राजस्थान हाईकोर्ट ने सरकारी भर्ती परीक्षाओं में फर्जी शैक्षणिक दस्तावेज़ों और व्यक्ति की जगह किसी अन्य के बैठने की साज़िश से जुड़े एक गंभीर मामले में दर्ज एफआईआर को रद्द करने की मांग वाली याचिकाओं को खारिज कर दिया है। यह याचिकाएं तीन आरोपियों के खिलाफ लंबित प्राथमिकी को समाप्त करने के लिए दायर की गई थीं।
न्यायमूर्ति समीर जैन ने अपने निर्णय में कहा कि यह मामला “गंभीर सार्वजनिक महत्व” का है और राज्य की स्पेशल ऑपरेशंस ग्रुप (SOG) की जांच से प्रथम दृष्टया आरोप सिद्ध होते हैं। उन्होंने कहा कि इस स्तर पर एफआईआर को रद्द करना न केवल न्याय प्रक्रिया में बाधा उत्पन्न करेगा, बल्कि ईमानदार और पात्र अभ्यर्थियों के अधिकारों का भी उल्लंघन होगा।
मामला तब उजागर हुआ जब एक महिला उम्मीदवार ने व्याख्याता पद के लिए आवेदन किया और दावा किया कि वह वर्धमान महावीर ओपन यूनिवर्सिटी से स्नातकोत्तर कर रही है। दस्तावेज़ों के सत्यापन के दौरान गड़बड़ियां सामने आईं, जिससे राजस्थान लोक सेवा आयोग (RPSC) ने विश्वविद्यालय से स्पष्टीकरण मांगा।

इसके बाद हुई जांच में यह खुलासा हुआ कि मेवाड़ विश्वविद्यालय से फर्जी डिग्रियों के माध्यम से एक व्यापक रैकेट चलाया जा रहा है, जिसमें परीक्षा केंद्रों पर दूसरों को बैठाकर परीक्षाएं दिलवाई जा रही थीं। SOG ने मामले की जांच अपने हाथ में ली और एफआईआर दर्ज की, जिसमें आगे चलकर याचिकाकर्ताओं की संलिप्तता भी सामने आई।
आरोपियों का कहना था कि वे न तो मूल एफआईआर में नामित थे और न ही उनके खिलाफ कोई प्रत्यक्ष सबूत है। उनके वकील ने आरोपों को केवल अटकलों और कयासों पर आधारित बताया। लेकिन अभियोजन पक्ष ने कोर्ट में प्रस्तुत किया कि डिजिटल और भौतिक सबूत — जैसे कि एक आरोपी द्वारा परीक्षा में किसी अन्य की जगह बैठने का वीडियो फुटेज — उनकी भूमिका को सिद्ध करते हैं।
कोर्ट ने यह भी नोट किया कि याचिकाकर्ता लंबे समय तक फरार रहे, जिससे उनके दोषी होने की भावना का संकेत मिलता है।
उपलब्ध सामग्री और साक्ष्यों का परीक्षण करने के बाद, अदालत ने पाया कि याचिकाकर्ताओं को वैध और तर्कसंगत जांच के आधार पर आरोपी बनाया गया है। अदालत ने उनकी याचिकाएं खारिज करते हुए एफआईआर या चार्जशीट में हस्तक्षेप से इनकार कर दिया और निर्देश दिया कि आरोपी जांच में सहयोग करें।
यह निर्णय राजस्थान में सरकारी भर्ती परीक्षाओं में हो रहे फर्जीवाड़े के खिलाफ कार्रवाई की दिशा में एक महत्वपूर्ण कदम माना जा रहा है, जहां अधिकारी लगातार ऐसे रैकेट का भंडाफोड़ कर रहे हैं जो सार्वजनिक चयन प्रक्रियाओं की पारदर्शिता को प्रभावित करने का प्रयास कर रहे हैं।