राजस्थान हाईकोर्ट ने संविधान के अनुच्छेद 21 के तहत प्रदत्त व्यक्तिगत स्वतंत्रता के अधिकार को सर्वोपरि बताते हुए कहा है कि किसी आपराधिक मामले के केवल लंबित होने के आधार पर किसी नागरिक को विदेश यात्रा—विशेष रूप से धार्मिक उद्देश्य से—जाने से नहीं रोका जा सकता।
यह टिप्पणी न्यायमूर्ति अनूप कुमार ढंड ने कोटा निवासी 61 वर्षीय मोहम्मद मुस्लिम खान की याचिका पर सुनवाई करते हुए की। खान ने मक्का और मदीना जाने के लिए पासपोर्ट दोबारा जारी करने की मांग की थी, जिसे क्षेत्रीय पासपोर्ट कार्यालय (RPO), कोटा ने मई में यह कहते हुए खारिज कर दिया था कि उनके खिलाफ भारतीय दंड संहिता की धारा 498ए (पत्नी के साथ क्रूरता) और 406 (आपराधिक विश्वासघात) के तहत मामला लंबित है।
हाईकोर्ट ने इस आधार को अवैध और असंवैधानिक करार देते हुए कहा,
“धारा 498ए और 406 के तहत लंबित आपराधिक मामला केवल इस आधार पर किसी व्यक्ति को धार्मिक यात्रा के लिए विदेश जाने की अनुमति से वंचित करने का आधार नहीं हो सकता।”

न्यायालय ने पासपोर्ट प्राधिकरण द्वारा ऐसे मामलों को सामान्य रूप से खारिज करने के रवैये की आलोचना की और कहा कि ट्रायल कोर्ट पहले ही याची को पासपोर्ट प्राधिकरण के समक्ष आवेदन देने की स्वतंत्रता दे चुका था।
कोर्ट ने मेनका गांधी बनाम भारत संघ (1978) मामले का हवाला देते हुए कहा कि प्राकृतिक न्याय केवल संविधान की देन नहीं, बल्कि मानवीय मूल्यों का हिस्सा है। न्यायालय ने दोहराया कि कोई भी प्रशासनिक कार्यवाही जो न्यायसंगतता, विवेक और उचित प्रक्रिया के सिद्धांतों का उल्लंघन करती है, वह मनमानी और असंवैधानिक मानी जाएगी।
हाईकोर्ट ने यह स्पष्ट किया कि,
“हर नागरिक को विदेश जाने का अधिकार है, और मनमाने प्रतिबंध संविधान द्वारा प्रदत्त सुरक्षा का उल्लंघन करते हैं।”
इसके साथ ही न्यायालय ने यह भी कहा कि पासपोर्ट प्राधिकरण इस प्रकार के मामलों में उचित निर्णय लेने में असमर्थ रहते हैं क्योंकि उन्हें स्पष्ट निर्देश नहीं मिलते। इसलिए अदालत ने राज्य के सभी अधीनस्थ न्यायालयों को निर्देश दिया कि वे ऐसे मामलों में स्पष्ट और सटीक आदेश पारित करें।
अदालत ने यह आदेश सभी न्यायिक अधिकारियों तक प्रसारित करने के निर्देश भी दिए ताकि भविष्य में धार्मिक या अन्य वैध कारणों से विदेश यात्रा के मामलों में अनावश्यक बाधाएं उत्पन्न न हों।