्वारा जांच कराई। बोर्ड के निष्कर्षों से पता चला:
– गर्भावस्था 30 सप्ताह की थी और एक जीवित भ्रूण का वजन लगभग 1169 ग्राम था।
– गर्भ की आयु 28 सप्ताह और 3 दिन बताई गई, और भ्रूण में कोई विसंगति नहीं पाई गई।
– इस स्तर पर गर्भपात समय से पहले प्रसव के बराबर होगा और याचिकाकर्ता के साथ-साथ भ्रूण के लिए भी उच्च जोखिम होगा।
बोर्ड ने स्पष्ट रूप से कहा कि गर्भपात सुरक्षित नहीं था और जीवन के लिए खतरा हो सकता था।
संबोधित कानूनी मुद्दे
न्यायमूर्ति अनूप कुमार ढांड ने याचिकाकर्ता की याचिका का विश्लेषण करते हुए, पीड़ित के अधिकारों और भ्रूण के जीवन के अधिकार के बीच संतुलन स्थापित किया:
1. महिला की स्वायत्तता: न्यायालय ने गर्भधारण के बारे में निर्णय लेने में महिला की स्वायत्तता को स्वीकार किया, लेकिन इस बात पर जोर दिया कि गर्भ की उन्नत अवस्था भ्रूण को ऐसी स्थिति में रखती है, जहाँ उसे जीवन का अधिकार है।
2. सुरक्षा संबंधी चिंताएँ: चिकित्सा राय का हवाला देते हुए, न्यायालय ने कहा कि गर्भपात का कोई भी प्रयास याचिकाकर्ता और भ्रूण के स्वास्थ्य को खतरे में डालेगा।
3. मिसालें: न्यायालय ने X बनाम भारत संघ के मामले में सर्वोच्च न्यायालय के फैसले पर भरोसा किया, जिसमें 28 सप्ताह में गर्भपात से इनकार किया गया था। सर्वोच्च न्यायालय ने माना कि इस अवस्था में गर्भपात का आदेश देने से भ्रूण को “आजीवन विकलांगता” का बड़ा जोखिम होगा।
न्यायालय की मुख्य टिप्पणियाँ
न्यायमूर्ति अनूप कुमार ढांड ने टिप्पणी की:
– “पूर्ण रूप से विकसित भ्रूण को भी भारत के संविधान के अनुच्छेद 21 के तहत जीवन का अधिकार है, ताकि वह इस दुनिया में प्रवेश कर सके और बिना किसी असामान्यता के स्वस्थ जीवन जी सके।”
– उन्होंने आगे कहा, “कानून महिला की स्वायत्तता को मान्यता देता है, लेकिन इस मामले में, इस स्तर पर गर्भपात दोनों के जीवन को खतरे में डाल देगा।”
याचिकाकर्ता को दी गई राहत
अदालत ने गर्भपात से इनकार करते हुए निम्नलिखित उपाय किए:
1. याचिकाकर्ता धौलपुर के सखी वन स्टॉप सेंटर में रहेगी, जहाँ उसे सभी आवश्यक चिकित्सा, पोषण और भावनात्मक देखभाल प्रदान की जाएगी।
2. राज्य को याचिकाकर्ता की सुरक्षित डिलीवरी तक उसकी सहायता के लिए एक महिला नर्सिंग अटेंडेंट नियुक्त करने का निर्देश दिया गया।
3. डिलीवरी जयपुर के महिला चिकित्सालय में होगी, जिसका सारा खर्च राज्य वहन करेगा।
4. यदि याचिकाकर्ता चाहे तो जन्म के बाद बच्चे को बाल कल्याण समिति, जयपुर के अधीन गोद दिया जा सकता है।
5. राजस्थान पीड़ित प्रतिकर योजना, 2011 के तहत तीन महीने के भीतर याचिकाकर्ता को मुआवजा दिया जाना है और दो साल के लिए सावधि जमा में जमा किया जाना है।
अदालत ने आगे चल रही जांच में सहायता के लिए डीएनए विश्लेषण के लिए ऊतक और रक्त के नमूनों को संरक्षित करने का आदेश दिया।
याचिकाकर्ता का प्रतिनिधित्व अधिवक्ता सुश्री संगीता कुमारी शर्मा ने किया, जबकि राज्य का प्रतिनिधित्व एएजी श्री विज्ञान शाह ने किया, जिनकी सहायता श्री यश जोशी और श्री हर्ष पाराशर ने की।