राजस्थान हाई कोर्ट ने जयपुर के पूर्व शाही परिवार के उत्तराधिकारियों को मकान कर (हाउस टैक्स) से संबंधित याचिकाओं में प्रयुक्त “महाराज” और “प्रिंसेस” जैसे शाही उपसर्ग हटाने का निर्देश दिया है। अदालत ने चेतावनी दी है कि यदि यह सुधार 13 अक्टूबर तक नहीं किया गया तो मामला स्वतः खारिज कर दिया जाएगा।
न्यायमूर्ति महेंद्र कुमार गोयल ने पिछले सप्ताह यह आदेश 24 साल पुराने एक मामले में पारित किया। यह मामला मकान कर लगाने से जुड़ा है, जिसे पूर्व जयपुर शाही परिवार के जगत सिंह और पृथ्वीराज सिंह के कानूनी उत्तराधिकारियों ने दायर किया था।
अदालत ने याचिकाओं के शीर्षक में शाही उपसर्गों के प्रयोग पर कड़ी आपत्ति जताई। अदालत ने याचिकाकर्ताओं को संशोधित दस्तावेज दाखिल करने का निर्देश दिया और स्पष्ट किया कि यदि आदेश का पालन नहीं किया गया तो मामला बिना किसी आगे की सुनवाई के खारिज हो जाएगा।

आदेश में कहा गया कि मामला “अदालत के संज्ञान में लाए बिना स्वतः खारिज माना जाएगा” यदि निर्धारित समय सीमा में संशोधन नहीं किया गया।
अपने अवलोकनों में अदालत ने संविधान के अनुच्छेद 363A का हवाला दिया, जिसके तहत पूर्व रियासतों को मिलने वाले प्रिवी पर्स और विशेषाधिकार समाप्त कर दिए गए थे। इसके साथ ही अनुच्छेद 14, जो सभी नागरिकों को समानता का अधिकार प्रदान करता है, का भी उल्लेख किया गया।
अदालत ने कहा कि अब कोई भी व्यक्ति शाही उपाधियों का दावा नहीं कर सकता और न ही उनका उपयोग कर सकता है।
इस मामले की अगली सुनवाई 13 अक्टूबर को होगी, तब तक याचिकाकर्ताओं को अदालत के निर्देश का पालन करना होगा।